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Channel: Mutual Funds in Hindi - म्यूचुअल फंड्स निवेश, पर्सनल फाइनेंस, इन्वेस्टमेंट के तरीके, Personal Finance News in Hindi | Navbharat Times
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नकदी बचाकर रखें और धैर्य के साथ मार्केट का हाल देखें आम निवेशक

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पिछले 15 महीनों में चाइनीज मार्केट ने जबरदस्त तेजी देखी थी। रिटेल इन्वेस्टर्स ने इसमें असाधारण ढंग से भागीदारी की। जनवरी 2015 से ही वहां करीब 3 करोड़ नए ट्रेडिंग अकाउंट्स खोले गए। फाइनैंस कंपनियों से उधार लेकर शेयर खरीदने के नियमों में ढील देने से यह बुलबुला और बड़ा हुआ। कई ने तो मकान गिरवी रखकर शेयर खरीद डाले। इस बबल के फूटने का असर अब दिख रहा है। चीन का मार्केट 5 जून के हाई से 30% तक गिर चुका है। चीन सरकार की ओर से शेयरों की सेलिंग पर लगाई गई रोक का असर दूसरी ऐसेट्स में बिकवाली के रूप में सामने आएगा।

एक-दूसरे से जुड़ी इस दुनिया की कई कमजोरियां चाइनीज मार्केट में क्रैश से उभर कर सामने आएंगी। कमोडिटी प्राइसेज घट रही हैं। ऑस्ट्रेलिया, रूस और लैटिन अमेरिका जैसी कमोडिटी आधारित अर्थव्यवस्थाओं को ज्यादा चोट लग सकती है।

भारत सहित एशियाई अर्थव्यवस्थाओं में सुस्त इकनॉमिक ग्रोथ कोई नई बात नहीं रह गई है। 2008 के ग्लोबल फाइनैंशल क्राइसिस के बाद एशियाई निर्यातक देशों को गुड्स की डिमांड में भीषण कमी का सामना करना पड़ा था। रोल बदला तो ये विकसित देशों से कैपिटल गुड्स के आयातक में बदल गए। इस तरह विकसित देशों के रिवाइवल को मदद मिली। जापान का रिवाइवल चाइनीज इंपोर्ट्स पर निर्भर रहा तो यूरोजोन और अमेरिका की उम्मीदें एशिया, खासतौर से चीन को कैपिटल गुड्स के एक्सपोर्ट्स पर टिकी रहीं। अगर चीन के कैपिटल मार्केट क्राइसिस के कारण वहां कैपिटल इन्वेस्टमेंट में सुस्ती आई, तो इसका असर दुनियाभर पर पड़ेगा।

ग्रीस और यूरोजोन का संकट चीन के मामले के सामने कुछ भी नहीं है। हालांकि ये घटनाएं ग्लोबल इकॉनमी की कमजोरी का संकेत दे रही हैं, जो एक और झटका बर्दाश्त करने की हालत में नहीं है। ग्रीस के यूरोजोन से निकलने की गुंजाइश न के बराबर दिख रही है। ऐसा ही हुआ तो यूरोजोन का संसाधन डूब चुके कर्ज को निपटाने में खर्च होगा, न कि इकनॉमिक रिवाइवल पर।

दरअसल ग्लोबल इकनॉमिक रिवाइवल केवल नकदी की समस्या को हल करने से नहीं हो सकता है। इसके लिए इन्वेस्टमेंट और कंजम्प्शन डिमांड में रिवाइवल होना जरूरी है। अमेरिका अपनी इकनॉमिक ग्रोथ को रिवाइव करने के लिहाज से अच्छी स्थिति में है, लेकिन जिस रफ्तार से ऐसा होना चाहिए था, वैसा नहीं हो रहा है। यह अपने एक्सपोर्ट्स को रफ्तार देने की कोशिश में है, लेकिन इसकी करंसी ग्लोबल इन्वेस्टर्स के लिए सेफ हेवन बन गई है, जिससे डॉलर मजबूत हो रहा है। चाइनीज संकट गहराने पर अमेरिका में और ग्लोबल पूंजी जा सकती है।

इंडियन इन्वेस्टर्स के लिहाज से बात करें तो ग्लोबल क्राइसिस से हमारी इकनॉमिक ग्रोथ और कॉर्पोरेट प्रॉफिटेबिलिटी प्रभावित होगी। चूंकि भारत आयातक देश है, लिहाजा कमोडिटी और ऑइल की कम कीमतों से इसे फायदा होगा। फिर भी ग्लोबल क्राइसिस लिक्विडिटी की स्थिति पर असर डालेगी। अनिश्चितता बढ़ने पर इन्वेस्टर्स जोखिम वाली ऐसेट्स को बेचेंगे। चीन का संकट बढ़ा तो इंडियन इक्विटी और डेट मार्केट्स में बिकवाली हो सकती है। इससे रुपये पर दबाव बढ़ेगा।

जिन्हें लगता है कि संकट में गोल्ड खरीदना चाहिए, वे याद रखें कि 2009 से ही इन्वेस्टर गोल्ड इकट्ठा कर रहे हैं और तमाम पोर्टफोलियो इस पर ओवरवेट हैं, लिहाजा इसकी बिकवाली के आसार ज्यादा हैं। मजबूत होते डालर और गिरती कमोडिटीज के बीच गोल्ड में गिरावट आ सकती है।

अगर झंझावात बढ़ा तो धैर्य बनाए रखना बेहतर होगा। ऐसी हालत में जॉब, इनकम और एक अदद लोकतंत्र का बचे रहना एक बड़ा आशीर्वाद ही समझिए। ऐसा वक्त भी आता है, जब इन्वेस्टर्स को नकदी बचाकर चुपचाप बैठे रहना चाहिए। यह वही वक्त है।

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