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Channel: Mutual Funds in Hindi - म्यूचुअल फंड्स निवेश, पर्सनल फाइनेंस, इन्वेस्टमेंट के तरीके, Personal Finance News in Hindi | Navbharat Times
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वर्किंग कैपिटल देखकर चुनें पोर्टफोलियो के सितारे

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समीर भारद्वाज, नई दिल्ली
किसी कंपनी की सेहत का पता लगाने का वर्किंग कैपिटल अहम पैमाना होता है। उसकी वजह यह है कि मुनाफे में चलने वाली कंपनी भी अगर वर्किंग कैपिटल को ठीक से मैनेज नहीं करती है, तो वह दिवालिया हो सकती है। वर्किंग कैपिटल से तय होता है कि रोजमर्रा के कामकाज के लिए कंपनी को कितने संसाधन की जरूरत है। दरअसल, यह एक अकाउंटिंग टर्म है, जिससे यह पता चलता है कि किसी भी समय कंपनी के पास कितना शॉर्ट टर्म कैश है।

क्या है वर्किंग कैपिटल?
एक साल से कम अवधि के रिसीट और पेमेंट्स वाले करेंट ऐसेट्स और करेंट लायबिलिटी के अंतर को वर्किंग कैपिटल कहते हैं। करेंट ऐसेट्स में कंपनी के ऐसे सामान शामिल होते हैं, जो अभी नहीं बिके हैं। ग्राहकों को बेचे गए सामान के बदले मिलने वाला भुगतान इसमें शामिल होता है। इसके साथ कंपनी के पास जो कैश है, वह भी इसका हिस्सा होता है। दूसरी तरफ, करेंट लायबिलिटी में शॉर्ट टर्म कर्ज, कंपनी ने उधार पर जो माल खरीदा है उसकी रकम, बैंक ओवरड्राफ्ट और अन्य शॉर्ट टर्म देनदारियां शामिल होती हैं।

वर्किंग कैपिटल नेगेटिव तो जोखिम
किसी भी कंपनी का वर्किंग कैपिटल पॉजिटिव होना चाहिए। जिन फर्मों का वर्किंग कैपिटल नेगेटिव है (जिनकी करेंट लायबिलिटी, करेंट ऐसेट्स से ज्यादा है), वे वित्तीय जोखिम में फंस सकती हैं। इसलिए ऐसी कंपनियों की स्टडी ध्यान से करनी चाहिए। बिजनस का नेचर और साइज क्या है, क्या सेल्स में सीजन के हिसाब से उतार-चढ़ाव होता है, कच्चे माल के दाम में बदलाव, प्रॉडक्शन साइकल कितना लंबा है, इन सबका कंपनी के वर्किंग कैपिटल पर असर पड़ता है। वर्किंग कैपिटल टर्नओवर, करेंट रेशियो और क्विक रेशियो जैसे फाइनैंशल रेशियो से किसी कंपनी की लिक्विडिटी का असरदार ढंग से पता लगाया जा सकता है।

इसे कहते हैं वर्किंग कैपिटल टर्नओवर
सेल्स में वर्किंग कैपिटल से भाग देने पर वर्किंग कैपिटल टर्नओवर मिलता है। आमतौर पर यह रेशियो जितना अधिक होता है, वह उतना ही अच्छा होता है। इससे पता चलता है कि प्रति रुपये के वर्किंग कैपिटल के इस्तेमाल से कंपनी ने कितनी सेल्स हासिल की। दूसरी तरफ, करेंट रेशियो, करेंट ऐसेट्स और करेंट लायबिलिटी का रेशियो होता है। इसे एक से अधिक होना चाहिए। अगर ऐसा है तो इसका मतलब है कि कंपनी के पास करेंट लायबिलिटी से अधिक करेंट ऐसेट्स हैं। करेंट रेशियो का एक और वर्जन क्विक रेशियो है। इसे एसिड टेस्ट रेशियो भी कहते हैं। इसमें न्यूमरेटर के बेहद लिक्विड ऐसेट्स यानी जिन्हें तुरंत बेचा जा सकता है, वे शामिल होते हैं। इनमें कैश, बेचे जाने लायक सिक्यॉरिटीज और अकाउंट रिसीवेबल्स शामिल होते हैं। क्विक रेशियो में करेंट ऐसेट्स की इन्वेंटरी शामिल नहीं होती क्योंकि उसे इलिक्विड माना जाता है।

कंपनियों की पहचान का फंडा
हमने ऐसी कंपनियों की पहचान करने की कोशिश की, जिनकी पिछले पांच वित्त वर्षों में वर्किंग कैपिटल एफिशिएंसी बढ़िया रही है। हमने इसके लिए 2013-14 के बाद के डेटा लिए। हमने 500 करोड़ से अधिक मार्केट वाली 890 कंपनियों को चुना। इनमें से हमने 2017-18 में पिछले वित्त वर्ष की तुलना में सर्वोच्च वर्किंग कैपिटल टर्नओवर, करेंट रेशियो और क्विक रेशियो वाली कंपनियों को अलग कर लिया। इन कंपनियों पर हमने 2017-18 के लिए 1 से अधिक करेंट रेशियो का फिल्टर लगाया। इस टेस्ट में कुल मिलाकर 19 कंपनियां पास हुईं। ब्लूमबर्ग के कंसेंशस एस्टिमेट के मुताबिक इनमें से किन पांच कंपनियों से अगले एक साल में सबसे ज्यादा रिटर्न मिल सकता है, उन पर हम यहां एक नजर डाल रहे हैं।

अंबर एंटरप्राइजेज
यह एयर कंडीशनर ओरिजिनल इक्विपमेंट मैन्युफैक्चरर और डिजाइन इंडस्ट्री को सॉल्यूशन देती है। यह रूम एसी और इससे रिलेटेड कंपोनेंट्स बनाती है। एसबीआई कैप सिक्यॉरिटीज की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, रूम एसी सेगमेंट अभी काफी छोटा है। इसके विस्तार के साथ आगे चलकर कंपनी की ग्रोथ बढ़िया रहने की उम्मीद है। ओरिजिनल डिजाइन मैन्युफैक्चरर्स से हायर वॉलेट शेयर और मार्केट शेयर में बढ़ोतरी को देखते हुए ऐसा लगता है कि मीडियम टर्म में कंपनी की ग्रोथ मजबूत रह सकती है।

कोलगेट पामोलिव (इंडिया)

कंपनी पर्सनल और ओरल केयर बिजनस में है। जेपी मॉर्गन कंपनी की वॉल्यूम ग्रोथ में रिकवरी की उम्मीद कर रहा है। उसका कहना है कि कोलगेट पामोलिव के मार्केट शेयर में बढ़ोतरी होगी। कंपनी का मार्जिन प्रोफाइल बेहतर है और यह अच्छा-खासा फ्री कैश फ्लो जेनरेट करती है। कंपनी के डिविडेंड पेआउट में भी सुधार हो रहा है।

ग्रेफाइट इंडिया
कंपनी ग्रेफाइट इलेक्ट्रोड्स और कार्बन एवं ग्रेफाइट स्पेशलिटी प्रॉडक्ट्स बनाती है। ऐनालिस्टों का कहना है कि ग्रेफाइट इलेक्ट्रोड्स से ऊंचे दाम और हेल्दी ऑपरेटिंग एनवायरन्मेंट से कंपनी को फायदा होगा। चीन में सख्त पर्यावरण नियमों के चलते इलेक्ट्रिक कार फर्नेस की मांग बढ़ रही है। इससे भी इलेक्ट्रोड्स की मांग मजबूत बने रहने की उम्मीद है।

इंडिया सीमेंट्स
यह दक्षिण भारत की प्रमुख सीमेंट कंपनी है। ऐनालिस्टों का कहना है कि दक्षिण भारत में सीमेंट की मांग बढ़ने से कंपनी को लाभ होगा। इसकी प्लांट एफिशिएंसी में सुधार हो रहा है और वह सीमेंट की कीमतें भी बढ़ा रही है। इससे आगे चलकर कंपनी की ग्रोथ बढ़िया रह सकती है। सरकार के अफर्डेबल हाउसिंग पर जोर देने से भी सीमेंट की मांग मजबूत बने रहने की उम्मीद है।

VRL लॉजिस्टिक्स
कंपनी गुड्स और पैसेंजर ट्रांसपोर्टेशन सेगमेंट में है। यह इस सेक्टर की देश की बड़ी कंपनिीयों में से एक है और इसे जीएसटी के लागू होने से फायदा हो रहा है। ऐनालिस्टों का कहना है कि अभी कंपनी को फ्यूल की कीमत बढ़ने से दिक्कत हो रही है। कंपनी की प्रॉफिटेबिलिटी इस पर निर्भर करेगी कि भविष्य में फ्यूल प्राइसेज कैसे रहते हैं और वीआरएल इसका कितना बड़ा हिस्सा ग्राहकों पर ट्रांसफर कर पाती है।

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