नरेंद्र नाथन
बैंक में राशि जमा करने वालों के साथ ही कर्जधारकों को भी ब्याज दरों में बदलाव को लेकर सचेत रहना चाहिए। कई बार नियमों की जानकारी न होने के चलते कर्जधारकों को कई बार गैरजरूरी चार्ज चुकाने पड़ते हैं। जानें, आखिर किन वजहों से कस्टमर्स को बैंकों के ओवरचार्ज चुकाने पड़ते हैं। यदि आप अपने बैंक लोन की ब्याज दर का मित्रों, रिश्तेदारों और अन्य लोगों के इंटरेस्ट रेट से तुलना करते हैं तो पता लगता है कि आपको बड़ी राशि बेवजह चुकानी पड़ रही है। अलग-अलग बैंकों की ब्याज दर अलग होती है, लेकिन एक ही बैंक में भी अलग-अलग ग्राहकों के लिए यह अलग होती है।
इसकी वजह कस्टमर्स का क्रेडिट स्कोर नहीं होता। कुछ बैंक नए ग्राहकों को तो सस्ते दाम पर लोन उपलब्ध करता हैं, जबकि पुराने कस्टमर्स पर अधिक रेट ही चार्ज करते रहते हैं। फिज्डम के को-फाउंजर रामगणेश अय्यर ने कहा, 'बैंक अब भी लगातार भेदभावपूर्ण नीति अपनाते हुए मौजूदा ग्राहकों और नए कस्टमर्स के लिए अलग-अलग रेट पर लोन मुहैया कराते हैं। इसे रोका जाना चाहिए।' बैंकिंग रेग्युलेटर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को इस तरह की गलत नीति पर लगाम कसनी चाहिए। आरबीआई ने मार्जिनल कॉस्ट लेंडिंग रेट मेथड को अप्रैल, 2016 से लागू किया था। इसका मकसद यह था कि रेट कट को तेजी से लागू किया जा सके। इससे पहले प्राइम लेंडिंग रेट के आधार पर ही कर्ज की ब्याज दर तय की जाती थी।
पढ़ें: योगी के यूपी सीएम बनने से मायूस हुआ शेयर बाजार
जिन कर्जधारकों ने 4 या 5 साल पहले लोन लिया था और उन्होंने बैंक से नई व्यवस्था के तहत जोड़ने का आग्रह नहीं किया है, उन्हें आज भी प्राइम लेडिंग रेट सिस्टम के तहत बेस रेट पर ही इंटरेस्ट चुकाना पड़ रहा है। ऐसे में अब जबकि बैंक नए कस्टमर्स को एमसीएलआर के तहत लोन मुहैया करा रहे हैं तो पुराने ग्राहकों को अब भी अधिक ब्याज ही चुकाना पड़ रहा है। आईसर्व फाइनैंशल के सीईओ दीपक सामंत ने कहा, 'बैंक यदि अलग-अलग रेट ऑफर कर रहे हों तो सबसे सही होता है कि ऐग्रिगेटर्स से संपर्क किया जाए। इससे आपको लोन के इंटरेस्ट रेट पर बारगेन करने का मौका मिलेगा।'
यदि आप अपने पुराने लोन पर इंटरेस्ट कम कराना चाहते हैं तो इसके लिए आपको इसे बेस रेट से एमसीएलआर पर शिफ्ट कराना होगा। एक्सपर्ट्स के मुताबिक एमसीएलआर में शिफ्ट कराना अच्छा कदम होगा। इन्वेस्टमेंट एक्सपर्ट बलवंत जैन का कहना है, 'आरबीआई फिलहाल स्थिर नीतियां अपना रहा है। ब्याज दर में मौजूदा रेट्स से अधिक का इजाफा नहीं होगा। इसेक अलावा आने वाले एक साल के बाद इसमें कमी भी हो सकती है।'
लोन रीसेट कराने के चार्ज
बैंकों की ओर से दो तरह के लोन मुहैया कराए जाते हैं: फ्लोटिंग और फिक्स्ड रेट। फ्लोटिंग रेट लोन में आरबीआई की ओर से ब्याज दरों में कमी और इजाफे के अनुसार बदलाव होता रहता है, जबकि फिक्स्ड रेट लोन की किस्त समान रहती है। हालांकि बैंक ब्याज दर बढ़ाने में तो जल्दी दिखाते हैं, लेकिन कटौती करने में नहीं। यही नहीं पुराने बेंचमार्क से नए बेंचमार्क में लोन ट्रांसफर के लिए भी बैंक चार्ज वसूलते हैं। बैंक यह चार्ज नए अग्रीमेंट्स के रजिस्ट्रेशन और स्टांप ड्यूटी के लिए भी वसूलते हैं, इसके अलावा अन्य खर्च भी इसमें शामिल होते हैं। हालांकि यह चार्ज बकाया राशि के 0.2% से अधिक नहीं होता है। हालांकि कुछ बैंक 0.5 पर्सेंट तक की राशि वसूलते हैं।
बैंक में राशि जमा करने वालों के साथ ही कर्जधारकों को भी ब्याज दरों में बदलाव को लेकर सचेत रहना चाहिए। कई बार नियमों की जानकारी न होने के चलते कर्जधारकों को कई बार गैरजरूरी चार्ज चुकाने पड़ते हैं। जानें, आखिर किन वजहों से कस्टमर्स को बैंकों के ओवरचार्ज चुकाने पड़ते हैं। यदि आप अपने बैंक लोन की ब्याज दर का मित्रों, रिश्तेदारों और अन्य लोगों के इंटरेस्ट रेट से तुलना करते हैं तो पता लगता है कि आपको बड़ी राशि बेवजह चुकानी पड़ रही है। अलग-अलग बैंकों की ब्याज दर अलग होती है, लेकिन एक ही बैंक में भी अलग-अलग ग्राहकों के लिए यह अलग होती है।
इसकी वजह कस्टमर्स का क्रेडिट स्कोर नहीं होता। कुछ बैंक नए ग्राहकों को तो सस्ते दाम पर लोन उपलब्ध करता हैं, जबकि पुराने कस्टमर्स पर अधिक रेट ही चार्ज करते रहते हैं। फिज्डम के को-फाउंजर रामगणेश अय्यर ने कहा, 'बैंक अब भी लगातार भेदभावपूर्ण नीति अपनाते हुए मौजूदा ग्राहकों और नए कस्टमर्स के लिए अलग-अलग रेट पर लोन मुहैया कराते हैं। इसे रोका जाना चाहिए।' बैंकिंग रेग्युलेटर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को इस तरह की गलत नीति पर लगाम कसनी चाहिए। आरबीआई ने मार्जिनल कॉस्ट लेंडिंग रेट मेथड को अप्रैल, 2016 से लागू किया था। इसका मकसद यह था कि रेट कट को तेजी से लागू किया जा सके। इससे पहले प्राइम लेंडिंग रेट के आधार पर ही कर्ज की ब्याज दर तय की जाती थी।
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जिन कर्जधारकों ने 4 या 5 साल पहले लोन लिया था और उन्होंने बैंक से नई व्यवस्था के तहत जोड़ने का आग्रह नहीं किया है, उन्हें आज भी प्राइम लेडिंग रेट सिस्टम के तहत बेस रेट पर ही इंटरेस्ट चुकाना पड़ रहा है। ऐसे में अब जबकि बैंक नए कस्टमर्स को एमसीएलआर के तहत लोन मुहैया करा रहे हैं तो पुराने ग्राहकों को अब भी अधिक ब्याज ही चुकाना पड़ रहा है। आईसर्व फाइनैंशल के सीईओ दीपक सामंत ने कहा, 'बैंक यदि अलग-अलग रेट ऑफर कर रहे हों तो सबसे सही होता है कि ऐग्रिगेटर्स से संपर्क किया जाए। इससे आपको लोन के इंटरेस्ट रेट पर बारगेन करने का मौका मिलेगा।'
यदि आप अपने पुराने लोन पर इंटरेस्ट कम कराना चाहते हैं तो इसके लिए आपको इसे बेस रेट से एमसीएलआर पर शिफ्ट कराना होगा। एक्सपर्ट्स के मुताबिक एमसीएलआर में शिफ्ट कराना अच्छा कदम होगा। इन्वेस्टमेंट एक्सपर्ट बलवंत जैन का कहना है, 'आरबीआई फिलहाल स्थिर नीतियां अपना रहा है। ब्याज दर में मौजूदा रेट्स से अधिक का इजाफा नहीं होगा। इसेक अलावा आने वाले एक साल के बाद इसमें कमी भी हो सकती है।'
लोन रीसेट कराने के चार्ज
बैंकों की ओर से दो तरह के लोन मुहैया कराए जाते हैं: फ्लोटिंग और फिक्स्ड रेट। फ्लोटिंग रेट लोन में आरबीआई की ओर से ब्याज दरों में कमी और इजाफे के अनुसार बदलाव होता रहता है, जबकि फिक्स्ड रेट लोन की किस्त समान रहती है। हालांकि बैंक ब्याज दर बढ़ाने में तो जल्दी दिखाते हैं, लेकिन कटौती करने में नहीं। यही नहीं पुराने बेंचमार्क से नए बेंचमार्क में लोन ट्रांसफर के लिए भी बैंक चार्ज वसूलते हैं। बैंक यह चार्ज नए अग्रीमेंट्स के रजिस्ट्रेशन और स्टांप ड्यूटी के लिए भी वसूलते हैं, इसके अलावा अन्य खर्च भी इसमें शामिल होते हैं। हालांकि यह चार्ज बकाया राशि के 0.2% से अधिक नहीं होता है। हालांकि कुछ बैंक 0.5 पर्सेंट तक की राशि वसूलते हैं।
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