धीरेंद्र कुमार
शब्दकोष के मुताबिक बचत वह रकम होती है, जो खर्च नहीं हो पाती है। इस हिसाब से अगर आप हर महीने सैलरी का 10% हिस्सा खर्च नहीं करते हैं और उसे बचा लेते हैं तो आप बेशक बचत कर रहे हैं। डीमॉनेटाइजेशन में मुझे एक आश्चर्यजनक सच का पता चला कि सरल सोच वाले बहुत से लोग इसी तरह बचत करते हैं। कैश रखना सामान्य धारणा है, लेकिन यह संपत्ति के लिए बहुत नुकसानदेह होता है। बुनियादी वजह यह है कि समय के साथ पैसे की कीमत घटती जाती है। कीमतें बढ़ती हैं और पिछले साल 100 रुपये की चीज इस साल 5 या 10 या 20 रुपये महंगी हो जाएगी। महंगाई बचत को धीरे-धीरे खाती जाती है। हम सभी ये जानते हैं, लेकिन इस जानकारी का इस्तेमाल बचत और निवेश के फैसलों में नहीं करते।
हम जब भी लंबे समय के लिए इस तरह बचत करते हैं, इस बात पर ध्यान देने से चूक जाते हैं। हममें से बहुत लोगों को कंपाउंड इंट्रेस्ट (चक्रवृद्धि ब्याज) के बारे में तो पता होता है, लेकिन महंगाई के डीकंपाउंडिंग इंपैक्ट को समझ नहीं पाते हैं। चक्रवृद्धि ब्याज जो फायदा दिलाता है, महंगाई उसको खा जाती है। हर साल महंगाई पिछले साल के बेसिस पर बढ़ती है। इस हिसाब से यह कंपाउंड इंट्रेस्ट जैसी ही है। एक उदाहरण लेते हैं, जिसमें हम यह मान लेते हैं कि आप एक लाख रुपये की बचत को 7 प्रतिशत सालाना रेट पर डिपॉजिट करते हैं। मान लेते हैं कि महंगाई भी 7 प्रतिशत सालाना रेट से बढ़ रही है। ऐसे में आपका कंपाउंडिंग रिटर्न महंगाई से आगे नहीं निकल पाएगा , बल्कि उसके साथ कदमताल करेगा।
मान लिया कि 10 साल में आपका 1 लाख रुपया 2.16 लाख हो जाएगा, लेकिन आप अभी जो चीज 1 लाख में खरीद सकते हैं, उसकी कीमत भी महंगाई के चलते तब 2.16 लाख रुपये हो जाएगी। मतलब 10 साल बाद भी आपकी रईसी जस की तस रह जाएगी। एक लाख रुपये का परचेजिंग पावर 10 साल बाद भी एक लाख रुपये ही रह जाएगा। जरा सोचकर देखिए कि 30 साल पहले 10,000 रुपये प्रति माह कमाई वाले लोग मिडल क्लास में माने जाते थे और तब सामान कितने सस्ते थे।
हालांकि इसके हिसाब से भविष्य के बारे में अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। अभी आप 40 साल के हैं और जब रिटायर होंगे, तब मध्यवर्गीय जीवन का मासिक खर्च ढाई लाख रुपये होगा। जब आप 80 के होंगे तब आपको 10 लाख रुपये मासिक की जरूरत होगी। यह अतिशयोक्ति नहीं है। ऐसा पक्का होगा। लोग सामान्य तरीके से सोचते हैं और महंगाई के असर को नजरअंदाज करते हैं। इसका असल समाधान यह है कि हम कम महंगाई वाली अर्थव्यवस्था बन जाएं, लेकिन असल अजेंडे में यह बात तो है नहीं, इसलिए बचत करने वालों को ही महंगाई के हिसाब से ढलना होगा।
अगर आप चाहते हैं कि 20 साल बाद आपके पास अभी के हिसाब से 2 करोड़ रुपये हों तो असल में आपको तब लगभग 10 करोड़ रुपये की जरूरत होगी। ऐसे में आपको तब उतनी रकम पाने के लिए 8 प्रतिशत रिटर्न के साथ अभी से हर महीने 1.7 लाख रुपये की बचत करनी होगी। अगर रिटर्न 10 प्रतिशत है तो आपको हर महीने 1.3 लाख रुपये बचत करने की जरूरत होगी।
इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। जो लोग बहुत कम रियल रेट ऑफ रिटर्न वाले डिपॉजिट जैसी सेविंग्स पर निर्भर करेंगे, उनको बुढ़ापे में तंगहाली से बचने के लिए मोटी रकम की बचत करनी होगी। जिन लोगों के पास इन्फ्लेशन अडजस्टेड रेंटल प्रॉपर्टी जैसा इनकम सोर्स नहीं है, उनको यह हिसाब किताब समझने और उसके हिसाब से प्लानिंग पर अमल करने की जरूरत है। यह आपको भले ही अर्जेंट न लगे, लेकिन यह उससे अहम है, जो आप अगले वीकेंड के लिए प्लान कर रहे हैं।
शब्दकोष के मुताबिक बचत वह रकम होती है, जो खर्च नहीं हो पाती है। इस हिसाब से अगर आप हर महीने सैलरी का 10% हिस्सा खर्च नहीं करते हैं और उसे बचा लेते हैं तो आप बेशक बचत कर रहे हैं। डीमॉनेटाइजेशन में मुझे एक आश्चर्यजनक सच का पता चला कि सरल सोच वाले बहुत से लोग इसी तरह बचत करते हैं। कैश रखना सामान्य धारणा है, लेकिन यह संपत्ति के लिए बहुत नुकसानदेह होता है। बुनियादी वजह यह है कि समय के साथ पैसे की कीमत घटती जाती है। कीमतें बढ़ती हैं और पिछले साल 100 रुपये की चीज इस साल 5 या 10 या 20 रुपये महंगी हो जाएगी। महंगाई बचत को धीरे-धीरे खाती जाती है। हम सभी ये जानते हैं, लेकिन इस जानकारी का इस्तेमाल बचत और निवेश के फैसलों में नहीं करते।
हम जब भी लंबे समय के लिए इस तरह बचत करते हैं, इस बात पर ध्यान देने से चूक जाते हैं। हममें से बहुत लोगों को कंपाउंड इंट्रेस्ट (चक्रवृद्धि ब्याज) के बारे में तो पता होता है, लेकिन महंगाई के डीकंपाउंडिंग इंपैक्ट को समझ नहीं पाते हैं। चक्रवृद्धि ब्याज जो फायदा दिलाता है, महंगाई उसको खा जाती है। हर साल महंगाई पिछले साल के बेसिस पर बढ़ती है। इस हिसाब से यह कंपाउंड इंट्रेस्ट जैसी ही है। एक उदाहरण लेते हैं, जिसमें हम यह मान लेते हैं कि आप एक लाख रुपये की बचत को 7 प्रतिशत सालाना रेट पर डिपॉजिट करते हैं। मान लेते हैं कि महंगाई भी 7 प्रतिशत सालाना रेट से बढ़ रही है। ऐसे में आपका कंपाउंडिंग रिटर्न महंगाई से आगे नहीं निकल पाएगा , बल्कि उसके साथ कदमताल करेगा।
मान लिया कि 10 साल में आपका 1 लाख रुपया 2.16 लाख हो जाएगा, लेकिन आप अभी जो चीज 1 लाख में खरीद सकते हैं, उसकी कीमत भी महंगाई के चलते तब 2.16 लाख रुपये हो जाएगी। मतलब 10 साल बाद भी आपकी रईसी जस की तस रह जाएगी। एक लाख रुपये का परचेजिंग पावर 10 साल बाद भी एक लाख रुपये ही रह जाएगा। जरा सोचकर देखिए कि 30 साल पहले 10,000 रुपये प्रति माह कमाई वाले लोग मिडल क्लास में माने जाते थे और तब सामान कितने सस्ते थे।
हालांकि इसके हिसाब से भविष्य के बारे में अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। अभी आप 40 साल के हैं और जब रिटायर होंगे, तब मध्यवर्गीय जीवन का मासिक खर्च ढाई लाख रुपये होगा। जब आप 80 के होंगे तब आपको 10 लाख रुपये मासिक की जरूरत होगी। यह अतिशयोक्ति नहीं है। ऐसा पक्का होगा। लोग सामान्य तरीके से सोचते हैं और महंगाई के असर को नजरअंदाज करते हैं। इसका असल समाधान यह है कि हम कम महंगाई वाली अर्थव्यवस्था बन जाएं, लेकिन असल अजेंडे में यह बात तो है नहीं, इसलिए बचत करने वालों को ही महंगाई के हिसाब से ढलना होगा।
अगर आप चाहते हैं कि 20 साल बाद आपके पास अभी के हिसाब से 2 करोड़ रुपये हों तो असल में आपको तब लगभग 10 करोड़ रुपये की जरूरत होगी। ऐसे में आपको तब उतनी रकम पाने के लिए 8 प्रतिशत रिटर्न के साथ अभी से हर महीने 1.7 लाख रुपये की बचत करनी होगी। अगर रिटर्न 10 प्रतिशत है तो आपको हर महीने 1.3 लाख रुपये बचत करने की जरूरत होगी।
इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। जो लोग बहुत कम रियल रेट ऑफ रिटर्न वाले डिपॉजिट जैसी सेविंग्स पर निर्भर करेंगे, उनको बुढ़ापे में तंगहाली से बचने के लिए मोटी रकम की बचत करनी होगी। जिन लोगों के पास इन्फ्लेशन अडजस्टेड रेंटल प्रॉपर्टी जैसा इनकम सोर्स नहीं है, उनको यह हिसाब किताब समझने और उसके हिसाब से प्लानिंग पर अमल करने की जरूरत है। यह आपको भले ही अर्जेंट न लगे, लेकिन यह उससे अहम है, जो आप अगले वीकेंड के लिए प्लान कर रहे हैं।
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