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फैमिली के इनवेस्टमेंट पोर्टफोलियो पर बेवजह दबाव बनाता है रियल एस्टेट

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[ उमा शशिकांत ]

लोगों को रियल एस्टेट में ज्यादा पैसा नहीं लगाने के लिए राजी करना बहुत मुश्किल काम है। ज्यादातर के लिए रियल एस्टेट इनवेस्टमेंट का पसंदीदा ऑप्शन है। यहां तक कि इनवेस्टमेंट के माहिर मेरे दोस्त और सहकर्मी भी इससे बच नहीं पाते। ज्यादातर परिवारों के पोर्टफोलियो में यह एसेट सबसे बड़ा और महंगा होता है। हालांकि, हम यही कहते रहते हैं कि हमें इससे बचना चाहिए। लेकिन ऐसी क्या बात है जो रियल एस्टेट को किसी फैमिली के इनवेस्टमेंट पोर्टफोलियो के लिए नुकसानदेह बनाता है?

वजहें सामान्य हैं। ये एसेट इतने बड़े होते हैं कि उनको टुकड़ों में यूज नहीं किया जा सकता। यूनिट के हिसाब से कीमत में फर्क होता है। इनकी तुलना के लिए कोई स्टैंडर्ड नहीं होता। ऐसे में इनकी तलाश करना, कीमत का अंदाजा लगाना, खरीदना बेचना महंगा पड़ता है। ट्रांजैक्शन कॉस्ट बहुत ज्यादा होती है और इसमें इंटरेस्ट, ब्रोकरेज, टैक्स और ड्यूटी शामिल होती है। इसकी यील्ड कम होती है क्योंकि रेंट के तौर पर मिलने वाला फ्यूचर कैश लंबे समय तक खिंचता है। सामान्य परिवारों के लिए मकान खरीदना रिस्की होता है क्योंकि उनके पास इंफॉर्मेशन और एक्सपर्टाइज लिमिटेड होती है।

हम रियल एस्टेट के इकनॉमिक्स के बारे में बात करेंगे। डिमांड और सप्लाई और कीमत किन चीजों से तय होती है और कैसे संतुलन बनाने के लिए मार्केट इन फैक्टर्स को एडजस्ट करता है। दो अलग तरह के बायर्स होने की वजह से रियल एस्टेट मार्केट की मॉडलिंग बहुत कॉम्प्लेक्स होती है। एक बायर रहने के लिए मकान चाहता है तो दूसरा इनवेस्टमेंट करने या कैपिटल एसेट बनाने के मकसद से लेना चाहता है। इनमें रोल चेंज होने से हाउसिंग मार्केट का संतुलन बिगड़ता है।

अगर मार्केट में बायर्स का दबदबा हो तो इकनॉमिक्स सिंपल और सीधी होती है। जो रहने के लिए मकान चाहते हैं उनके पास किराए या अपने मकान के दो ऑप्शन होते हैं। अपने मकान के लिए शुरू में एकमुश्त रकम देनी होती है और फ्यूचर में रेंट नहीं देना होता है। ज्यादा लोगों को जगह की जरूरत होने पर प्रॉपर्टी की डिमांड बढ़ जाएगी। लोगों को सस्ता लोन एक्सेस होने और टैक्स राहत से लोगों के लिए मकान लेना बेहतर होता है। मकान लंबे समय तक चलते हैं इसलिए मौजूदा मकान की रीप्राइसिंग होती है और डिमांड के हिसाब से नई यूनिट्स ऐड होती हैं। वैल्यूएशन और प्राइसिंग फ्यूचर रेंट की डिस्काउंटेड वैल्यू होती है।

मकानों के टिकाऊ होने, ऊंची कॉस्ट, लोन का एक्सेस और टैक्स में छूट से इनवेस्टर्स इसकी तरफ अट्रैक्ट होते हैं। रहने के लिए मकान खरीदने वाले भी इनवेस्टर बन जाते हैं। मकानों की सप्लाई में बदलाव और फ्यूचर रेंट में अनुमानित बदलाव मकानों के वैल्यूएशन में बदलाव ला सकते हैं। इससे इनवेस्टर्स और सटोरियों का बड़ा वर्ग इसमें आकर कीमतों को प्रभावित कर सकता है।

जिन मकानों के खरीदार उनको यूज करने वाले होते हैं उनमें कीमत डिमांड और सप्लाई से तय होती है, लेकिन जिस बाजार में इनवेस्टर्स होते हैं उसमें कीमत कॉस्ट ऑफ फंड और प्रॉपर्टी की सप्लाई से तय होती है। इंडियन रियल एस्टेट में सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि इसमें ब्लैक मनी वाले इनवेस्टर्स का दबदबा है। इसी वजह से एक तरफ बहुत से मकान खाली पड़े हैं और दूसरी तरफ फैमिली को खरीदने के लिए मकान नहीं मिल रहे हैं। इस बाजार में फैमिली नहीं इनवेस्टर्स का दबदबा है।

प्रॉपर्टी को बेस्ट इनवेस्टमेंट माने जाने में बहुत रिस्क है। पहला यहां डिमांड कई मिथकों पर आधारित होती है। जैसे मिसाल के लिए मुंबई बहुत छोटा है इसलिए यहां रियल एस्टेट की कीमत बढ़ती ही जाएगी। अगर मुंबई की आधी से ज्यादा आबादी झुग्गियों में रहती है तो इससे पता चलता है कि सिस्टम में कितना असंतुलन है। मकान खरीदने के इच्छुक लोग नहीं खरीद रहे हैं और जो लोग प्रॉपर्टी खरीद रहे हैं उनको यह लग रहा है कि कोई और ऊंची कीमत पर उसको खरीद लेगा। यहां वैल्यूएशन फ्यूचर कैश फ्लो नहीं बल्कि फ्यूचर प्राइस के अनुमान पर आधारित है।

(लेखिका सेंटर फॉर इनवेस्टमेंट एजुकेशन एंड लर्निंग की मैनेजिंग डायरेक्टर हैं)

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