प्रशांत महेश, मुंबई
वेल्थ मैनेजरों का कहना है कि फिक्स्ड इनकम इन्वेस्टर्स को ऐसी स्कीमों पर विचार करना चाहिए, जिन्होंने एएए रेटिंग वाले बॉन्ड्स में ज्यादा निवेश किया हो। वे निवेशकों को लिक्विड और अल्ट्रा शॉर्ट टर्म फंड्स के अलावा सरकारी कंपनियों के टैक्स फ्री बॉन्ड्स में भी निवेश करने की सलाह दे रहे हैं।
मोतीलाल ओसवाल वेल्थ मैनेजमेंट में इन्वेस्टमेंट अडवाइजरी के हेड आशीष शंकर ने कहा, 'पिछले पांच महीने से जिस तरह की खबरें आ रही हैं, उन्हें देखते हुए निवेशक जोखिम से बचने की कोशिश कर रहे हैं।' शंकर ने सलाह दी कि निवेशकों को अपने पोर्टफोलियो में बड़ा हिस्सा एएए रेटिंग वाले बैंकिंग और पीएसयू फंड्स को देना चाहिए। उन्होंने कहा कि 20 प्रतिशत हिस्सा तीन साल के टाइमफ्रेम के साथ क्रेडिट रिस्क फंड्स में लगाना चाहिए।
उनकी सलाह है कि ऐक्सिस बैंकिंग ऐंड पीएसयू डेट फंड और आईडीएफसी बैंकिंग ऐंड पीएसयू डेट फंड ठीक हैं। शंकर का मानना है कि ऐसे पोर्टफोलियो से निवेशक 8 प्रतिशत का प्री-टैक्स रिटर्न हासिल कर सकते हैं और निवेश तीन साल से ज्यादा बनाए रखा जाए तो वे इंडेक्सेशन बेनिफिट के जरिए 7.5 प्रतिशत पोस्ट-टैक्स रिटर्न हासिल कर सकते हैं।
जोखिम से बचने वालों के लिए सेकेंडरी मार्केट में लिस्टेड टैक्स फ्री बॉन्ड्स अच्छा विकल्प हो सकते हैं। सिनर्जी कैपिटल के एमडी विक्रम दलाल ने कहा, 'निवेशकों को 6.25-6.35 प्रतिशत का यील्ड मिल सकता है। सबसे ऊंचे टैक्स ब्रैकेट वाले निवेशकों के लिए यह अच्छा रिटर्न है।' एनएचएआई, पीएफसी, आरईसी, हुडको और एएए रेटिंग वाली कई अन्य पीएसयू के बॉन्ड्स सेकेंडरी मार्केट में उपलब्ध हैं और एक बॉन्ड के लॉट में इनमें ट्रेडिंग की जा सकती है।
वेल्थ मैनेजरों का यह भी मानना है कि अगर पोर्टफोलियो में शामिल किसी स्कीम का ऐसे इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश हो, जिसकी पैरंट कंपनी का शेयर गिर जाए या पैरंट कंपनी के प्रमोटर ने ज्यादा स्टेक गिरवी रख दिया हो तो भी निवेशकों को जल्दबाजी में कदम नहीं उठाना चाहिए।
एग्जियम फाइनैंशल सर्विसेज के सीईओ दीपक छाबड़िया ने कहा, 'निर्णय करने से पहले सारे समीकरणों पर नजर डाल लें।' उदाहरण के लिए, अगर आपके पास किसी ऐसे क्रेडिट रिस्क फंड की यूनिट्स हों, जिसकी होल्डिंग्स में 4 प्रतिशत हिस्सा ऐसी कंपनी में निवेश का हो, जिसकी पैरेंट कंपनी का शेयर गिर गया हो तो रेटिंग डाउनग्रेड का रिस्क होगा, जिससे राइट ऑफ की नौबत आ सकती है। मान लें कि 50 प्रतिशत राइट ऑफ हो तो स्कीम में आपके निवेश पर अधिक-से-अधिक आंच 2 प्रतिशत की आएगी। अगर ऐसी स्कीम में आपको निवेश किए हुए सालभर नहीं हुआ हो तो आपको एक प्रतिशत एग्जिट लोड देना होगा। साथ ही, अगर आप ऊंचे टैक्स ब्रेकेट में हों तो आपको शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस टैक्स भी चुकाना होगा। आपके गेंस पर 30 प्रतिशत टैक्स और एग्जिट लोड को मिलाकर देखें तो यह पोर्टफोलियो में राइट डाउन से हो सकने वाले नुकसान से ज्यादा होगा।
फिक्स्ड इनकम इन्वेस्टर्स सितंबर 2018 में आईएलऐंडएफएस क्राइसिस सामने आने के बाद से चिंतित हैं। कुछ डेट फंड्स ने आईएलऐंडएफएस को डाउनग्रेड किए जाने के बाद उसमें अपने निवेश को राइट ऑफ कर दिया था। वहीं पिछले सप्ताह जी एंटरटेनमेंट के शेयरों में बड़ी गिरावट आने से इस ग्रुप की कई कंपनियों की रेटिंग डाउनग्रेड होने का रिस्क पैदा हो गया, जिनकी डेट सिक्यॉरिटीज में म्यूचुअल फंड्स ने निवेश किया है।
वेल्थ मैनेजरों का कहना है कि फिक्स्ड इनकम इन्वेस्टर्स को ऐसी स्कीमों पर विचार करना चाहिए, जिन्होंने एएए रेटिंग वाले बॉन्ड्स में ज्यादा निवेश किया हो। वे निवेशकों को लिक्विड और अल्ट्रा शॉर्ट टर्म फंड्स के अलावा सरकारी कंपनियों के टैक्स फ्री बॉन्ड्स में भी निवेश करने की सलाह दे रहे हैं।
मोतीलाल ओसवाल वेल्थ मैनेजमेंट में इन्वेस्टमेंट अडवाइजरी के हेड आशीष शंकर ने कहा, 'पिछले पांच महीने से जिस तरह की खबरें आ रही हैं, उन्हें देखते हुए निवेशक जोखिम से बचने की कोशिश कर रहे हैं।' शंकर ने सलाह दी कि निवेशकों को अपने पोर्टफोलियो में बड़ा हिस्सा एएए रेटिंग वाले बैंकिंग और पीएसयू फंड्स को देना चाहिए। उन्होंने कहा कि 20 प्रतिशत हिस्सा तीन साल के टाइमफ्रेम के साथ क्रेडिट रिस्क फंड्स में लगाना चाहिए।
उनकी सलाह है कि ऐक्सिस बैंकिंग ऐंड पीएसयू डेट फंड और आईडीएफसी बैंकिंग ऐंड पीएसयू डेट फंड ठीक हैं। शंकर का मानना है कि ऐसे पोर्टफोलियो से निवेशक 8 प्रतिशत का प्री-टैक्स रिटर्न हासिल कर सकते हैं और निवेश तीन साल से ज्यादा बनाए रखा जाए तो वे इंडेक्सेशन बेनिफिट के जरिए 7.5 प्रतिशत पोस्ट-टैक्स रिटर्न हासिल कर सकते हैं।
जोखिम से बचने वालों के लिए सेकेंडरी मार्केट में लिस्टेड टैक्स फ्री बॉन्ड्स अच्छा विकल्प हो सकते हैं। सिनर्जी कैपिटल के एमडी विक्रम दलाल ने कहा, 'निवेशकों को 6.25-6.35 प्रतिशत का यील्ड मिल सकता है। सबसे ऊंचे टैक्स ब्रैकेट वाले निवेशकों के लिए यह अच्छा रिटर्न है।' एनएचएआई, पीएफसी, आरईसी, हुडको और एएए रेटिंग वाली कई अन्य पीएसयू के बॉन्ड्स सेकेंडरी मार्केट में उपलब्ध हैं और एक बॉन्ड के लॉट में इनमें ट्रेडिंग की जा सकती है।
वेल्थ मैनेजरों का यह भी मानना है कि अगर पोर्टफोलियो में शामिल किसी स्कीम का ऐसे इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश हो, जिसकी पैरंट कंपनी का शेयर गिर जाए या पैरंट कंपनी के प्रमोटर ने ज्यादा स्टेक गिरवी रख दिया हो तो भी निवेशकों को जल्दबाजी में कदम नहीं उठाना चाहिए।
एग्जियम फाइनैंशल सर्विसेज के सीईओ दीपक छाबड़िया ने कहा, 'निर्णय करने से पहले सारे समीकरणों पर नजर डाल लें।' उदाहरण के लिए, अगर आपके पास किसी ऐसे क्रेडिट रिस्क फंड की यूनिट्स हों, जिसकी होल्डिंग्स में 4 प्रतिशत हिस्सा ऐसी कंपनी में निवेश का हो, जिसकी पैरेंट कंपनी का शेयर गिर गया हो तो रेटिंग डाउनग्रेड का रिस्क होगा, जिससे राइट ऑफ की नौबत आ सकती है। मान लें कि 50 प्रतिशत राइट ऑफ हो तो स्कीम में आपके निवेश पर अधिक-से-अधिक आंच 2 प्रतिशत की आएगी। अगर ऐसी स्कीम में आपको निवेश किए हुए सालभर नहीं हुआ हो तो आपको एक प्रतिशत एग्जिट लोड देना होगा। साथ ही, अगर आप ऊंचे टैक्स ब्रेकेट में हों तो आपको शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस टैक्स भी चुकाना होगा। आपके गेंस पर 30 प्रतिशत टैक्स और एग्जिट लोड को मिलाकर देखें तो यह पोर्टफोलियो में राइट डाउन से हो सकने वाले नुकसान से ज्यादा होगा।
फिक्स्ड इनकम इन्वेस्टर्स सितंबर 2018 में आईएलऐंडएफएस क्राइसिस सामने आने के बाद से चिंतित हैं। कुछ डेट फंड्स ने आईएलऐंडएफएस को डाउनग्रेड किए जाने के बाद उसमें अपने निवेश को राइट ऑफ कर दिया था। वहीं पिछले सप्ताह जी एंटरटेनमेंट के शेयरों में बड़ी गिरावट आने से इस ग्रुप की कई कंपनियों की रेटिंग डाउनग्रेड होने का रिस्क पैदा हो गया, जिनकी डेट सिक्यॉरिटीज में म्यूचुअल फंड्स ने निवेश किया है।
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