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टर्म इंश्योरेंस ले रहे हैं? इन बातों पर जरूर दें ध्यान

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राज खोसला
कुछ सबक बहुत मुश्किल होते हैं, लेकिन इंश्योरेंस पॉलिसी के मामले में ऐसा नहीं होना चाहिए। लाइफ कवर इतना होना चाहिए कि उसमें सभी लायबिलिटीज और फ्यूचर गोल आ जाएं। हालांकि, हमें पॉलिसी के दूसरे पहलुओं में से भी सही विकल्प चुनना जरूरी है। मिसाल के लिए पॉलिसी का उस समय खत्म होना बहुत पीड़ादायक होगा, जब आपको उसकी सबसे ज्यादा जरूरत होगी। आपको ऐसी गलतियों से भी बचना होगा जिनसे पॉलिसी लैप्स हो जाए या फिर क्लेम खारिज हो जाए। हम यहां यह बता रहे हैं कि पॉलिसी खरीदते वक्त किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।

बीमा कंपनी को सही डीटेल दें
इंश्योरेंस कॉन्ट्रैक्ट भरोसे पर चलता है। अगर इंश्योरेंस कंपनी को पता चलता है कि पॉलिसीहोल्डर ने फॉर्म में गलत जानकारी दी है तो कॉन्ट्रैक्ट खारिज हो जाएगा। जो लोग सिगरेट-शराब नहीं पीते, उनके लिए प्रीमियम कम होता है। वहीं, अगर आप स्मोक और ड्रिंक करते हैं तो भूलकर गलत जानकारी न दें। इन आदतों या बीमारियों को बीमा कंपनी से छिपाने पर बाद में क्लेम खारिज हो सकता है। स्मोक और ड्रिंक करते हैं तो उसके बारे में बीमा कंपनी को जरूर बताएं। फैमिली में किसी को डायबिटीज है तो उसकी जानकारी भी बीमा कंपनी को दें। इससे प्रीमियम कुछ हजार रुपये बढ़ सकता है लेकिन नॉमिनी को क्लेम में दिक्कत नहीं आएगी। यह गौर करने वाली बात है कि हर साल 2% लाइफ इंश्योरेंस क्लेम रिजेक्ट हो जाते हैं।

मेडिकल टेस्ट जरूर कराएं
टर्म प्लान हाई वैल्यू कवर होते हैं, इसलिए कंपनियां बायर्स को पॉलिसी जारी करने से पहले कई मेडिकल टेस्ट कराती हैं। हालांकि कुछ मामलों में कंपनी इस पर जोर नहीं देती हैं, बस बायर से अच्छे स्वास्थ्य का घोषणापत्र मांगती हैं। इसमें आपको नुकसान हो सकता है। पॉलिसी होल्डर के असमय निधन पर कंपनी यह दिखाने की कोशिश करती है कि बायर ने पॉलिसी लेते वक्त झूठ बोला था या पुरानी बीमारी छिपाई थी। अगर बायर मेडिकल टेस्ट कराता है तो सारी जिम्मेदारी कंपनी और मेडिकल टेस्ट करने वाले डॉक्टर की होती है। वे नॉमिनी के इंश्योरेंस क्लेम को चुनौती नहीं दे सकेंगे। यह बात गांठ बांध लें, पॉलिसी तभी लें जब कंपनी फुल मेडिकल टेस्ट कराए। तीन साल बाद कोई इंश्योरेंस कंपनी क्लेम खारिज नहीं कर सकतीं या घोषित सूचनाओं को चुनौती नहीं दे सकतीं।

सिर्फ दाम पर न जाएं

प्योर टर्म सबसे सस्ती इंश्योरेंस पॉलिसी होती है क्योंकि इसमें कोई इन्वेस्टमेंट कंपोनेंट नहीं होता। 8,000 से 10,000 रुपये सालाना में एक करोड़ तक का कवर लिया जा सकता है। हालांकि, पॉलिसी लेने का फैसला सिर्फ कम प्रीमियम देखकर नहीं करना चाहिए। ऐसी कंपनी से पॉलिसी लेनी चाहिए, जिसका क्लेम सेटलमेंट का रिकॉर्ड बेदाग हो और कस्टमर ओरिएंटेशन का ठोस रिकॉर्ड हो। 1,000 या 2000 रुपये सस्ती पॉलिसी लेने का क्या फायदा जब आप पूरी तरह आश्वस्त नहीं हैं आपके नहीं होने पर नॉमिनी को क्लेम शर्तिया मिलेगा।

सही अवधि वाली पॉलिसी लें
टर्म प्लान पॉलिसीहोल्डर की मौत पर परिवार की आय का जरिया बनता है। पॉलिसी तब तक के लिए होना जब तक वह काम करते रहना चाहता हो। 55 साल से 65 साल तक या ज्यादा समय के लिए पॉलिसी ली जा सकती है। पॉलिसी इतने कम समय की नहीं होनी चाहिए, जो पॉलिसीहोल्डर के रिटायर होने से पहले खत्म हो जाए। उस समय टर्म पॉलिसी की जरूरत सबसे ज्यादा होती है और तब नर्इ पॉलिसी लेना बहुत महंगा होगा। हो सकता है कि स्वास्थ्य अच्छा नहीं है, यह कहकर कवर देने से मना कर दिया जाए। कुछ कंपनियां 80 से 90 साल तक के लिए पॉलिसी देती हैं। इनमें बीमा धारकों (पॉलिसी होल्डर्स) को बाल बच्चों के लिए विरासत में कुछ संपत्ति छोड़ जाने का अवसर मिलता है। कई बार इनसे नैतिक खतरे भी पैदा होते हैं। जैसे कहीं फैमिली वाले बीमा की रकम के लिए पॉलिसी होल्डर को चिकित्सा सुविधाएं मुहैया कराना बंद ना कर दें।

पीरियोडिसिटी या पेमेंट का तरीका

रिन्यूअल प्रीमियम का पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए। इसका सबसे अच्छा तरीका यही होगा कि बैंक से ईसीएस करा दिया जाए। अगर आप भूल भी जाएंगे, आपका बैंक प्रीमियम चुका देगा। लेकिन यह तब भी लैप्स कर जाएगा, अगर आपके एकाउंट में पैसा नहीं होगा। ज्यादातर इंश्योरेंस कंपनियां सालाना, छमाही, तिमाही या मासिक भुगतान के आधार पर बायर्स को ऑनलाइल टर्म प्लान बेचती हैं। मंथली प्लान सबसे महंगा होता है, लेकिन हर बार कम पैसा निकलता है, इसलिए निवेशकों में बड़ा आकर्षक होता है। कैशफ्लो की दिक्कत न हो तो ऐनुअल प्रीमयम प्लान सबसे अच्छा होता है।

(लेखक मायमनीमंत्रा.कॉम के फाउंडर और एमडी हैं।)

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