मयूर शेट्टी, नई दिल्ली
अप्रैल 2016 से पहले लोन लेने वाले उन लोगों को कुछ राहत मिल सकती है, जिनके होम लोन की दरें उनके बैंकों ने मार्केट रेट्स के अनुसार नहीं बदली हैं। आरबीआई ने बैंकों को निर्देश दिया है कि वे पुराने होम लोन की दरों को मौजूदा मार्केट लिंक्ड बेंचमार्क से जोड़ें।
अप्रैल 2016 से पहले होम लोन को बेस रेट से जोड़ा जाता था और बेस रेट बैंक अपनी मर्जी से तय करते थे। बेस रेट में रेट कट का असर न दिखने की शिकायतें आने के बाद आरबीआई ने फॉर्मूला बेस्ड मार्जिनल कॉस्ट ऑफ लेंडिंग रेट (MCLR) का चलन शुरू किया, जो फंड जुटाने की लागत से जुड़ा था। अप्रैल 2016 के बाद जिन लोगों ने लोन लिया, उन्हें तो एमसीएलआर का फायदा मिला, लेकिन पुराने लोन वाले बेस रेट के मुताबिक पेमेंट करते रहे। हाल में अपने पॉलिसी स्टेटमेंट में आरबीआई ने बैंकों से कहा है कि वे पहली अप्रैल से बेस रेट को एमसीएलआर से लिंक करें।
रिटेल बॉरोअर्स के फायदे की एक और बात यह है कि नॉन-बैंकिंग फाइनेंस कंपनियों को आरबीआई की ऑम्बड्समैन स्कीम के तहत ला दिया गया है। इससे बॉरोअर्स के लिए अपनी शिकायतों का निपटारा कराने में कोई खर्च नहीं करना पड़ेगा। होम लोन कंपनियां आरबीआई के पास एनबीएफसी के रूप में पंजीकृत हैं।
बेस रेट सिस्टम को छोड़े जाने के बाद के 21 महीनों में बैंकों के लिए वेटेज एवरेज लेंडिंग रेट घटी। अप्रैल 2016 में यह 11.23% थी, जो दिसंबर 2017 में 10.26% हो गई। ऐसी कमी का फायदा मुख्य रूप से उन लोगों को मिला है, जिनके मामले में ब्याज दर एमसीएलआर से लिंक है। अधिकतर बैंकों ने फंड जुटाने की अपनी लागत के हिसाब से बेस रेट्स नहीं बदली हैं। हालांकि एसबीआई ने पिछले महीने अपनी बेस रेट 30 बेसिस प्वाइंट्स घटाकर 8.65% कर दी थी।
बैंक ऑफ अमेरिका के इंडिया कंट्री हेड काकू नखाटे ने कहा, 'बेस रेट को एमसीएलआर के मुताबिक करने के सुझाव से आरबीआई के कदमों का फायदा दिलाने में बड़ा असर पड़ेगा। इससे लेंडिग रेट्स घटेंगी।' इस कदम का ऐलान करते हुए आरबीआई के डिप्टी गवर्नर एन एस विश्वनाथन ने कहा था, 'हम मॉनेटरी पॉलिसी में उठाए गए कदमों का असर बेस रेट पर न पड़ने को लेकर चिंतित हैं। हम बेस रेट कैलकुलेशन को एमसीएलआर के मुताबिक कर रहे हैं ताकि मॉनेटरी पॉलिसी से पड़ने वाले असर की राह में बैंकों के पोर्टफोलियो के उस बड़े हिस्से से बाधा न पड़े जो बेस रेट से लिंक है।'
यह साफ नहीं है कि आरबीआई इन दो रेट्स में किस तरह साम्य लाएगा। अभी यही पता है कि भविष्य में बेस रेट से जुड़े लोन एमसीएलआर के अनुसार चलेंगे। एक बैंकर ने कहा, 'आरबीआई ने इससे पहले घोषणा की थी कि वह लंदन इंटरबैंक ऑफर्ड रेट की तरह एक नया मार्केट लिंक्ड बेंचमार्क बेंचमार्क बनाएगा। एमसीएलआर पर फोकस से लग रहा है कि बेंचमार्क बनाने की बात छोड़ दी गई।' फाइनेंस कंपनियों को ऑम्बड्समैन के तहत लाने के बारे में आरबीआई ने कहा कि शुरुआत में डिपॉजिट लेने वाली उन एनबीएफसी को इसके दायरे में लाया जाएगा, जिनका कस्टमर्स से लेनदेन 100 करोड़ रुपये से ज्यादा है। फरवरी के अंत से इसे चरणबद्ध ढंग से लागू किया जाएगा।
अप्रैल 2016 से पहले लोन लेने वाले उन लोगों को कुछ राहत मिल सकती है, जिनके होम लोन की दरें उनके बैंकों ने मार्केट रेट्स के अनुसार नहीं बदली हैं। आरबीआई ने बैंकों को निर्देश दिया है कि वे पुराने होम लोन की दरों को मौजूदा मार्केट लिंक्ड बेंचमार्क से जोड़ें।
अप्रैल 2016 से पहले होम लोन को बेस रेट से जोड़ा जाता था और बेस रेट बैंक अपनी मर्जी से तय करते थे। बेस रेट में रेट कट का असर न दिखने की शिकायतें आने के बाद आरबीआई ने फॉर्मूला बेस्ड मार्जिनल कॉस्ट ऑफ लेंडिंग रेट (MCLR) का चलन शुरू किया, जो फंड जुटाने की लागत से जुड़ा था। अप्रैल 2016 के बाद जिन लोगों ने लोन लिया, उन्हें तो एमसीएलआर का फायदा मिला, लेकिन पुराने लोन वाले बेस रेट के मुताबिक पेमेंट करते रहे। हाल में अपने पॉलिसी स्टेटमेंट में आरबीआई ने बैंकों से कहा है कि वे पहली अप्रैल से बेस रेट को एमसीएलआर से लिंक करें।
रिटेल बॉरोअर्स के फायदे की एक और बात यह है कि नॉन-बैंकिंग फाइनेंस कंपनियों को आरबीआई की ऑम्बड्समैन स्कीम के तहत ला दिया गया है। इससे बॉरोअर्स के लिए अपनी शिकायतों का निपटारा कराने में कोई खर्च नहीं करना पड़ेगा। होम लोन कंपनियां आरबीआई के पास एनबीएफसी के रूप में पंजीकृत हैं।
बेस रेट सिस्टम को छोड़े जाने के बाद के 21 महीनों में बैंकों के लिए वेटेज एवरेज लेंडिंग रेट घटी। अप्रैल 2016 में यह 11.23% थी, जो दिसंबर 2017 में 10.26% हो गई। ऐसी कमी का फायदा मुख्य रूप से उन लोगों को मिला है, जिनके मामले में ब्याज दर एमसीएलआर से लिंक है। अधिकतर बैंकों ने फंड जुटाने की अपनी लागत के हिसाब से बेस रेट्स नहीं बदली हैं। हालांकि एसबीआई ने पिछले महीने अपनी बेस रेट 30 बेसिस प्वाइंट्स घटाकर 8.65% कर दी थी।
बैंक ऑफ अमेरिका के इंडिया कंट्री हेड काकू नखाटे ने कहा, 'बेस रेट को एमसीएलआर के मुताबिक करने के सुझाव से आरबीआई के कदमों का फायदा दिलाने में बड़ा असर पड़ेगा। इससे लेंडिग रेट्स घटेंगी।' इस कदम का ऐलान करते हुए आरबीआई के डिप्टी गवर्नर एन एस विश्वनाथन ने कहा था, 'हम मॉनेटरी पॉलिसी में उठाए गए कदमों का असर बेस रेट पर न पड़ने को लेकर चिंतित हैं। हम बेस रेट कैलकुलेशन को एमसीएलआर के मुताबिक कर रहे हैं ताकि मॉनेटरी पॉलिसी से पड़ने वाले असर की राह में बैंकों के पोर्टफोलियो के उस बड़े हिस्से से बाधा न पड़े जो बेस रेट से लिंक है।'
यह साफ नहीं है कि आरबीआई इन दो रेट्स में किस तरह साम्य लाएगा। अभी यही पता है कि भविष्य में बेस रेट से जुड़े लोन एमसीएलआर के अनुसार चलेंगे। एक बैंकर ने कहा, 'आरबीआई ने इससे पहले घोषणा की थी कि वह लंदन इंटरबैंक ऑफर्ड रेट की तरह एक नया मार्केट लिंक्ड बेंचमार्क बेंचमार्क बनाएगा। एमसीएलआर पर फोकस से लग रहा है कि बेंचमार्क बनाने की बात छोड़ दी गई।' फाइनेंस कंपनियों को ऑम्बड्समैन के तहत लाने के बारे में आरबीआई ने कहा कि शुरुआत में डिपॉजिट लेने वाली उन एनबीएफसी को इसके दायरे में लाया जाएगा, जिनका कस्टमर्स से लेनदेन 100 करोड़ रुपये से ज्यादा है। फरवरी के अंत से इसे चरणबद्ध ढंग से लागू किया जाएगा।
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