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टैक्स सेविंग नहीं, परिवार की सुरक्षा के लिए कराएं इंश्योरेंस

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बजट में लाइफ इंश्योरेंस सेक्टर को जहां निराशा हाथ लगी है, वहीं, आईडीबीआई फेडरल के सीईओ विघ्नेश शहाणे को इंश्योरेंस सेक्टर का भविष्य उज्ज्वल नजर आता है। प्रीति कुलकर्णी से बातचीत में उन्होंने कहा कि इंश्योरेंस इंडस्ट्री जबरदस्त ग्रोथ के लिए तैयार है। पेश हैं बातचीत के अंशः

हाल में राज्यसभा में इंश्योरेंस संशोधन बिल पास हुआ है। इंश्योरेंस सेक्टर के लिए इसके क्या मायने हैं?
लोग फॉरेन डायरेक्ट इनवेस्टमेंट (एफडीआई) लिमिट पर फोकस कर रहे हैं, लेकिन मुझे लगता है कि इस बिल में और काफी कुछ है। यह कहना अभी जल्दबाजी होगी कि इस बिल का क्या असर होगा या इससे देश में कितना पैसा आएगा। एफडीआई के जरिए बीमा का दायरा बढ़ेगा। कॉम्पिटिटव प्रॉडक्ट्स आएंगे और बेहतर टेक्नॉलजी का इस्तेमाल होगा। नए कानून के तहत इंश्योरेंस रेग्युलेटरी ऐंड डिवेलपमेंट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (इरडा) को भी ज्यादा अधिकार मिल सकेंगे। इसमें मिस-सेलिंग और गलत जानकारी देने वाली कंपनियों पर भारी पेनल्टी का प्रावधान है। इससे इंश्योरेंस कंपनियां ग्राहकों से किए वादों को पूरा करने की हरसंभव कोशिश करेंगी।

क्या आपने पिछले एक साल में कस्टमर की पसंद में बदलाव को नोटिस क्या है?
स्टॉक मार्केट्स में लोग काफी दिलचस्पी दिखा रहे हैं। यूलिप्स (यूनिट-लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान) की डिमांड बढ़ रही है। हालांकि, किसी खास प्रॉडक्ट को लेकर मारामारी नहीं है। टीयर-2 और टीयर-3 शहरों में पारंपरिक प्रॉडक्ट्स ज्यादा पॉपुलर हैं। हालांकि, डिस्ट्रीब्यूटर्स का झुकाव अब यूलिप्स की तरफ बढ़ रहा है। नए रेग्युलेशंस (2010 में शुरू) के बाद उनकी पसंद यूलिप्स से पारंपरिक प्लान की तरफ शिफ्ट हो गई थी, लेकिन अब इसमें थोड़ा संतुलन बन रहा है।

पिछले साल से यूलिप्स की वापसी हो रही है। इस प्लान की वापसी पर आपकी क्या राय है?
यूलिप मौजूदा फॉर्म में सबसे ज्यादा कस्टमर फ्रेंडली प्रॉडक्ट है। स्टॉक मार्केट में तेजी के कारण ग्राहक यूलिप्स की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। एक कंपनी के तौर पर हम यूलिप्स को लेकर काफी सावधानी बरत रहे हैं। पिछली बार कस्टमर्स इस प्लान में अपने हाथ जला चुके हैं। निश्चित तौर पर मिस-सेलिंग होती है, लेकिन मिस-बाइंग से भी इनकार नहीं किया जा सकता। चूंकि बाजार में तेजी है, इसलिए यूलिप्स अट्रैक्टिव हो गए हैं। अगर आप लॉन्ग-टर्म के हिसाब से नहीं सोच रहे हैं, तो इसमें पैसा लगाने का दांव उलटा पड़ सकता है।

इसकी लोकप्रियता के बावजूद आप इसे ऑनलाइन ऑफर नहीं करते हैं। इसके क्या कारण हैं?
हमें यह सिस्टम काफी पहले लॉन्च कर देना चाहिए था। मेरे हिसाब से इसकी एकमात्र वजह यह है कि हम बैंकों के जरिये इंश्योरेंस प्रॉडक्ट्स बेचने में बिजी हैं। अब हमने इसकी प्रक्रिया शुरू कर दी है। हमें इंश्योरेंस रेग्युलेटर इरडा की मंजूरी का इंतजार है। हम दो साल लेट हैं, लेकिन हमारा मानना है कि लेट से शुरू करने के भी फायदे हैं।

मिस-सेलिंग रोकने के लिए आपने क्या कदम उठाए हैं?
हमारा तकरीबन 80 फीसदी बिजनस बैंकों के जरिए इंश्योरेंस प्रॉडक्ट्स की बिक्री के जरिए आता है। हम बैंकों के साथ कस्टमर्स के रिश्ते को खतरे में नहीं डाल सकते। हम सेल्स टीम की ट्रेनिंग को काफी गंभीरता से लेते हैं। यूलिप्स को लेकर हमारे ज्यादा आक्रामक नहीं होने की एक वजह यह भी है कि हम मिस-सेलिंग से बचना चाहते हैं। हमने सबसे पहले प्री-इंश्योरेंस सिस्टम की शुरुआत की थी, जिसके तहत अगर आप कोई पॉलिसी खरीदते हैं, तो हम आपसे यह कन्फर्म करना चाहते हैं कि आपके पॉलिसी समझ ली है या नहीं। कस्टमर के संतुष्ट होने के बाद ही हम पॉलिसी जारी करते हैं।

इस टैक्स-सेविंग सीजन में आपका बिजनस कैसा रहा?
हमारा तकरीबन 40 फीसदी बिजनेस आखिरी क्वॉर्टर में होगा। हालांकि, मेरा मानना है कि लाइफ इंश्योरेंस खरीदने के लिए कोई सीजन नहीं होना चाहिए। कस्टमर्स को सिर्फ टैक्स सेविंग के लिए इंश्योरेंस नहीं खरीदना चाहिए। इंश्योरेंस आप इसलिए खरीदें, जिससे यह आपको आपके परिवार को सुरक्षा दे सके।

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