धीरेंद्र कुमार
भारत में पेंशन की समस्या पेंशन बढ़ाकर नहीं, बल्कि उसकी जरूरत घटाकर दूर की जा सकती है। यह दलील आपको उलटी लग सकती है, लेकिन यह सच है। पिछले हफ्ते फिक्की की कॉन्फ्रेंस 'इंडिया: मूविंग टुवार्ड्स अ पेंशंड सोसायटी' में मुझे समझ में आया कि इंडिया की पेंशन की पुरानी समस्या कितनी गंभीर है और मौजूदा हालात में इसको दूर करने के कितने तरीके हो सकते हैं।
हम सबको पेंशन स्टोरी के बारे में पता है। इंडिया में पेंशन कवरेज बहुत कम है। लोगों की उम्र बढ़ रही है, इसलिए आबादी बढ़ रही है। परिवार का सपॉर्ट स्ट्रक्चर लगातार कमजोर हो रहा है। ये सब मिलकर एक पेंशन टाइम बम बना रहे हैं। तीन दशक पहले कामकाज से लाचार और धन की तंगी से जूझने वाले बुजुर्गों की संख्या ज्यादा थी। पेंशन सिस्टम जिस तरह से काम करता है, उसके तौर-तरीकों में बदलाव नहीं आता है तो हम जल्द किसी बड़ी मुसीबत में फंस जाएंगे। आने वाले समय में कम-से-कम 30 करोड़ बुजुर्ग होंगे और उनमें से कुछ की उम्र 80 से 90 साल होगी। उनमें बहुत से लोग ऐसे होंगे, जो कमाने की उम्र में हरसंभव बचत करने के बावजूद बुढ़ापे में निर्धन होंगे।
ऐसे में क्या एनपीएस सॉल्यूशन हो सकता है? यह सॉल्यूशन हो सकता था, अगर लोग इसमें बड़ी संख्या में पर्टिसिपेट करते। एनपीएस सिर्फ इस मायने में कामयाब मानी जा सकती है कि इसने सरकार की फ्यूचर पेंशन देनदारी खत्म कर दी है। जहां तक अनऑर्गनाइज्ड सेक्टर में करोड़ों लोगों को पेंशन मुहैया कराने की बात है तो इस दिशा में कुछ खास नहीं हो पा रहा है।
सरकार ने इस दिशा में कदम उठाते हुए एनपीएस का सस्ता वर्जन अटल पेंशन योजना पेश की है। इस स्कीम में 1000 से 5000 रुपये प्रति माह तक के पांच प्लान हैं। इसमें 1000 रुपये की मंथली पेंशन के लिए 18 साल के शख्स को 42 रुपये का मंथली सब्सक्रिप्शन देना है जबकि 5000 रुपये मंथली पेंशन के लिए 39 साल के शख्स को 1318 रुपये मंथली देना होगा।
शहरी ऐशोआराम में जी रहा एक भारतीय नागरिक कुछ कहने की स्थिति में नहीं होगा। दूसरी तरफ 1000 रुपये की रकम 40 साल तक महंगाई (6% मान लिया) झेलने के बाद महज 90 रुपये का सामान खरीदने लायक रह जाएगी। रिटायरमेंट पर बस इतना ही मिलेगा तो क्या फायदा होगा? अगर रिटायरमेंट के बाद 20 साल और ऐड कर लें तो हमारी मंथली पेंशन इतनी नहीं होगी कि उससे लोग सस्ती से सस्ती जगह पर भी एक दिन का खाना खा सकें।
जैसा कि मैंने शुरू में कहा था कि लोगों की पेंशन की जरूरत कम-से-कम हो। इसकी दो सबसे बड़ी वजहें यह हैं कि देश में पेंशन की हालत इतनी खराब है कि हमें महंगाई ज्यादा होने और पब्लिक हेल्थ सिस्टम बेकार हो जाने का डर सताता है। लोगों की उम्र जब कमाने की होती है तब भी लोग सीमित मात्रा में बचत कर पाते हैं। इसकी वजह यही दो वजहें हैं। बेकार हो चुका पब्लिक एजुकेशन सिस्टम भी हमारी बचत को सीमित करने का काम करता है।
कुछ छोटी-मोटी चीजें भी हैं। मिसाल के लिए एनपीएस और अटल योजना में यह मान लिया गया है कि हर शख्स 60 साल की उम्र में काम करना और योगदान करना बंद कर देगा और पेंशन लेना शुरू कर देगा। यह खासतौर पर अनऑर्गनाइज्ड सेक्टर के संदर्भ में बहुत बेवकूफाना है। लोग तब तक काम करते हैं जब तक कि वे कर सकते हैं। बहुत से लोग तो 60-70 साल की उम्र के बाद भी कमाते रह सकते हैं और पेंशन में पैसे दे सकते हैं।
(धीरेंद्र कुमार देश के म्युचूअल फंड रिसर्च हाउस वैल्यू रिसर्च के सीईओ हैं)
भारत में पेंशन की समस्या पेंशन बढ़ाकर नहीं, बल्कि उसकी जरूरत घटाकर दूर की जा सकती है। यह दलील आपको उलटी लग सकती है, लेकिन यह सच है। पिछले हफ्ते फिक्की की कॉन्फ्रेंस 'इंडिया: मूविंग टुवार्ड्स अ पेंशंड सोसायटी' में मुझे समझ में आया कि इंडिया की पेंशन की पुरानी समस्या कितनी गंभीर है और मौजूदा हालात में इसको दूर करने के कितने तरीके हो सकते हैं।
हम सबको पेंशन स्टोरी के बारे में पता है। इंडिया में पेंशन कवरेज बहुत कम है। लोगों की उम्र बढ़ रही है, इसलिए आबादी बढ़ रही है। परिवार का सपॉर्ट स्ट्रक्चर लगातार कमजोर हो रहा है। ये सब मिलकर एक पेंशन टाइम बम बना रहे हैं। तीन दशक पहले कामकाज से लाचार और धन की तंगी से जूझने वाले बुजुर्गों की संख्या ज्यादा थी। पेंशन सिस्टम जिस तरह से काम करता है, उसके तौर-तरीकों में बदलाव नहीं आता है तो हम जल्द किसी बड़ी मुसीबत में फंस जाएंगे। आने वाले समय में कम-से-कम 30 करोड़ बुजुर्ग होंगे और उनमें से कुछ की उम्र 80 से 90 साल होगी। उनमें बहुत से लोग ऐसे होंगे, जो कमाने की उम्र में हरसंभव बचत करने के बावजूद बुढ़ापे में निर्धन होंगे।
ऐसे में क्या एनपीएस सॉल्यूशन हो सकता है? यह सॉल्यूशन हो सकता था, अगर लोग इसमें बड़ी संख्या में पर्टिसिपेट करते। एनपीएस सिर्फ इस मायने में कामयाब मानी जा सकती है कि इसने सरकार की फ्यूचर पेंशन देनदारी खत्म कर दी है। जहां तक अनऑर्गनाइज्ड सेक्टर में करोड़ों लोगों को पेंशन मुहैया कराने की बात है तो इस दिशा में कुछ खास नहीं हो पा रहा है।
सरकार ने इस दिशा में कदम उठाते हुए एनपीएस का सस्ता वर्जन अटल पेंशन योजना पेश की है। इस स्कीम में 1000 से 5000 रुपये प्रति माह तक के पांच प्लान हैं। इसमें 1000 रुपये की मंथली पेंशन के लिए 18 साल के शख्स को 42 रुपये का मंथली सब्सक्रिप्शन देना है जबकि 5000 रुपये मंथली पेंशन के लिए 39 साल के शख्स को 1318 रुपये मंथली देना होगा।
शहरी ऐशोआराम में जी रहा एक भारतीय नागरिक कुछ कहने की स्थिति में नहीं होगा। दूसरी तरफ 1000 रुपये की रकम 40 साल तक महंगाई (6% मान लिया) झेलने के बाद महज 90 रुपये का सामान खरीदने लायक रह जाएगी। रिटायरमेंट पर बस इतना ही मिलेगा तो क्या फायदा होगा? अगर रिटायरमेंट के बाद 20 साल और ऐड कर लें तो हमारी मंथली पेंशन इतनी नहीं होगी कि उससे लोग सस्ती से सस्ती जगह पर भी एक दिन का खाना खा सकें।
जैसा कि मैंने शुरू में कहा था कि लोगों की पेंशन की जरूरत कम-से-कम हो। इसकी दो सबसे बड़ी वजहें यह हैं कि देश में पेंशन की हालत इतनी खराब है कि हमें महंगाई ज्यादा होने और पब्लिक हेल्थ सिस्टम बेकार हो जाने का डर सताता है। लोगों की उम्र जब कमाने की होती है तब भी लोग सीमित मात्रा में बचत कर पाते हैं। इसकी वजह यही दो वजहें हैं। बेकार हो चुका पब्लिक एजुकेशन सिस्टम भी हमारी बचत को सीमित करने का काम करता है।
कुछ छोटी-मोटी चीजें भी हैं। मिसाल के लिए एनपीएस और अटल योजना में यह मान लिया गया है कि हर शख्स 60 साल की उम्र में काम करना और योगदान करना बंद कर देगा और पेंशन लेना शुरू कर देगा। यह खासतौर पर अनऑर्गनाइज्ड सेक्टर के संदर्भ में बहुत बेवकूफाना है। लोग तब तक काम करते हैं जब तक कि वे कर सकते हैं। बहुत से लोग तो 60-70 साल की उम्र के बाद भी कमाते रह सकते हैं और पेंशन में पैसे दे सकते हैं।
(धीरेंद्र कुमार देश के म्युचूअल फंड रिसर्च हाउस वैल्यू रिसर्च के सीईओ हैं)
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