नई दिल्ली
किसी न किसी वजह से नौकरी छूट जाना आज के वक्त की हकीकत है। पिंक स्लिप हाथ में आने के बाद की मनौवैज्ञानिक स्थितियों को समझने और खुद को सुरक्षित रखने के तरीकों के बारे में बता रहे हैं देवाशीष चक्रवर्ती...
हाल में एक मशहूर स्टार्टअप ने अपनी कई डिविजन बंद कर दीं और कहा कि वह 600 लोगों को नौकरी से हटाएगी। तकरीबन इसी वक्त बहुराष्ट्रीय टेक्नॉलजी और बैंकिंग कंपनियों ने 50,000 नौकरियां खत्म करने का ऐलान किया। अगर किसी को बड़े पैमाने पर होने वाली ऐसी छंटनी के दौरान हटाया जाता है तो वह उसी तरह के स्किल्स, फंक्शंस और रोल्स वाले अपने पुराने सहयोगियों के साथ नई नौकरी के लिए प्रतिस्पर्धा की स्थिति में आ जाता है और इससे नौकरी मिलने का संघर्ष और कड़ा हो जाता है। दूसरी ओर, नौकरी से निकाला जाना एक बड़ा मनोवैज्ञानिक असर पैदा करता है। क्या इस मुश्किल भरे इमोशनल उतार-चढ़ाव के दौर का अंदाजा लगाया जा सकता है?
शॉक
शुरुआती इमोशन शॉक वाला होता है। इस चरण में लोग बड़े कदम उठाना चाहते हैं। जैसे कि लंबी छुट्टी लेना या आप काम से लंबा ब्रेक लेना ताकि वे रिकवर कर सकें। हालांकि अगर परिवार के पास मोटी रकम न हो तो ऐसा नहीं करना चाहिए। बिना किसी योजना के ऐसा कदम उठाने से फाइनैंशल दिक्कतें होंगी और नई नौकरी पाने की राह और जटिल हो जाएगी। ऐसे वक्त में जरूरत तत्काल नौकरी पाने की होती है। दूसरे ऑप्शन के तौर पर, कुछ नॉन-ट्रेडिशनल रोल्स तलाशने चाहिए, जो रेज्यूमे को और मजबूत करें। इनमें आंत्रप्रन्योरशिप या कंसल्टिंग जैसे रोल हो सकते हैं।
इनकार
शॉक के बादल छंटने के बाद इनकार वाला तत्व पैदा होता है। भ्रम पैदा होता है कि सेविंग्स लंबे वक्त तक चलेगी। इसके बजाय अपने पास मौजूद कैश का गणित समझना चाहिए और वित्तीय स्थिति दुरुस्त करने की कोशिश करनी चाहिए। गैरजरूरी खर्च रोकने, ईएमआई का मामला संभालने और लाइफस्टाइल से जुड़े खर्च पर कंट्रोल के कदम उठाने चाहिए।
अकेलापन
नकारने की स्थिति से उबरने के बाद अकेलापन घेरता है। लोग फ्रेंड्स, फैमिली और प्रफेशनल नेटवर्क से खुद को अलग-थलग करने की कोशिश करते हैं क्योंकि वे उन्हें बताना नहीं चाहते हैं कि नौकरी छूट गई है। हालांकि ऐसा करने से उनके करियर को कोई फायदा नहीं होता। उन्हें स्थिति स्वीकार करनी चाहिए और यह मानना चाहिए कि सोशलाइज होने से वैल्यू बढ़ती है। अपनी पिछली फर्मों के प्रफेशनल लोगों से भी संपर्क करना चाहिए।
गुस्सा
एक बड़ा इमोशन गुस्से का भी है। दिमाग बताता है कि यह सबसे ठीक बात हुई है। वह समझाता है कि नौकरी छूटना इस बात का संकेत है कि आंत्रप्रन्योर के तौर पर शुरुआत की जा सकती है। ऐसी बातों में न फंसें। दुनिया के 30 फीसदी बेरोजगार और रोजगार में लगे लोगों को यही चीज सुनाई देती है। दरअसल, ऐसे लोगों को सबसे पहले एक अदद नौकरी का इंतजाम करना चाहिए जिससे पैसा मिले।
डिप्रेशन
गुस्से के बाद आदमी डिप्रेशन में चला जाता है। लोग पहले किए गए काम दोहराने लगते हैं। पिछली नौकरी दिलाने वाला रेज्यूमे इस्तेमाल करते हैं, लेकिन काम नहीं बनता। दरअसल उन्हें ऐसी चीजें इसमें जोड़नी चाहिए, जिनकी वैल्यू हो। अपने स्किल्स और फंक्शंस पर ठंडे दिमाग से सोचना चाहिए।
सौदेबाजी
इस चरण में लोग खुद से सौदेबाजी करते हैं। यानी क्या वे नए स्किल सीखकर करियर के नए ठिकाने तलाश सकते हैं या उन्हें एजुकेशन ब्रेक लेना चाहिए? सोचना यह चाहिए कि वे वास्तव में क्या कर सकते हैं। उन कंपनियों को पहचानें, जहां काम कर सकते हों।
स्वीकार्यता
इस चरण में लोग अपनी योजनाओं पर अमल करते हैं। जॉब सर्च को फुल टाइम ऐक्टिविटी बनाते हैं और अपना दिन लोगों से मिलने में गुजारते हैं। उनकी बातें सुनने वाले अनुमान लगाते हैं कि वे उनके संस्थान में क्या वैल्यू जोड़ सकते हैं। लोगों के साथ मिलने से नेटवर्क बढ़ता है और नई नौकरी मिलने के आसार बढ़ते हैं।
किसी न किसी वजह से नौकरी छूट जाना आज के वक्त की हकीकत है। पिंक स्लिप हाथ में आने के बाद की मनौवैज्ञानिक स्थितियों को समझने और खुद को सुरक्षित रखने के तरीकों के बारे में बता रहे हैं देवाशीष चक्रवर्ती...
हाल में एक मशहूर स्टार्टअप ने अपनी कई डिविजन बंद कर दीं और कहा कि वह 600 लोगों को नौकरी से हटाएगी। तकरीबन इसी वक्त बहुराष्ट्रीय टेक्नॉलजी और बैंकिंग कंपनियों ने 50,000 नौकरियां खत्म करने का ऐलान किया। अगर किसी को बड़े पैमाने पर होने वाली ऐसी छंटनी के दौरान हटाया जाता है तो वह उसी तरह के स्किल्स, फंक्शंस और रोल्स वाले अपने पुराने सहयोगियों के साथ नई नौकरी के लिए प्रतिस्पर्धा की स्थिति में आ जाता है और इससे नौकरी मिलने का संघर्ष और कड़ा हो जाता है। दूसरी ओर, नौकरी से निकाला जाना एक बड़ा मनोवैज्ञानिक असर पैदा करता है। क्या इस मुश्किल भरे इमोशनल उतार-चढ़ाव के दौर का अंदाजा लगाया जा सकता है?
शॉक
शुरुआती इमोशन शॉक वाला होता है। इस चरण में लोग बड़े कदम उठाना चाहते हैं। जैसे कि लंबी छुट्टी लेना या आप काम से लंबा ब्रेक लेना ताकि वे रिकवर कर सकें। हालांकि अगर परिवार के पास मोटी रकम न हो तो ऐसा नहीं करना चाहिए। बिना किसी योजना के ऐसा कदम उठाने से फाइनैंशल दिक्कतें होंगी और नई नौकरी पाने की राह और जटिल हो जाएगी। ऐसे वक्त में जरूरत तत्काल नौकरी पाने की होती है। दूसरे ऑप्शन के तौर पर, कुछ नॉन-ट्रेडिशनल रोल्स तलाशने चाहिए, जो रेज्यूमे को और मजबूत करें। इनमें आंत्रप्रन्योरशिप या कंसल्टिंग जैसे रोल हो सकते हैं।
इनकार
शॉक के बादल छंटने के बाद इनकार वाला तत्व पैदा होता है। भ्रम पैदा होता है कि सेविंग्स लंबे वक्त तक चलेगी। इसके बजाय अपने पास मौजूद कैश का गणित समझना चाहिए और वित्तीय स्थिति दुरुस्त करने की कोशिश करनी चाहिए। गैरजरूरी खर्च रोकने, ईएमआई का मामला संभालने और लाइफस्टाइल से जुड़े खर्च पर कंट्रोल के कदम उठाने चाहिए।
अकेलापन
नकारने की स्थिति से उबरने के बाद अकेलापन घेरता है। लोग फ्रेंड्स, फैमिली और प्रफेशनल नेटवर्क से खुद को अलग-थलग करने की कोशिश करते हैं क्योंकि वे उन्हें बताना नहीं चाहते हैं कि नौकरी छूट गई है। हालांकि ऐसा करने से उनके करियर को कोई फायदा नहीं होता। उन्हें स्थिति स्वीकार करनी चाहिए और यह मानना चाहिए कि सोशलाइज होने से वैल्यू बढ़ती है। अपनी पिछली फर्मों के प्रफेशनल लोगों से भी संपर्क करना चाहिए।
गुस्सा
एक बड़ा इमोशन गुस्से का भी है। दिमाग बताता है कि यह सबसे ठीक बात हुई है। वह समझाता है कि नौकरी छूटना इस बात का संकेत है कि आंत्रप्रन्योर के तौर पर शुरुआत की जा सकती है। ऐसी बातों में न फंसें। दुनिया के 30 फीसदी बेरोजगार और रोजगार में लगे लोगों को यही चीज सुनाई देती है। दरअसल, ऐसे लोगों को सबसे पहले एक अदद नौकरी का इंतजाम करना चाहिए जिससे पैसा मिले।
डिप्रेशन
गुस्से के बाद आदमी डिप्रेशन में चला जाता है। लोग पहले किए गए काम दोहराने लगते हैं। पिछली नौकरी दिलाने वाला रेज्यूमे इस्तेमाल करते हैं, लेकिन काम नहीं बनता। दरअसल उन्हें ऐसी चीजें इसमें जोड़नी चाहिए, जिनकी वैल्यू हो। अपने स्किल्स और फंक्शंस पर ठंडे दिमाग से सोचना चाहिए।
सौदेबाजी
इस चरण में लोग खुद से सौदेबाजी करते हैं। यानी क्या वे नए स्किल सीखकर करियर के नए ठिकाने तलाश सकते हैं या उन्हें एजुकेशन ब्रेक लेना चाहिए? सोचना यह चाहिए कि वे वास्तव में क्या कर सकते हैं। उन कंपनियों को पहचानें, जहां काम कर सकते हों।
स्वीकार्यता
इस चरण में लोग अपनी योजनाओं पर अमल करते हैं। जॉब सर्च को फुल टाइम ऐक्टिविटी बनाते हैं और अपना दिन लोगों से मिलने में गुजारते हैं। उनकी बातें सुनने वाले अनुमान लगाते हैं कि वे उनके संस्थान में क्या वैल्यू जोड़ सकते हैं। लोगों के साथ मिलने से नेटवर्क बढ़ता है और नई नौकरी मिलने के आसार बढ़ते हैं।
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