क्या अमेरिका में ब्याज दरों में बढ़ोतरी से इंडियन मार्केट पर पड़ने वाले असर को लेकर आप आशंकित हैं? काफी लंबे समय से भारतीय शेयर बाजार की तकदीर विदेशी निवेश से तय होती आई है। इसलिए इस पर अमेरिका में ब्याज दरों में बढ़ोतरी के नेगेटिव इंपैक्ट से इनकार नहीं किया जा सकता। हालांकि, फाइनेंशियल मार्केट्स में किसी हलचल का सामना करने के लिए देश पूरी तरह तैयार है। जहां इस साल अमेरिका में ब्याज दरों में बढ़ोतरी के आसार दिख रहे हैं, वहीं जापान और यूरो जोन में इंटरेस्ट रेट के आगे भी बहुत कम रहने की उम्मीद है। करेंट एकाउंट डेफिसिट और विदेशी मुद्रा भंडार के लिहाज से भारत मजबूत दिख रहा है। इसलिए फाइनेंशियल मार्केट्स में किसी हलचल का हम आसानी से सामना कर सकते हैं। वैसे अमेरिका में ब्याज दरों में बढ़ोतरी के बाद शॉर्ट टर्म में उतार-चढ़ाव से इनकार नहीं किया जा सकता। बेमौसम बारिश से ग्रामीण इलाकों में आमदनी कम होगी। इसका इकनॉमी के लिए क्या मतलब है? इससे डोमेस्टिक डिमांड पर नेगेटिव असर हो सकता है। रूरल डिमांड बेस्ड कंपनियों की हालत खराब होने वाली है। बेमौसम बारिश से फसल बर्बाद होने का असर महंगाई दर में बढ़ोतरी के तौर पर भी सामने आ सकताहै। हालांकि, प्रोक्योरमेंट, स्टोरेज और डिस्ट्रीब्यूशन जैसे पहलुओं पर ध्यान देकर इस चैलेंज से निपटा जा सकता है। सरकार के पास अनाज का बफर स्टॉक है और जरूरत पड़ने पर अनाज का आयात भी किया जा सकता है। क्या आपको मार्च क्वॉर्टर में प्रॉफिट ग्रोथ बढ़ने की उम्मीद है? पहले प्रॉफिट ग्रोथ 15-20 पर्सेंट रहने की उम्मीद थी, जो अब 10 पर्सेंट से भी नीचे आ गई है। मार्च क्वॉर्टर में प्रॉफिट ग्रोथ के मामले में प्रदर्शन बहुत अच्छा रहने की उम्मीद नहीं है। हमारे हिसाब से 2015-16 में प्रॉफिट ग्रोथ 15 पर्सेंट से कम रहेगी। हालांकि, फाइनेंशियल ईयर के आखिर में और 2016-17 की शुरुआत में इसमें सुधार हो सकता है। इंडिया इंक की क्रेडिट क्वॉलिटी खराब बनी हुई है। इकनॉमिक रिकवरी अभी सुस्त है। कब तक हालत ऐसी ही रहेगी? जिन सेक्टर्स में नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स ज्यादा हैं, उनकी हालत सुधरने में वक्त लगेगा। सरकार ने पॉलिसी लेवल पर कई कदम उठाए हैं, लेकिन उनका असर दिखने में वक्त लगेगा। सरकार को इनवेस्टमेंट के मामले में पहल करनी होगी। उसके बाद कॉरपोरेट सेक्टर इसके लिए आगे आएगा। डिसइनवेस्टमेंट प्रोग्राम के तहत सरकार कई कंपनियों में हिस्सेदारी बेच रही है, इनमें से किसमें पैसा लगाया जा सकता है? इन कंपनियों पर सरकार के फैसलों का असर पड़ता है। अगर इन फैसलों के जारी रहने का भरोसा हो तो मार्केट सरकारी कंपनियों की वैल्यू का सही अंदाजा लगा सकता है। कई सेक्टर्स में अच्छी सरकारी कंपनियां हैं, जिनमें निवेश किया जा सकता है। हालांकि, इसके लिए फैसलों में पारदर्शिता जरूरी है। आप किन सेक्टर्स में पैसा लगा रहे हैं? हम ऑटो और कंज्यूमर ड्यूरेबल्स सेगमेंट पर ओवरवेट हैं। कमोडिटी के दाम कम हुए हैं और शहरी इलाकों में डिस्क्रिशनरी कंजम्पशन में बढ़ोतरी हो रही है। हम बैंकिंग, फाइनेंशियल सर्विसेज और इंश्योरेंस पर भी ओवरवेट हैं। इस सेगमेंट में हमारी पसंद खासतौर पर प्राइवेट बैंक हैं। इंटरेस्ट रेट कम हो रहे हैं, जिनसे इस सेगमेंट की कंपनियों को फायदा होगा। हालांकि, एनपीए की चिंता अभी भी बनी हुई है। आउटसोर्सिंग थीम में हम फार्मा पर ओवरवेट और आईटी पर न्यूट्रल हैं। हालांकि, फार्मा सेक्टर तभी अच्छा परफॉर्म करेगा, जब डॉलर के मुकाबले रुपया स्टेबल रहे। हम कमोडिटी सेक्टर पर अंडरवेट हैं। फार्मा शेयरों का वैल्यूएशन काफी ज्यादा है। क्या आप इस लेवल पर इन्हें खरीदने की सलाह देंगे? अभी तक हम इस सेक्टर पर ओवरवेट हैं और हालिया तेजी में हमने कुछ स्टॉक्स में प्रॉफिट बुकिंग की है। इस सेक्टर में स्टॉक सोच-समझकर चुनना होगा।
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