मुंबई
सुभाष (परिवर्तित नाम) को फिक्स्ड डिपॉजिट्स से होने वाली आमदनी रास आती है। बैंक एक फिक्स्ड रेट पर रेग्युलर इंटरेस्ट देता है और मच्योरिटी पर उनका मूलधन लौटाने का वादा करता है। लिहाजा सुभाष को अपनी पूंजी की सुरक्षा मिलती है। उनके इन्वेस्टमेंट अडवाइजर हालांकि चाहते हैं कि सुभाष कुछ पैसा म्यूचुअल फंड्स के फिक्स्ड मच्योरिटी प्लांस (एफएमपी) में भी लगाएं और एफएमपी को बैंक डिपॉजिट्स के विकल्प के रूप में यूज करें। सुभाष अब जानना चाहते हैं कि एफएमपी और एफडी में कौन बेहतर विकल्प है।
किसी निवेश का जोखिम और उससे मिलने वाला रिटर्न मुख्य तौर पर इससे जुड़ा होता है कि इन्वेस्टर का पैसा कैसे यूज होता है। उस पैसे से ऐसेट्स खरीदी जाती हैं, ऐसेट्स पर मिले रिटर्न से इन्वेस्टर को इंटरेस्ट और मूलधन पर रिटर्न दिया जाता है। लिहाजा यह समझना जरूरी है कि ऐसेट्स कौन खरीदता है और कैसी ऐसेट्स खरीदता है।
सुभाष जब एफडी में निवेश करते हैं तो वह अपनी रकम बैंक को उधार देते हैं। बैंक उससे लोन देता है। बैंक अपनी क्रेडिट पॉलिसी से तय करता है कि किसे लोन देना है, लोन रिकवरी कैसे करनी है और लोन पर कितना ब्याज लेना है। जब सुभाष बैंक डिपॉजिट में इन्वेस्ट करते हैं तो उन्हें उम्मीद होती है कि बैंक लोन देने में सतर्कता बरतेगा और ध्यान रखेगा कि लोन डूब न जाए। बैंकों पर नियमों का घेरा कड़ा होता है ताकि लोन डूबने का जोखिम कम रहे। सुभाष को जानेमाने और प्रॉफिटेबल बैंक चुनने चाहिए।
एफएमपी के रूप में सुभाष के सामने एक विकल्प है। इसमें वह एक म्यूचुअल फंड में निवेश करते हैं। फंड मैनेजर कई बॉरोअर्स में चुनाव करता है और उनके बॉन्ड्स खरीदता है। एफएमपी किसी बैंक के सीडी में भी निवेश कर सकता है, जिसका इस्तेमाल बैंक पैसा उधार लेने में करते हैं। फंड मैनेजर बॉन्ड चुनने, पोर्टफोलियो मैनेज करने और इन्वेस्टर्स के लिए इनकम जेनरेट करने के बदले फीस लेते हैं।
एफएमपी सिक्यॉरिटी मार्केट बेस्ड मॉडर्न चॉइस है। सुभाष जब एफडी में पैसे लगाते हैं तो बैंक की बैलेंस शीट पर मौजूद देनदारी का साया उनके निवेश पर होता है। एफएमपी में वह सीधे ऐसेट साइड में निवेश करते हैं या उसी मार्केट में निवेश करते हैं, जिसमें बैंक अपने लोन का इंतजाम कर रहा होगा। अगर अपने डिपॉजिटर्स को इंटरेस्ट पेमेंट से पहले बैंक की लागत 3-4% हो, तो एफएमपी पर लागत 0.5-2% होगी। लिहाजा समान इन्वेस्टमेंट साइकल में एफएमपी पर रिटर्न बेहतर होने की संभावना रहती है। सुभाष को जानेमाने फंड हाउसेज में से चुनाव करना चाहिए, जिनका ट्रैक रिकॉर्ड अच्छा हो।
सुभाष (परिवर्तित नाम) को फिक्स्ड डिपॉजिट्स से होने वाली आमदनी रास आती है। बैंक एक फिक्स्ड रेट पर रेग्युलर इंटरेस्ट देता है और मच्योरिटी पर उनका मूलधन लौटाने का वादा करता है। लिहाजा सुभाष को अपनी पूंजी की सुरक्षा मिलती है। उनके इन्वेस्टमेंट अडवाइजर हालांकि चाहते हैं कि सुभाष कुछ पैसा म्यूचुअल फंड्स के फिक्स्ड मच्योरिटी प्लांस (एफएमपी) में भी लगाएं और एफएमपी को बैंक डिपॉजिट्स के विकल्प के रूप में यूज करें। सुभाष अब जानना चाहते हैं कि एफएमपी और एफडी में कौन बेहतर विकल्प है।
किसी निवेश का जोखिम और उससे मिलने वाला रिटर्न मुख्य तौर पर इससे जुड़ा होता है कि इन्वेस्टर का पैसा कैसे यूज होता है। उस पैसे से ऐसेट्स खरीदी जाती हैं, ऐसेट्स पर मिले रिटर्न से इन्वेस्टर को इंटरेस्ट और मूलधन पर रिटर्न दिया जाता है। लिहाजा यह समझना जरूरी है कि ऐसेट्स कौन खरीदता है और कैसी ऐसेट्स खरीदता है।
सुभाष जब एफडी में निवेश करते हैं तो वह अपनी रकम बैंक को उधार देते हैं। बैंक उससे लोन देता है। बैंक अपनी क्रेडिट पॉलिसी से तय करता है कि किसे लोन देना है, लोन रिकवरी कैसे करनी है और लोन पर कितना ब्याज लेना है। जब सुभाष बैंक डिपॉजिट में इन्वेस्ट करते हैं तो उन्हें उम्मीद होती है कि बैंक लोन देने में सतर्कता बरतेगा और ध्यान रखेगा कि लोन डूब न जाए। बैंकों पर नियमों का घेरा कड़ा होता है ताकि लोन डूबने का जोखिम कम रहे। सुभाष को जानेमाने और प्रॉफिटेबल बैंक चुनने चाहिए।
एफएमपी के रूप में सुभाष के सामने एक विकल्प है। इसमें वह एक म्यूचुअल फंड में निवेश करते हैं। फंड मैनेजर कई बॉरोअर्स में चुनाव करता है और उनके बॉन्ड्स खरीदता है। एफएमपी किसी बैंक के सीडी में भी निवेश कर सकता है, जिसका इस्तेमाल बैंक पैसा उधार लेने में करते हैं। फंड मैनेजर बॉन्ड चुनने, पोर्टफोलियो मैनेज करने और इन्वेस्टर्स के लिए इनकम जेनरेट करने के बदले फीस लेते हैं।
एफएमपी सिक्यॉरिटी मार्केट बेस्ड मॉडर्न चॉइस है। सुभाष जब एफडी में पैसे लगाते हैं तो बैंक की बैलेंस शीट पर मौजूद देनदारी का साया उनके निवेश पर होता है। एफएमपी में वह सीधे ऐसेट साइड में निवेश करते हैं या उसी मार्केट में निवेश करते हैं, जिसमें बैंक अपने लोन का इंतजाम कर रहा होगा। अगर अपने डिपॉजिटर्स को इंटरेस्ट पेमेंट से पहले बैंक की लागत 3-4% हो, तो एफएमपी पर लागत 0.5-2% होगी। लिहाजा समान इन्वेस्टमेंट साइकल में एफएमपी पर रिटर्न बेहतर होने की संभावना रहती है। सुभाष को जानेमाने फंड हाउसेज में से चुनाव करना चाहिए, जिनका ट्रैक रिकॉर्ड अच्छा हो।
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