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Channel: Mutual Funds in Hindi - म्यूचुअल फंड्स निवेश, पर्सनल फाइनेंस, इन्वेस्टमेंट के तरीके, Personal Finance News in Hindi | Navbharat Times
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चार से अधिक म्यूचुअल फंड स्कीम में निवेश करना बेवकूफी

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धीरेंद्र कुमार
हमें स्कूल में ही यह कहावत बताई जाती है कि 'सारे अंडे एक ही टोकरी में नहीं रखने चाहिए।' बड़े होने के बाद जब हम लोगों ने निवेश करना शुरू किया तो पता चला कि यह तो इसका भी बुनियादी सिद्धांत है। मार्केट की भाषा में इसे डायवर्सिफिकेशन यानी जोखिम कम करने की रणनीति कहते हैं।

इस वजह से म्यूचुअल फंड इन्वेस्टर्स को लगता है कि उन्हें एक या दो नहीं बल्कि कई फंड्स में पैसे लगाने चाहिए। उन्हें लगता है कि एक फंड में पैसा लगाने से बेहतर दो फंड में निवेश करना और दो से बेहतर तीन और तीन से बेहतर चार हैं। क्या इसकी कोई अधिकतम सीमा भी है? क्या 9 फंड के बजाय 10 फंड में निवेश करना अच्छा होगा? 20 फंड में निवेश या 50 या यहां तक कि 100 फंड में निवेश करने पर आपकी क्या राय है? इसे समझिए कि एक सीमा के बाद अधिक फंड में निवेश करने से डायवर्सिफिकेशन कहीं पीछे छूट जाता है। बहुत अधिक फंड में पैसा लगाने से फायदा नहीं होता और एक हद के बाद यह हास्यास्पद हो जाता है।

कई निवेशकों को लगता है कि डायवर्सिफिकेशन को कुछ फंड तक सीमित रखने की बात अजीब है। कुछ साल पहले किसी ने मुझसे पूछा था कि उन्हें कितने फंडों में निवेश करना चाहिए? मैंने उनसे कहा कि तीन या चार फंड में निवेश करना पर्याप्त होगा। उन्होंने बाद में अपना पोर्टफोलियो मुझे ईमेल पर भेजा। तब मुझे लगा कि उनसे यह कहना अच्छा होता कि तीन या चार फंड से अधिक में निवेश नहीं करना चाहिए। मेरे जवाब का मतलब उन्होंने यह लगाया कि तीन या चार फंड न्यूनतम सीमा है।

निवेशकों को लगता है कि कई फंड में निवेश करने से ही डायवर्सिफिकेशन का मकसद पूरा होता है, लेकिन सच तो यह है कि एक सीमा के बाद अडिशनल डायवर्सिफिकेशन फिजूल होता है। इसे समझने के लिए यह देखना होगा कि म्यूचुअल फंड कैसे काम करते हैं। आप उन्हें इक्विटी फंड के लिए जो पैसा देते हैं, वे उसे शेयरों में लगाते हैं। अगर आप अलग-अलग कई फंड में निवेश करते हैं और वे एक जैसे शेयरों में निवेश कर रहे हों तो वह डायवर्सिफिकेशन नहीं होगा।

आखिर हम डायवर्सिफिकेशन क्यों चाहते हैं? इसका मकसद है कि एक साथ आपके सारे निवेश खराब परफॉर्म न करें। अगर कोई खास सेक्टर या कंपनी खराब परफॉर्म कर रही हो और उसमें आपने कम पैसा लगाया हो तो ओवरऑल रिटर्न पर उसका असर नहीं पड़ेगा। डायवर्सिफिकेशन अलग-अलग साइज की कंपनियों के जरिये भी किया जाता है। कई बार ऐसा होता है कि बड़ी कंपनियां अच्छा परफॉर्म करती हैं तो कभी छोटी कंपनियों से अधिक रिटर्न मिलता है। डायवर्सिफिकेशन ज्योग्राफी के आधार पर भी किया जा सकता है। जब पूरे बाजार में गिरावट आ रही हो, तब डायवर्सिफिकेशन का कोई फायदा नहीं होता।

जरूरत से अधिक फंड में निवेश लोग इसलिए करते हैं क्योंकि डिस्ट्रीब्यूटर या एजेंट उन्हें फंड बेचता है। वह ऐसा इसलिए करता है क्योंकि उसे इस पर अधिक कमीशन मिलता है। निवेशक को डायवर्सिफिकेशन का असल मकसद पता नहीं होता, इसलिए उसे यह लगता है कि ज्यादा फंड होने से उसका रिस्क कम हो रहा है। निवेशकों को हर तीसरे महीने यह देखना चाहिए कि जिस मकसद से उन्होंने म्यूचुअल फंड में पैसा लगाया है, वह पूरा हो रहा है या नहीं। मुझे लगता है कि आदर्श स्थिति में आपको तीन या चार फंड से अधिक में निवेश नहीं करना चाहिए। यह लगाई जाने वाली रकम पर भी निर्भर करता है। अगर कोई हर महीने 5 से 6 हजार रुपये लगा रहा हो तो उसके लिए एक या दो बैलेंस्ड फंड काफी होंगे।

(लेखक वैल्यू रिसर्च के सीईओ हैं)

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