[ प्रिया सुंदर ] केंद्र सरकार चाहती है कि मंदिरों में पड़े गोल्ड को बैंक में जमा कराया जाए। केरल के चीफ मिनिस्टर ओमन चांडी इसके खिलाफ हैं। केंद्र इस तरह से गोल्ड के सबसे बड़े रिजर्व को मॉनेटाइज करना चाहता है। वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के मुताबिक, भारत में मंदिरों के पास 2,000 टन गोल्ड है। यह अमेरिका के फोर्ट नॉक्स में पड़े गोल्ड रिजर्व का आधा है। भारत दुनिया में गोल्ड का सबसे बड़ा मार्केट है। यह हर साल 8,00-1,000 टन गोल्ड का इंपोर्ट करता है। गोल्ड की इतनी मांग के चलते 2013 में करेंट एकाउंट डेफिसिट बढ़ा था, जिससे रुपये की वैल्यू इंटरनेशनल करेंसी के मुकाबले काफी कम हो गई थी। गोल्ड का महंगाई दर और इंटरेस्ट रेट से करीबी रिश्ता है। महंगाई दर ज्यादा होने या रियल इंटरेस्ट रेट कम होने पर किसी इकनॉमी की परचेजिंग पावर कम होती है। तब लोगों को खर्च की गई रकम के बदले कम सामान और सर्विसेज मिलते हैं। जब बचत से अच्छा रिटर्न नहीं मिलता तो लोग महंगाई के असर से खुद को बचाने के लिए गोल्ड में पैसा लगाते हैं। गोल्ड को अन-प्रॉडक्टिव एसेट माना जाता है। इसमें लोग अपनी बचत का पैसा लगाते हैं, जिससे इकनॉमी को कोई फायदा नहीं होता। गोल्ड घरों में बेकार पड़ा रहता है। एक अनुमान के मुताबिक, भारत में 20,000 टन गोल्ड है। इसमें से ज्यादातर ज्वैलरी के तौर पर है, जिसकी न तो ट्रेडिंग होती है और न ही यह सर्कुलेशन में रहता है। इस गोल्ड को मॉनेटाइज (मार्केट में लाने के लिए) करने के लिए फाइनेंस मिनिस्टर अरुण जेटली ने बजट में गोल्ड मॉनेटाइजेशन स्कीम का प्रस्ताव रखा था। इससे गोल्ड रिजर्व का इस्तेमाल होगा और इसके तहत गोल्ड को अंडरलाइंग एसेट मानकर कई फाइनेंशियल प्रॉडक्ट्स बनाए जा सकते हैं। यह स्कीम मौजूदा गोल्ड डिपॉजिट और गोल्ड लोन योजनाओं की जगह लेगी। अभी कुछ बैंक गोल्ड के बदले लोन स्कीम चला रहे हैं। गोल्ड मॉनेटाइजेशन स्कीम में डिपॉजिटर्स को गोल्ड एकाउंट्स पर ब्याज मिलेगा। वहीं ज्वैलर्स अपने गोल्ड एकाउंट्स पर लोन ले सकेंगे। सरकार ने रिडीमेबल सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड्स (एसजीबी) का प्रस्ताव रखा था, जिस पर तय ब्याज मिलता है। इन्हें गोल्ड की फेस वैल्यू पर कैश में भुनाया जा सकता है। ये गोल्ड एक्सचेंज ट्रेडेड फंड्स (ईटीएफ) की तरह हैं, जिनमें गोल्ड की कीमत के बराबर रकम रिडेम्पशन के वक्त इनवेस्टर को दी जाती है। फिजिकल गोल्ड खरीदना समझदारी नहीं है। इसके चोरी होने का रिस्क होता है। इसके मुकाबले गोल्ड ईटीएफ या एसजीबी में पैसा लगाना समझदारी है। इसमें पैसा लगाने पर आपको मेकिंग चार्ज नहीं देना पड़ता। गोल्ड चोरी होने का डर नहीं होता और इसे खरीदना या बेचना भी बहुत आसान है। ग्रामीण इलाकों में गोल्ड की काफी ज्यादा खरीदारी होती है। इनवेस्टमेंट के कम मौकों के चलते ज्यादातर लोग गोल्ड और रियल एस्टेट में पैसा लगाते हैं। अगर इन लोगों के लिए अट्रैक्टिव फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट्स तैयार किए जा सकें तो गोल्ड की मांग कम होगी। बैंकों और जन धन योजना के तहत गोल्ड मॉनेटाइजेशन स्कीम को ऑपरेट करने पर सभी वर्ग को इसका फायदा मिल सकेगा। इससे सूदखोरों का बाजार भी ठंडा होगा। बैंक इस गोल्ड का प्रॉडक्टिव इस्तेमाल कर पाएंगे। इससे गोल्ड इंपोर्ट कम करने में मदद मिलेगी, लिहाजा इंपोर्ट ड्यूटी भी नहीं चुकानी होगी, जिससे आखिरकार सोना सस्ता होगा। हालांकि, गोल्ड मॉनेटाइजेशन का फायदा तभी महसूस किया जा सकेगा, जब महंगाई दर कम हो। पॉजिटिव रियल इंटरेस्ट रेट और एफिशिएंट कैपिटल मार्केट्स से इस स्कीम को कामयाब बनाया जा सकता है। आईआईएम बैंगलोर में इकनॉमिक्स के एसोसिएट प्रोफेसर चेतन सुब्रमण्यन ने कहा कि जब तक इन स्कीम्स पर हाई रियल इंटरेस्ट रेट नहीं मिलेगा, तब तक ये सफल नहीं होंगी। (लेखिका पीक अल्फा इनवेस्टमेंट सर्विसेज की डायरेक्टर हैं)
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