Quantcast
Channel: Mutual Funds in Hindi - म्यूचुअल फंड्स निवेश, पर्सनल फाइनेंस, इन्वेस्टमेंट के तरीके, Personal Finance News in Hindi | Navbharat Times
Viewing all articles
Browse latest Browse all 1906

सलाहकार के बिना निवेश करना सबके वश की बात नहीं

$
0
0

धीरेंद्र कुमार/नई दिल्ली
म्यूचुअल फंड्स रेग्युलेटर के निर्देश पर सभी फंड्स के डायरेक्ट टु कस्टमर ऑप्शन शुरू किए हुए पांच साल से ज्यादा समय हो चुका है और इस दौरान अधिकतर पढ़ने-लिखने वाले निवेशकों ने डायरेक्ट फंड्स का फायदा समझ लिया है। उन्हें पता है कि सभी फंड्स में 'डायरेक्ट फ्रॉम द मैन्युफैक्चरर' मॉडल होता है, जिसमें निवेशकों को हर फंड का एक 'डायरेक्ट' इक्विवैलेंट मिल सकता है। ये अपेक्षाकृत सस्ते भी होते हैं। इनमें म्यूचुअल फंड कंपनी कम एक्सपेंस लेती है क्योंकि उसे 'रिटेलर' को पेमेंट नहीं करना होता है। सस्ता होने से रिटर्न बढ़ने का चांस बन जाता है। सवाल यह है कि डायरेक्ट फंड्स से कितना ज्यादा रिटर्न मिलता है?

दरअसल यह एक छोटी रकम होती है, लेकिन कई वर्षों तक इसकी कंपाउंडिंग होती रहती है और फिर यह बढ़ जाती है। तो क्या डायरेक्ट फंड्स सभी निवेशकों के लिए उपयुक्त हैं? ऐसा नहीं है। डायरेक्ट और रेग्युलर प्लान के रिटर्न में सालाना एक पर्सेंट या इसके आसपास का फर्क ही यह रकम होती है। इसे लोग डिस्ट्रीब्यूटर की सेवाओं के लिए चुकाई गई रकम मान सकते हैं। पर्याप्त जानकारी जुटाकर डू इट योरसेल्फ की राह पर चलने वालों को छोड़ दें तो हमेशा सस्ते की तलाश में रहने की प्रवृत्ति इस मामले में कई निवेशकों के लिए फायदेमंद नहीं होगी।

म्यूचुअल फंड्स का चार्ज
कोई भी म्यूचुअल फंड आपके लिए जो भी करता है, उसकी फीस आपके निवेश से कटती है। इक्विटी फंड्स के लिए फंड कंपनियां 1.75 पर्सेंट से लेकर 2.5 पर्सेंट तक के बीच स्लैब्स में चार्ज करती हैं। जीएसटी भी लगता है। इन सबको मिलाकर एक्सपेंस 3 पर्सेंट के आसपास पहुंच जाता है। चूंकि रेट सालाना आधार पर बताए जाते हैं, लेकिन पैसा छोटे-छोटे टुकड़ों में रोज काटा जाता है। यह रकम फंड कंपनी को जाती है और इसका कुछ हिस्सा फंड डिस्ट्रीब्यूटर के पास भी जाता है, जिसने आपको फंड बेचा हो। इस बात का मतलब है कि म्यूचुअल फंड्स काफी चार्ज वसूलते हैं, लेकिन यह डिडक्शन किसी भी म्यूचुअल फंड में सभी निवेशकों के लिए एक समान होता है।

डायरेक्ट और रेग्युलर इन्वेस्टमेंट का फर्क
डायरेक्ट और रेग्युलर इन्वेस्टमेंट का फर्क समझने के लिए पहले देखते हैं कि अडवाइजर की आदर्श भूमिका कैसी होनी चाहिए। एक पुरानी अमेरिकी फाइनैंशल कंपनी ने इस संबंध में एक लिस्ट बनाई थी। उसके मुताबिक अडवाइजर को भरोसा बढ़ाना चाहिए, गोल प्लानिंग, पोर्टफोलियो बनाना चाहिए, पोर्टफोलियो रीबैलेंस करना चाहिए और मार्केट में गिरावट के वक्त हालात के बारे में सही जानकारी देनी चाहिए। अधिकतर निवेशकों को इनमें से कुछ न कुछ सेवाओं की जरूरत होती ही है। बैंक में एफडी एकाउंट खोलने की तरह म्यूचुअल फंड इनवेस्टमेंट आपको पहले से मिल रही कुछ सेवाओं का ऑटोमैटिक एक्सपैंशन नहीं होता है।

डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट कैसे निवेशकों के लिए ठीक?
डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट ऐसे निवेशकों के लिए ठीक है, जो निवेश की विभिन्न तरह की जरूरतों के लिए म्यूचुअल फंड्स की कैटिगरी की समझ रखते हों और इनके बारे में खुद रिसर्च कर सकते हों और इसके बाद किसी इंटरमीडियरी के बिना चुने गए फंड में निवेश की प्रक्रिया पूरी कर सकते हों। निवेश की शुरुआत करने के बाद मार्केट में गिरावट आने और निवेश की वैल्यू घटने पर अगर कोई समझाने वाला मिल जाए तो निवेशक सही राह से नहीं भटकता है। दरअसल डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट के मामले में आपको अपने लिए वे सारे काम करने होते हैं, जो कोई अडवाइजर करता।

यह सब आपको आसान लग रहा है? अगर जवाब हां है तो आप डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट से एक्सट्रा रिटर्न हासिल कर सकते हैं, लेकिन अगर आप नए या अनुभवहीन निवेशक हैं तो बेहतर होगा कि रेग्युलर प्लान में निवेश करें। यह सवाल हालांकि उठ सकता है कि क्या सही अडवाइजर मिलना आसान है, लेकिन यह एक अलग मुद्दा है।

(लेखक वैल्यू रिसर्च के CEO हैं)

मोबाइल ऐप डाउनलोड करें और रहें हर खबर से अपडेट।


Viewing all articles
Browse latest Browse all 1906

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>