धीरेंद्र कुमार
नैशनल पेंशन सिस्टम के 10 साल पूरे होने के मौके पर यह कहना गलत नहीं होगा कि यह कमोबेश सेटल हो गया है। रिटायरमेंट सेविंग के लिए सिंपल प्रॉडक्ट के तौर पर इसे लाया गया था, लेकिन एनपीएस की शुरुआत उतार-चढ़ाव से भरी रही। अभी भी इसका दायरा सीमित है। सरकारी कर्मचारियों को अपने पेंशन के लिए एनपीएस के जरिये अनिवार्य रूप से बचत करनी पड़ती है। अगर उन्हें छोड़ दें तो इसका फायदा उठाने वालों की संख्या बहुत अधिक नहीं है। एनपीएस का वॉलंटरी यूज काफी कम है। हालांकि, 50 हजार रुपये की अतिरिक्त टैक्स छूट मिलने से अब इस सिचुएशन में बदलाव हो रहा है।
इसके बावजूद एनपीएस की राह में कुछ दिक्कतें हैं, लेकिन इसकी कई खूबियां भी हैं। रिटायरमेंट प्रॉडक्ट के रूप में इसकी कॉस्ट काफी कम है। सबसे अच्छी बात यह है कि इसका इनवेस्टमेंट ट्रैक रिकॉर्ड शानदार रहा है। रिटायरमेंट सेविंग का यह सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। आखिर इसका मकसद यही है कि रिटायरमेंट के बाद एनपीएस में निवेश करने वाले के पास अच्छी संपत्ति हो। अगर कोई पेंशन सिस्टम इस वादे पर खरा उतरता है तो बाकी चीजें अपने आप ठीक हो जाएंगी।
एनपीएस के इनवेस्टमेंट मॉडल पर पहले जिन लोगों ने सवाल खड़े किए थे, आज उनकी बोलती बंद हो गई है। इसने शानदार रिटर्न दिया है। आप vro.in/nps पर जाकर रिटर्न चेक कर सकते हैं। वैल्यू रिसर्च भी एनपीएस के सभी प्लान का विश्लेषण देती है। इसके अलावा, फंड की कम इनवेस्टमेंट कॉस्ट का इसके रिटर्न पर पॉजिटिव असर दिख रहा है। लंबी अवधि में इसका कहीं ज्यादा फायदा होगा। आप जितने समय तक एनपीएस में निवेशित रहेंगे, कम कॉस्ट का कंपाउंडिंग इफेक्ट उतना अधिक होगा।
पिछले साल एनपीएस से जुड़ी टैक्स प्रॉब्लम का कुछ हद तक समाधान हुआ। दिसंबर 2018 तक एनपीएस में स्पिल्ट टैक्सेशन स्ट्रक्चर था, जो किसी अन्य सेविंग प्रॉडक्ट की तुलना में कहीं ज्यादा पेचीदा था। इसके मुताबिक, रिटायरमेंट पर एनपीएस मेंबर को 40 पर्सेंट फंड से एन्युइटी प्रॉडक्ट खरीदना पड़ता था और यह रकम टैक्स फ्री होती थी। बाकी का फंड निकाला जा सकता था और उस पर टैक्स चुकाना पड़ता था।
नैशनल पेंशन सिस्टम के 10 साल पूरे होने के मौके पर यह कहना गलत नहीं होगा कि यह कमोबेश सेटल हो गया है। रिटायरमेंट सेविंग के लिए सिंपल प्रॉडक्ट के तौर पर इसे लाया गया था, लेकिन एनपीएस की शुरुआत उतार-चढ़ाव से भरी रही। अभी भी इसका दायरा सीमित है। सरकारी कर्मचारियों को अपने पेंशन के लिए एनपीएस के जरिये अनिवार्य रूप से बचत करनी पड़ती है। अगर उन्हें छोड़ दें तो इसका फायदा उठाने वालों की संख्या बहुत अधिक नहीं है। एनपीएस का वॉलंटरी यूज काफी कम है। हालांकि, 50 हजार रुपये की अतिरिक्त टैक्स छूट मिलने से अब इस सिचुएशन में बदलाव हो रहा है।
इसके बावजूद एनपीएस की राह में कुछ दिक्कतें हैं, लेकिन इसकी कई खूबियां भी हैं। रिटायरमेंट प्रॉडक्ट के रूप में इसकी कॉस्ट काफी कम है। सबसे अच्छी बात यह है कि इसका इनवेस्टमेंट ट्रैक रिकॉर्ड शानदार रहा है। रिटायरमेंट सेविंग का यह सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। आखिर इसका मकसद यही है कि रिटायरमेंट के बाद एनपीएस में निवेश करने वाले के पास अच्छी संपत्ति हो। अगर कोई पेंशन सिस्टम इस वादे पर खरा उतरता है तो बाकी चीजें अपने आप ठीक हो जाएंगी।
एनपीएस के इनवेस्टमेंट मॉडल पर पहले जिन लोगों ने सवाल खड़े किए थे, आज उनकी बोलती बंद हो गई है। इसने शानदार रिटर्न दिया है। आप vro.in/nps पर जाकर रिटर्न चेक कर सकते हैं। वैल्यू रिसर्च भी एनपीएस के सभी प्लान का विश्लेषण देती है। इसके अलावा, फंड की कम इनवेस्टमेंट कॉस्ट का इसके रिटर्न पर पॉजिटिव असर दिख रहा है। लंबी अवधि में इसका कहीं ज्यादा फायदा होगा। आप जितने समय तक एनपीएस में निवेशित रहेंगे, कम कॉस्ट का कंपाउंडिंग इफेक्ट उतना अधिक होगा।
पिछले साल एनपीएस से जुड़ी टैक्स प्रॉब्लम का कुछ हद तक समाधान हुआ। दिसंबर 2018 तक एनपीएस में स्पिल्ट टैक्सेशन स्ट्रक्चर था, जो किसी अन्य सेविंग प्रॉडक्ट की तुलना में कहीं ज्यादा पेचीदा था। इसके मुताबिक, रिटायरमेंट पर एनपीएस मेंबर को 40 पर्सेंट फंड से एन्युइटी प्रॉडक्ट खरीदना पड़ता था और यह रकम टैक्स फ्री होती थी। बाकी का फंड निकाला जा सकता था और उस पर टैक्स चुकाना पड़ता था।
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