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Channel: Mutual Funds in Hindi - म्यूचुअल फंड्स निवेश, पर्सनल फाइनेंस, इन्वेस्टमेंट के तरीके, Personal Finance News in Hindi | Navbharat Times
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इंटरेस्ट इनकम पर फोकस्ड डेट फंड्स में भी इनवेस्टमेंट बेहतर

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भारतीय रिजर्व बैंक ने 3 जून को रेपो रेट में 25 बेसिस प्वाइंट्स की कटौती करने के बाद से अपने कदम थाम लिए हैं। इससे लंबे समय के फंड्स पर दांव लगा रहे इनवेस्टर्स को निराशा हुई है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक अब भी इन फंड्स का परफॉर्मेंस ठीकठाक रह सकता है लेकिन उनसे होने वाला फायदा बाद में मिलेगा। इससे पता चलता है कि इंटरेस्ट रेट पर दांव लगाने में रिस्क है। इसलिए इनवेस्टर्स को डेट फंड पोर्टफोलियो में डायवर्सिफिकेशन करना चाहिए और उसमें अक्रूअल फंड्स को शामिल करना चाहिए।

क्या होते हैं अक्रूअल फंड्स?

अक्रूअल ओरिएंटेड फंड्स का फोकस बॉन्ड्स के कूपन से होने वाले इंटरेस्ट इनकम पर होता है। इसके उलट ड्यूरेशन फंड्स में फोकस इंटरेस्ट रेट में गिरावट आने पर बॉन्ड्स में होनेवाले कैपिटल एप्रिसिएशन से मिलने वाले रिटर्न पर होता है। कैपिटल गेंस से कुछ रिटर्न अक्रूअल फंड्स को भी मिलता है, लेकिन यह उनके टोटल रिटर्न का एक छोटा हिस्सा होता है। इसका दूसरा फीचर यह है कि इसमें बॉन्ड्स रखने के मकसद से खरीदे जाते हैं। फंड्ससुपरमार्केटडॉटकॉम की रिसर्च हेड रेणु पोठन कहती हैं, 'इन फंड्स में ट्रेडिंग बहुत कम होती है क्योंकि ये इंस्ट्रूमेंट्स मैच्योरिटी तक होल्ड किए जाते हैं। दूसरी तरफ, ड्यूरेशन फंड्स में इंटरेस्ट रेट पर फंड मैनेजमेंट टीम के व्यू के हिसाब से एक्टिव मैनेजमेंट होता है।'

अक्रूअल फंड्स कितने तरह के होते हैं?

ओपन एंडेड कैटेगरी में दो तरह के अक्रूअल फंड्स होते हैं: क्रेडिट ऑपर्च्युनिटी फंड्स और कॉरपोरेट बॉन्ड फंड्स। क्रेडिट ऑपर्च्युनिटी फंड्स में बॉन्ड की मौजूदा रेटिंग और उसके फंडामेंटल्स में फर्क का फायदा उठाया जाता है। फंड मैनेजर को अपनी रिसर्च में ऐसा लग सकता है कि कंपनी के फंडामेंटल में सुधार आने पर बॉन्ड की क्रेडिट रेटिंग अपग्रेड हो सकती है। ऐसे में अपग्रेडिंग पर बॉन्ड में कुछ कैपिटल एप्रिसिएशन हो सकता है। चूंकि इसका कुछ हिस्सा कम रेटिंग वाले बॉन्ड्स में लगाया जाता है इसलिए क्रेडिट ऑपर्च्युनिटी फंड्स कॉरपोरेट बॉन्ड फंड के मुकाबले ज्यादा रिस्क लेते हैं। कॉरपोरेट बॉन्ड फंड ऊंची रेटिंग वाले बॉन्ड्स में पैसा लगाते हैं और ज्यादा क्रेडिट रिस्क नहीं लेते या बॉन्ड की मौजूदा रेटिंग और उसके फंडामेंटल्स में फर्क पर ध्यान नहीं देते।

फायदे

ड्यूरेशन फंड्स के मुकाबले अक्रूअल फंड्स में आमतौर कम वोलैटिलिटी होती है। अक्रूअल स्ट्रैटेजी इंटरेस्ट रेट को लेकर होने वाली हर माहौल (तेजी, मंदी और स्थिर) में काम करती है। प्लान अहेड वेल्थ एडवाइजर्स के चीफ फाइनेंशियल प्लानर विशाल धवन कहते हैं, 'अक्रूअल स्ट्रैटेजी पर बेस्ड बॉन्ड पोर्टफोलियो में कैपिटल डेप्रिसिएशन बढ़ते इंटरेस्ट वाले माहौल में ड्यूरेशन फंड के मुकाबले बहुत कम होता है। इन हालात में ड्यूरेशन फंड्स में तेज गिरावट आती है।' धवन यह भी कहते हैं कि अक्रूअल फंड्स इंटरेस्ट रेट में बढ़ोतरी से पैदा होने वाले जोखिम से पूरी तरह बचा नहीं रहता, खासतौर पर तब जब उसमें बढ़ोतरी ज्यादा होती है। लेकिन यह असर ड्यूरेशन फंड्स के मुकाबले कम होता है।

सिक्के का दूसरा पहलू

अक्रूअल फंड्स बहुत कम मैच्योरिटी वाले बॉन्ड्स को खरीदते हैं, इसलिए उनको इंटरेस्ट रेट में तेज गिरावट आने पर कैपिटल एप्रिसिएशन का फायदा नहीं मिल पाता है। दूसरा, फिक्स्ड इनकम प्रॉडक्ट्स में इनवेस्टमेंट करने वाले बहुत से इनवेस्टर्स पोर्टफोलियो की क्रेडिट क्वॉलिटी पर ज्यादा रिस्क लेने के हक में नहीं होते। अगर ऐसे इनवेस्टर्स अनजाने में कम रेटिंग वाले बॉन्ड्स में इनवेस्टमेंट करने वाले क्रेडिट ऑपर्च्युनिटी फंड्स में पैसा लगा देते हैं उनको इंटरेस्ट पेमेंट में देरी और डिफॉल्ट तक का रिस्क उठाना पड़ जाता है।

किनको खरीदना चाहिए?

अक्रूअल फंड्स स्थिर रिटर्न में दिलचस्पी रखने वाले उन इनवेस्टर्स के लिए अच्छा होता है जो अपने डेट पोर्टफोलियो में ज्यादा वोलैटिलिटी नहीं चाहते। ये फंड्स उन लोगों के लिए अच्छे होते हैं जो फिक्स्ड डिपॉजिट्स के मुकाबले टैक्स आर्बिट्राज का फायदा चाहते हैं। टैक्स के सबसे ऊपरी स्लैब वाले इनवेस्टर्स को कैपिटल गेंस पर 30 पर्सेंट के हिसाब इंडेक्सेशन के साथ 20 पर्सेंट का टैक्स देना पड़ता है। इसमें 20 पर्सेंट टैक्स ब्रैकेट वालों को भी फायदा होता है क्योंकि उनको इंडेक्सेक्शन का लाभ मिलता है।

कितना इनवेस्ट करें?

इनवेस्टर्स को अपने फिक्स्ड इनकम पोर्टफोलियो में पहले यह फैसला करना पड़ता है कि वह डेट फंड्स में कितना पैसा लगाना चाहता है। इसमें से 70-75 पर्सेंट तक अक्रूअल और सिर्फ 25-30 पर्सेंट ही ड्यूरेशन फंड में लगाया जाना चाहिए। सामान्य से आक्रामक स्ट्रैटेजी वाले इनवेस्टर्स को यह एलोकेशन खासा पसंद आता है। ज्यादा आक्रामक स्ट्रैटेजी वाले इनवेस्टर्स अक्रूअल फंड्स में ज्यादा पैसा लगा सकते हैं।

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