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गोल्ड की चमक बढ़ाने का सुनहरा मौका

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एक अनुमान के अनुसार, भारतीय परिवारों के पास करीब 25,000 टन गोल्ड पड़ा है। इसके मुकाबले अमेरिका के सरकारी खजाने में 8,000 टन और आरबीआई के पास 600 टन सोना है। भारत में लोगों के पास मौजूद गोल्ड की अनुमानित वैल्यू लगभग 50 लाख करोड़ रुपये है। यह रकम हमारे जीडीपी का 35% और बैंक डिपॉजिट्स का 60% है। सरकार अब इसे घरों से बाहर लाकर इसका बेहतर ढंग से इस्तेमाल करना चाहती है।

घरों में जो सोना पड़ा हुआ है, उस पर न तो कोई ब्याज मिल रहा है और न ही डिविडेंड। हालांकि अगर कोई संकट हो तो लोग सोने का इस्तेमाल कर दुनिया में कहीं भी रोजमर्रा की जिंदगी दोबारा शुरू कर सकते हैं। सुरक्षा के इस अहसास को बदल पाना आसान नहीं है।

बेईमानी से माल बनाया गया हो तो उसे ठिकाने लगाने का आसान जरिया भी गोल्ड है। जब मां अपने गले से सोने की चेन निकालकर अपनी बेटी के गले में पहनाती है तो इतनी आसानी से गोल्ड ट्रांसफर होता है कि किसी का ध्यान भी नहीं जाता। इस पर न कोई कैपिटल गेंस टैक्स लगता है और न ही किसी रजिस्ट्रेशन की जरूरत होती है। कोई भी गोल्ड बॉन्ड या गोल्ड डिपॉजिट स्कीम तभी सफल हो सकती है, जब वह ऐसी सहूलियत की बराबरी करे।

फिर गोल्ड को मॉनेटाइज करने की जरूरत क्यों है? यूं ही पड़ी नकदी जब बैंक डिपॉजिट की शक्ल लेती है तो उसमें इजाफा होने लगता है। बैंक अपने डिपॉजिट्स के आधार पर लोन देता है, जो फिर किसी और बैंक के लिए डिपॉजिट बनता है, जो फिर आगे दूसरों को लोन देता है और यह चक्र चलता रहता है। जब तक डिपॉजिटर्स अपना पूरा पैसा एकसाथ वापस न मांगें, यूं ही पड़ी रहने वाली नकदी ऐसी इकनॉमिक एक्टिविटी का जरिया बनी रहती है, जो इसकी मूल वैल्यू के कई गुना होती है। गोल्ड के साथ भी सरकार यही करना चाहती है।

गोल्ड डिपॉजिट स्कीम या गोल्ड बॉन्ड से बात कैसे बनेगी? इनवेस्टर्स अपना गोल्ड बैंक के पास जमा करेंगे और रिसीट्स या सर्टिफिकेट्स लेंगे। बैंक उस गोल्ड के आधार पर लोन देगा। बैंक गोल्ड डिपॉजिट पर इंटरेस्ट भी देगा। यह इस बात पर निर्भर करेगा कि गोल्ड लोन पर उसे कितना ब्याज मिलता है। हालांकि इस मॉडल में कुछ जटिलताएं भी हैं।

पहली तो यही है कि गोल्ड के साथ प्राइस रिस्क है। जब कोई सात साल के लिए गोल्ड डिपॉजिट करता है तो उसे मैच्योरिटी पर उतनी ही मात्रा में गोल्ड मिलने की उम्मीद रहती है। अगर समय के साथ गोल्ड प्राइस बढ़ जाए तो बैंक के सामने डिपॉजिट की गई मात्रा से ज्यादा गोल्ड लौटाने कर रिस्क रहता है। यह 1000 रुपये का डिपॉजिट लेकर मैच्योरिटी पर उतनी ही रकम लौटाने से ज्यादा जटिल मामला है। दूसरी बात यह है कि सबको यह आइडिया रास नहीं आएगा कि डिपॉजिट किया गया गोल्ड पिघलाकर बेच दिया जाए। किसी भी गोल्ड बैंक को बॉरोइंग और लेंडिंग, दोनों ही सिरों पर गोल्ड और कैश के बीच एक पुल की तरह काम करना होगा। गोल्ड डिपॉजिट या बॉन्ड ऑफर करने वाले बैंक को लगातार गोल्ड को कैश में और कैश को गोल्ड में कन्वर्ट करते रहना होगा। और यह सब मुनाफे के लिए करना होगा। इसमें कैपिटल रिक्वायरमेंट्स, हेजिंग कॉस्ट और एसेट-लायबिलिटी मिसमैच के पहलू सामने आएंगे।

बजट में सरकार ने जिस गोल्ड बॉन्ड और गोल्ड डिपॉजिट का प्रस्ताव किया है, उसका मैनेजमेंट बुलियन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया जैसी किसी इकाई के हाथ में देना होगा। गोल्ड डिपॉजिट या बॉन्ड ऑफर करने वाली इकाई को गोल्ड ज्वैलरी, कॉइंस और बार भी स्वीकार करने होंगे। उसे गोल्ड की खरीद-फरोख्त के दोतरफा कोट्स देने होंगे, स्टोरेज और बीमा सुविधा देनी होगी और दूसरे फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट्स के साथ अपने गोल्ड स्टॉक की स्वापिंग, ट्रेडिंग और हेजिंग के लिए तैयार रहना होगा। इस प्रॉडक्ट की गाइडलाइंस सामने आने पर ही पता चलेगा कि इससे खेल बदलेगा या नहीं।

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