[ ईटी ब्यूरो | मुंबई ] अनुज एक प्रोफेशनल हैं। उनकी उम्र 30 साल के आसपास है। उनके छोटे से परिवार में वह, उनकी पत्नी और एक बच्चा हैं। अनुज ने अपने बच्चे के जन्म के बाद एक लाइफ इंश्योरेंस कवर और 2.5 लाख रुपये के सम एश्योर्ड वाला एक हेल्थ इंश्योरेंस कवर खरीदा था। हालांकि वह इस बात को लेकर चिंतित हैं कि ऐसा करना ही पर्याप्त नहीं होगा। वह इस उधेड़बुन में हैं कि हेल्थ इंश्योरेंस कवर को अपग्रेड किया जाए या नहीं और किया जाए तो ऐसा कब-कब किया जाए। दरअसल हेल्थकेयर की लागत बढ़ती जा रही है और इसे देखते हुए कवर को अपग्रेड करना ही चाहिए। अगले कुछ वर्षों में अगर एक बार भी हॉस्पिटल में भर्ती होने की आपात स्थिति आ गई तो उनका कवर कम पड़ सकता है। तो रिटायरमेंट के बाद के वर्षों के लिए इससे हॉस्पिटलाइजेशन के खर्चों का पूरा हो पाना तो नामुमकिन ही है। हेल्थकेयर की लागत में हो रही बढ़ोतरी को देखते हुए जरूरी है कि हेल्थ कवर को समय-समय पर रिव्यू किया जाए और मौजूदा लागत था भविष्य में बढ़ सकने वाली लागत का अनुमान लगाकर इसे अपग्रेड किया जाए। अपग्रेडिंग का काम जीवन के बाद के वर्षों के लिए छोड़ने का फैसला महंगा पड़ सकता है। अनुज के युवा और स्वस्थ रहने के दौरान उनका अवर अपग्रेड करने में इंश्योरेंस कंपनियों को खुशी होगी। हालांकि बाद में अपग्रेड कराने का कदम उठाने के दो नुकसान हो सकते हैं। पहला तो यह कि अनुज को ज्यादा प्रीमियम देना होगा और दूसरा नुकसान यह है कि अगर बाद में की गई जांच में पता चला कि अनुज को डायबिटीज, थॉयरायड या कोई दूसरी बीमारी है तो कवर अपग्रेड कराने की लागत बहुत ज्यादा हो जाएगी। हो सकता है कि बीमा कंपनी ज्यादा कवर देने से इनकार ही कर दे क्योंकि उसे लगे कि इसमें ज्यादा जोखिम है। एकमुश्त अपग्रेड में हो सकता है कि ज्यादा प्रीमियम की जरूरत पड़े और इससे अनुज की सेविंग्स पर असर पड़ेगा। इसके बदले हर सात या 10 साल पर टारगेट बनाकर अपग्रेड करने का कदम उठाया जा सकता है। अनुज प्रीमियम चुकाने के बजाय उसी रकम को इनवेस्ट कर सकते हैं और ऐसा कॉर्पस तैयार कर सकते हैं, जिससे बाद में कवर का अपग्रेड कराया जा सके। वह एक नियमित अंतराल पर सिंगल प्रीमियम अपग्रेड का रास्ता भी चुन सकते हैं। अनुज के पास यह विकल्प भी है कि वह अपनी सेविंग्स को हेल्थ कवर और हेल्थ कॉर्पस में बांट लें। कवर की फंडिंग सेविंग्स से की जा सकती है और उसे नियमित अंतराल पर अपग्रेड कराया जा सकता है ताकि महंगे इलाज वाली बीमारियों और आपात स्थिति को कवर किया जा सके। हेल्थ कॉर्पस दरअसल एक इनवेस्टमेंट है, जो अलग रखा हुआ होगा। इसे जरूरत के वक्त इस्तेमाल किया जा सकता है। अगर परिवार में किसी की तबीयत ज्यादा खराब न हुई तो इस कॉर्पस को रिटायरमेंट के बाद के दिनों की जरूरतों के लिए तैयार किए जा रहे फंड में डाला जा सकता है।
मोबाइल ऐप डाउनलोड करें और रहें हर खबर से अपडेट।