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Channel: Mutual Funds in Hindi - म्यूचुअल फंड्स निवेश, पर्सनल फाइनेंस, इन्वेस्टमेंट के तरीके, Personal Finance News in Hindi | Navbharat Times
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महंगाई से मुकाबले के लिए शेयरों में लगाएं पैसा

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नई दिल्ली
हमारे देश के शेयर बाजार में दूसरे निवेश विकल्पों के मुकाबले बहुत कम पैसा लगा है, धीरेंद्र कुमार बता रहे हैं कि बाजार में पैसा लगाने से क्यों नहीं डरना चाहिए...

अगर हम आपको साफ-साफ बताएं तो हम यह कहेंगे कि आपको अपना लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट इक्विटी में रखना चाहिए। अगर आप ऐसा नहीं कर रहे हैं तो आपको बुढ़ापे में गरीबी झेलनी पड़ सकती है। ऐसे बहुत कम लोग होते हैं जिनके पास जीवनभर महंगाई से ज्यादा कमाकर देने वाली प्रॉपर्टी होती है। बाकी को तो अपना लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट इक्विटी में ही लगाने की जरूरत है।

पिछले हफ्ते मैंने अपने कॉलम में लिखा था कि डिपॉजिट टाइप सेविंग्स का रियल रेट ऑफ रिटर्न बहुत कम होता है। जिनकी रिटायरमेंट का बस यही सहारा है, उनको आगे चलकर आर्थिक मुश्किलों से बचने के लिए बहुत ज्यादा बचत करने की जरूरत होगी। अगर आपको नियमित अंतराल पर बढ़ने वाली कोई रेंटल इनकम नहीं है या गवर्नमेंट पेंशन नहीं है तो आपको महंगाई से खुद दो-दो हाथ करना होगा। आप महंगाई के खिलाफ लड़ाई कैसे लड़ेंगे? आपके पास बस एक, इक्विटी सपोर्टेड इन्वेस्टमेंट हथियार है। दिक्कत इंडिया में इन्वेस्टमेंट कल्चर की है, जिसमें बदलाव तो आ रहा है लेकिन रफ्तार जितनी होनी चाहिए उतनी नहीं है।

वो वक्त भी था जब इंडिया पूरी तरह से फिक्स्ड इनकम वाला देश था। मुट्ठीभर पंटर्स को छोड़ दें तो सभी फाइनैंशल इन्वेस्टमेंट किसी-न-किसी डिपॉजिट में ही होता था। मिड 1990 तक हालात ऐसे ही थे। इन्वेस्टर्स का साबका इक्विटीज से तभी पड़ता था जब वह आईपीओ या इशू, तब लोग इसको यही बोलते थे, के लिए ऐप्लिकेशन फॉर्म भरता था। तब भी लोग इशू को निवेश विकल्प नहीं, बस लॉटरी टिकट की तरह ही देखते थे। मिड-1990 के बाद देश में इक्विटी कल्चर धीरे-धीरे पनपने लगा जिसमें लोगों ने अच्छी खासी संख्या में इक्विटी म्यूचुअल फंड्स में निवेश करना शुरू कर दिया। लेकिन अगर इंडिया में इक्विटी निवेश को बचत करनेवालों और डिपॉजिट टाइप प्रॉडक्ट्स में निवेश करनेवालों की आबादी के हिसाब से देखेंगे तो पाएंगे कि यह बहुत ही कम है।

महंगाई की मार से आपकी बचत को काफी हद तक इक्विटी ही संभाल सकता है तो फिर आइए इसको शुरू से देखने की कोशिश करते हैं। बचत का निवेश करने के दो अहम तरीके हैं- किसी को ब्याज पर पैसा दे दें या फिर खुद का बिजनस करें। जब आप बिजनस के लिए उधार देते हैं तो आपको उनसे बस बेसिक रिटर्न मिलता है, लेकिन प्रॉफिट में कोई शेयर नहीं मिलता है। जो लोग बिजनस में होशियार हैं, उनके लिए बेहतर यही होगा कि अपना बिजनस करें। लेकिन अच्छी बात यह है कि यहां बिजनस में पार्ट ओनरशिप के लिए शेयर मार्केट का रास्ता खुला हुआ है। इससे हम बिजनस के रियल ओनर के मुकाबले कम जोखिम के साथ उनके जितना ही वित्तीय लाभ पा सकते हैं। ये इक्विटी इन्वेस्टमेंट कहलाता है। इक्विटी का मतलब बिजनस के शेयर खरीदना होता है लेकिन निवेश की शुरुआत करने वालों को म्यूचुअल फंड का रास्ता अख्तियार करना चाहिए।

ये सैद्धांतिक बातें हैं लेकिन असलियत यही है। इसको समझने के लिए इक्विटी प्रॉफिट का सोर्स समझना होगा। प्रॉफिट का अल्टीमेट सोर्स इकनॉमिक ग्रोथ होता है। कुल मिलाकर शेयर की ग्रोथ कम-से-कम देश की इकनॉमिक ग्रोथ के बराबर होनी चाहिए। इकनॉमी की ग्रोथ के साथ महंगाई भी जुड़ी होती है। अगर महंगाई 5 पर्सेंट है और रियल इकनॉमिक ग्रोथ भी इतनी ही है तो शेयर की ग्रोथ कम से कम 10 पर्सेंट होनी चाहिए। हम फिलहाल ऐवरेज की बात कर रहे हैं। एक निवेशक तौर पर अगर आप (मिसाल के लिए अच्छे इक्विटी फंड) के जरिए औसत से बेहतर रिटर्न वाला शेयर चुनने में कामयाब रहते हैं तो आपका रिटर्न इकनॉमिक ग्रोथ की औसत ग्रोथ से बहुत ज्यादा हो सकता है।

लोगों को डर उतार चढ़ाव से लगता है। शेयर बाजार में रोज मचने वाली चीख पुकार से हमें बाजार में असल से कुछ ज्यादा ही उथल-पुथल नजर आती है। अगर आप हर दस में एक बार इक्विटी मार्केट पर नजर डालेंगे तो पाएंगे कि ये दुनिया के सबसे अच्छे निवेश विकल्प होते हैं।

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