बीमा खरीदारों के सबसे बुरे संदेह की पुष्टि हो गई है। एक ऐक्टिविस्ट की कोर्ट में दाखिल की गई याचिका के बाद पेश किए गए आंकड़ों से पता चल रहा है कि कैशलेस हेल्थ कवर के लिए हो रहे क्लेम पे-आउट पारंपरिक रीइंबर्समेंट सुविधा के मुकाबले कहीं ज्यादा हैं। रीइंबर्समेंट सुविधा में मरीज के घरवालों को खुद अस्पताल का बिल चुकाना होता है और उसके बाद इस बिल को बीमा कंपनियों से रिकवर करना होता है।
इंश्योरेंस रेगुलेटर IRDA की ओर से बॉम्बे हाईकोर्ट में पेश किए गए आंकड़ों के मुताबिक, कई बीमारियों के मामलों में तो ऐवरेज कैशलेस क्लेम डिसबर्सल रीइंबर्समेंट क्लेम पेआउट के मुकाबले करीब दोगुने तक हैं। मिसाल के तौर पर, 2013-14 के दौरान सर्कुलेटरी सिस्टम (जिनमें कार्डियक बीमारियां भी शामिल हैं) की बीमारियों के लिए ऐवरेज क्लेम पेआउट कैशलेस सुविधा के लिए 81,384 रुपये है, जबकि रीइंबर्समेंट के जरिए यह पेआउट केवल 38,048 रुपये ही है। इसी तरह से, ब्लड और ब्लड-फॉर्मिंग ऑर्गन्स और इम्यून डिसऑर्डर्स वाली बीमारियों के लिए कैशलेस मोड के जरिए चुकाया गया ऐवरेज क्लेम 35,958 रुपये है, जबकि रीइंबर्समेंट रूट के जरिए यह रकम केवल 17,726 रुपये बैठती है।
ऐक्टिविस्ट्स का मानना है कि रीइंबर्समेंट क्लेम्स को आंशिक तौर पर सेटल किया जाता है क्योंकि इंडीविजुअल पॉलिसीहोल्डर्स के पास इस स्थिति में मोलभाव करने की ताकत नहीं होती है, जबकि हॉस्पिटल्स बीमा कंपनियों के साथ अपने संबंधों के चलते क्लेम को पूरी तरह से सेटल करा सकते हैं। कन्जयूमर ऐक्टिविस्ट गौरांग दमानी ने कहा, 'पॉलिसीहोल्डर्स के बीच आम सोच हमेशा से यह रही है कि बीमा कंपनियां रीइंबर्समेंट क्लेम्स में अपेक्षाकृत कम रकम चुकाने का रुझान रखती हैं। अब यह डेटा इस बात की पुष्टि कर रहा है।' गौरांग ने 2012 में हाईकोर्ट में एक याचिका फाइल की थी, जिसके बाद IRDA ने 2013 में हेल्थ इंश्योरेंस रेग्युलेशंस तैयार किए थे।
रीइंबर्समेंट और कैशलेस क्लेम्स पर डिस्क्लोजर इसी मामले से जुड़ी लगातार जारी कोर्ट कार्यवाही का नतीजा है। यह पाया गया था कि 22 बीमारियों में रीइंबर्समेंट अमाउंट सभी मामलों में कम रहा है। इसमें मेंटल डिसऑर्डर की बीमारी एकमात्र अपवाद है।
बीमा कंपनियां, हालांकि, इस बात पर जोर देती हैं कि यह दो एक जैसी चीजों की तुलना का मामला नहीं है। एक प्रमुख जरल इंश्योरेंस कंपनी के सीनियर ऐग्जिक्युटिव ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, 'एक ही बीमारी की कैटिगरी में कई वजहों से अंतर हो सकते हैं। जब तक कि ट्रीटमेंट प्रक्रियाओं के आधार पर क्लासिफिकेशन नहीं होता है, आप इस नतीजे पर नहीं पहुंच सकते हैं कि बीमा कंपनियां कैशलेस और रीइंबर्समेंट मोड्स में भेदभाव करती हैं।'
बीमा कंपनियों का कहना है कि पॉलिसीहोल्डर्स में भी ज्यादा खर्च वाले मामलों में कैशलेस का चुनाव करने की प्रवृत्ति देखी गई है, जबकि कम खर्च वाले इलाज में वे रीइंबर्समेंट का रास्ता अख्तियार करते हैं। मिसाल के तौर पर, फ्रैक्चर का इलाज कराने वाला पेशेंट अपनी जेब से बिल भर सकता है और इसके लिए रीइंबर्समेंट क्लेम दाखिल कर सकता है, लेकिन जो शख्स कार्डियक सर्जरी से गुजर रहा है, वह कैशलेस फैसिलिटी का चुनाव करता है। इंश्योरेंस कंपनी के ऐग्जिक्युटिव ने कहा, 'दोनों को एक ही बीमारी के मद में रखा जाएगा, लेकिन यह चीज नैचरल है कि कार्डियक बीमारी वाले को पेआउट ज्यादा होगा।'
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