पिछले कई साल से बहस चल रही है कि एंप्लॉयीज प्रविडेंट फंड (ईपीएफ) का पैसा शेयरों में लगाना चाहिए या नहीं? बहस किसी सास-बहू सीरियल की तरह है, जिसका प्लॉट तो तय होता है, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकलता। यह जल्द बदल सकता है।
पिछले हफ्ते एंप्लॉयीज प्रविडेंट फंड ऑर्गनाइजेशन (ईपीएफओ) के सेंट्रल बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज (सीबीटी) की मीटिंग में शेयरों में इन्वेस्टमेंट के फाइनैंस मिनिस्ट्री के प्रस्ताव पर चर्चा हुई। मीटिंग हंगामेदार रही, लेकिन मूड पहले से बहुत अलग नजर आया। इस बार ज्यादातर लोग पक्ष में दिखे। इस तरह के प्रस्ताव का विरोध करती आई लेबर मिनिस्ट्री ने इस बार पॉजिटिव सोच दिखाई। सीबीटी में वर्कर्स के 10 नुमाइंदों में एक और ट्रेड यूनियन सीटू के प्रेजिडेंट ए के पद्मनाभन ने कहा, 'यूपीए शासनकाल के दौरान जब फाइनैंस मिनिस्ट्री ने इस तरह का प्रपोजल दिया था, तब लेबर मिनिस्ट्री ट्रेड यूनियंस के साथ खड़ी थी। अब लेबर मिनिस्ट्री पर दबाव डालकर उसे रुख बदलने को मजबूर किया गया है।' सीबीटी में कुल 42 मेंबर्स हैं।
फाइनैंस मिनिस्ट्री चाहती है कि ईपीएफ फंड का एक छोटा हिस्सा शेयरों में लगाया जाए। सीबीटी की मीटिंग में इस सिलसिले में कई उपायों पर विचार हुआ। एक सुझाव यह था कि ईपीएफ के 8.25 लाख करोड़ रुपये के फंड का 1 पर्सेंट शेयर बाजार में लगाया जाए। इससे मार्केट में 8,250 करोड़ रुपये आएंगे। दूसरा रास्ता यह है कि 5 पर्सेंट इंक्रिमेंटल फंड इक्विटी में लगाया जाए। इससे शेयर बाजार में 3,500 करोड़ रुपये की अतिरिक्त रकम आ सकती है। भले ही इससे शेयर बाजार पर बहुत ज्यादा असर नहीं होगा, लेकिन ईपीएफ का रिटर्न बढ़ सकता है। अभी ईपीएफ कॉन्ट्रिब्यूशंस को डेट प्रॉडक्ट्स में लगाया जाता है। वहीं, केंद्र और राज्य सरकार के कर्मचारियों के नैशनल पेंशन सिस्टम (एनपीएस) से 8-12 पर्सेंट रकम शेयर बाजार में लगाई जाती है। एनपीएस ने पिछले पांच साल में प्रविडेंट फंड के मुकाबले ज्यादा रिटर्न दिया है।
एक्सपर्ट्स का मानना है कि एनपीएस के डर से लेबर मिनिस्ट्री शेयरों में पैसा लगाने को तैयार हुई है। इस साल बजट में ईपीएफ को ऑप्शनल बनाने की बात कही गई थी। इसका मतलब यह है कि एंप्लॉयीज रिटायरमेंट सेविंग्स के लिए ईपीएफ और एनपीएस में किसी को चुन सकते हैं। हालांकि, अब तक इसकी डिटेल नहीं दी गई है। वहीं लेबर यूनियंस शेयर बाजार में ईपीएफ का पैसा लगाने का विरोध करते आए हैं। सीबीटी के मेंबर और भारतीय मजदूर संघ के जनरल सेक्रटरी ब्रजेश उपाध्याय ने बताया, 'ईपीएफ वर्कर्स की मेहनत की कमाई है। इस पैसे को शेयर बाजार में लगाने का प्रस्ताव गलत है।'
इस तरह की दलील भी दी जाती रही है कि ईपीएफ को ग्लोबल पेंशन फंड्स की तर्ज पर शेयर बाजार में इनवेस्ट करना चाहिए। कई लोग इससे सहमत नहीं हैं। एटिका वेल्थ मैनेजमेंट के मैनेजिंग डायरेक्टर और सीईओ गजेंद्र कोठारी ने बताया, 'ग्लोबल पेंशन फंड्स भारत सहित पूरी दुनिया में इनवेस्ट कर रहे हैं। हमारा ईपीएफ तो अभी भारतीय शेयर बाजार में भी पैसा लगाने को तैयार नहीं है।' पद्मनाभन ने कहा, 'यह सच है कि इंटरनैशनल पेंशन फंड्स स्टॉक मार्केट में पैसा लगा रहे हैं। हालांकि कई पेंशन फंड स्टॉक मार्केट में पैसा लगाने के चलते दिवालिया हो चुके हैं। हम वर्कर्स के पैसे के ट्रस्टी हैं। हम भारी उतार-चढ़ाव वाले शेयर बाजार में पैसा नहीं लगा सकते।'
दूसरी ओर, सीबीटी में शामिल एंप्लॉयर्स के रिप्रेजेंटेटिव सरकार के प्रस्ताव से सहमत हैं। सीआईआई के प्रिंसिपल अडवाइजर सुशांत सेन ने कहा, 'वर्कर्स के हित के लिए हम भी जवाबदेह हैं। हम ऐसी पॉलिसी का समर्थन नहीं करेंगे, जिससे उन्हें नुकसान हो। अभी ईपीएफ पर 8.75 पर्सेंट रिटर्न मिल रहा है, जो आज के महंगाई के दौर में काफी नहीं है। अगर सुरक्षित तरीके से शेयर बाजार में पैसा लगाया जाए तो लॉन्ग टर्म में इससे बढ़िया रिटर्न हासिल किया जा सकता है।' वहीं फिक्की के सेक्रटरी बी पी पंत ने कहा, 'ज्यादातर सैलरीड एंप्लॉयीज खुद शेयरों में पैसा लगाने की क्षमता नहीं रखते। ऐसे में ईपीएफ के जरिये अगर छोटी रकम मार्केट में लगती है तो यह उनके लिए अच्छा होगा।'
ज्यादा रिटर्न के साथ ज्यादा रिस्क
इक्विटी से ज्यादा रिटर्न मिल सकता है और इसी आधार पर फाइनैंस मिनिस्ट्री के प्रस्ताव को बढ़ावा दिया जा रहा है। कोठारी ने कहा, 'जब इकॉनमी मच्योर होती है, तब डेट प्रॉडक्ट्स पर रिटर्न कम हो जाता है। तब आपके पास अधिक रिटर्न के लिए इक्विटी में पैसा लगाने के अलावा कोई रास्ता नहीं होता।' हालांकि इस प्रस्ताव के विरोधी इन तर्कों से सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि जिंदगी भर की कमाई को शेयर बाजार के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता, जो किसी एक साल में तो अच्छा चढ़ता है और किसी एक साल धराशायी हो जाता है। पद्मनाभन ने कहा, 'सवाल यह नहीं है कि इक्विटी में पैसा लगाने से हमें अच्छा रिटर्न मिलेगा या नहीं। शेयर बाजार में बहुत उतार-चढ़ाव होता है। हम इसमें पैसा लगाने के हक में नहीं हैं। हमारा यह रुख सिद्धांत की वजह से है।'
उधर, एक्सपर्ट्स ने फाइनैंस मिनिस्ट्री के इस प्रस्ताव का स्वागत किया है। कोटक महिंद्रा म्यूचुअल फंड के मैनेजिंग डायरेक्टर नीलेश शाह ने कहा, 'हम इस मामले में पहले ही 20 साल देर हो चुके हैं।' कुछ लोग यह भी उम्मीद कर रहे हैं कि अभी ईपीएफ का पैसा इक्विटी में लगाने की शुरुआत हो रही है। आगे चलकर एलोकेशन बढ़ाया जा सकता है। बिड़ला सनलाइफ म्यूचुअल फंड के ए बालासुब्रमण्यन ने कहा, '5 पर्सेंट रकम बहुत कम है, लेकिन अच्छी शुरुआत कही जा सकती है। कोई भी पहली बार में 20 पर्सेंट रकम लगाने को राजी नहीं होगा। ऐसे में कहीं से तो शुरुआत करनी होगी।' आउटलुक एशिया कैपिटल के सीईओ मनोज नागपाल के मुताबिक, 'यह अच्छा प्रपोजल है क्योंकि लॉन्ग टर्म फंड का कुछ हिस्सा शेयर बाजार में जरूर लगाया जाना चाहिए। हालांकि इसके लिए पहले ईपीएफओ को मनाना होगा।'
इक्विटी में कम ऐलोकेशन से रिस्क भी कम रहेगा
क्या 5 पर्सेंट फंड इक्विटी में लगाने से रिटर्न बढ़ेगा? सच तो यह है कि इतनी कम रकम से रिटर्न पर ज्यादा असर पड़ना नामुमकिन है। अगर कोई शख्स हर महीने 4,000 रुपये पीएफ में डालता है तो उसमें से सिर्फ 200 रुपये शेयरों में लगाए जाएंगे। नागपाल ने कहा, '5 पर्सेंट की लिमिट के चलते रिटर्न पर शायद ही खास असर पड़े। हालांकि लॉन्ग टर्म में 0.5 पर्सेंट का एक्सट्रा रिटर्न भी कुल रकम पर बहुत असर डाल सकता है। यह कमाल कंपाउंडिंग का है।' वहीं उम्रदराज सब्सक्राइबर्स के रिटर्न पर इसका ज्यादा असर नहीं होगा क्योंकि उनके पास इनवेस्टमेंट के लिए अधिक वक्त नहीं होगा। दिल्ली में रहने वाले स्कूल टीचर हरेंद्र पाल 49 साल के हैं और रिटायरमेंट में 10 साल बचे हैं। इसलिए 5 पर्सेंट एक्सट्रा रकम शेयर बाजार में लगाए जाने से उनके रिटर्न पर बहुत असर नहीं होगा।
लिमिट कम होने का एक फायदा यह है कि इसका रिस्क भी अधिक नहीं होगा। चेन्नै बेस्ड ऑटोमोबाइल इंजिनियर विवेक जाधव को शेयर बाजार से डर लगता है और उन्होंने इक्विटी में एक भी रुपया नहीं लगाया है। हिंद मजदूर सभा के सेक्रटरी अर्जुन देव नागपाल कहते हैं, 'ईपीएफओ के पास शेयर बाजार में पैसा लगाने की एक्सपर्टाइज नहीं है। वहीं, एलआईसी इस तरह का काम सालों से करती आई है। इसलिए हम 5 पर्सेंट फंड शेयर बाजार में लगाने के प्रस्ताव का विरोध कर रहे हैं।'
दूसरे लोगों ने भी यह चिंता जताई है। फिक्की के पंत ने कहा, 'इक्विटी ऐलोकेशन सोच-समझकर किया जाना चाहिए। इस पैसे को सीधे शेयर बाजार में लगाने की जरूरत नहीं है। यह रकम उन इंस्ट्रूमेंट्स में लगाई जा सकती है, जो लंबे समय के लिए हैं।' एक सुझाव इस पैसे को सेंसेक्स या निफ्टी ईटीएफ में लगाने का है। ईटीएफ में सेंसेक्स में शामिल कंपनियों के वेटेज के आधार पर इनवेस्टमेंट किया जाता है। एनपीएस फंड्स भी इसी तरह से शेयर बाजार में पैसा लगा रहे हैं।
दिलचस्प बात यह है कि केंद्र और राज्य सरकार के कर्मचारियों के एनपीएस को 15 पर्सेंट रकम शेयरों में लगाने की इजाजत है। हालांकि, अब तक इस पूरी लिमिट का इस्तेमाल नहीं किया गया है। जहां यूटीआई रिटायरमेंट सलूशन ने 12.4 पर्सेंट पैसा शेयरों में लगाया हुआ है, जबकि एसबीआई पेंशन फंड ने सिर्फ 8.4 पर्सेंट रकम ही मार्केट में लगाई है। यूटीआई रिटायरमेंट सलूशन के सीईओ और होलटाइम डायरेक्टर बलराम भगत कहते हैं, 'अभी इक्विटी होल्डिंग कम है क्योंकि पिछले कुछ साल में सरकारी बॉन्ड्स में हमें ट्रेडिंग के काफी मौके मिले हैं। सरकारी बॉन्ड पर अब यील्ड कम हो रही है, इसलिए यह समीकरण बदल रहा है। आने वाले वर्षों में हम शायद इक्विटी ऐलोकेशन की मैक्सिमम लिमिट का इस्तेमाल करेंगे।'
कामकाजी दिक्कतें
सरकार ईपीएफओ पर शेयर बाजार में पैसा लगाने के लिए दबाव डाल रही है, लेकिन इसके लिए कई कामकाजी दिक्कतें दूर करनी होंगी। पहली बात यह है कि ईपीएफ वैल्यूएशन एक्रुअल सिस्टम बेस्ड होता है। इस सिस्टम के तहत इनवेस्टमेंट को मच्योरिटी तक बनाए रखा जाता है और उससे मिलने वाला सालाना ब्याज इनकम मानी जाती है। एनएवी बेस्ड मार्क टू मार्केट सिस्टम में यह बदल जाएगा, जब ईपीएफ का पैसा शेयर बाजार में लगेगा। हिंद मजदूर सभा के नागपाल ने सवाल किया, 'ईपीएफ को हर साल रिटर्न की घोषणा करनी पड़ती है। उसे साल की शुरुआत में रिटर्न का ऐलान भी करना पड़ता है। अगर आप स्टॉक मार्केट में इनवेस्ट करेंगे तो साल की शुरुआत में रिटर्न के बारे में कैसे बताएंगे?' एक्रुअल मेथड से मार्क टू मार्केट सिस्टम में शिफ्ट करने का मतलब यह है कि सालाना रिटर्न में वोलैटिलिटी बढ़ सकती है। पिछले पांच साल में एनपीएस फंड के रिटर्न में काफी उतार-चढ़ाव हुआ है।
ईपीएफ या एनपीएस में किसे चुनें?
बजट में ईपीएफ को ऑप्शनल बनाने की बात कही गई है। अगर यह प्रस्ताव लागू हो जाता है तो इनवेस्टर्स अपने हिसाब से किसी एसेट में पैसा लगा सकेंगे। अगर कोई अग्रेसिव पोर्टफोलियो चाहता है तो वह एनपीएस में शिफ्ट हो सकता है, जिसमें इक्विटी में मैक्सिमम 50 पर्सेंट तक इनवेस्टमेंट किया जा सकता है। भगत ने कहा, 'अगर आपके रिटायरमेंट में 10 साल से अधिक समय बाकी है तो आपके लिए एनपीएस में शिफ्ट होना समझदारी भरा फैसला हो सकता है।'
दूसरी ओर, अगर आप रिटायरमेंट सेविंग्स को वोलैटाइल ऐसेट्स में नहीं लगाना चाहते तो एनपीएस के जरिये 100 पर्सेंट रकम गिल्ट फंड या बॉन्ड फंड में लगा सकते हैं। हालांकि, इस अप्रोच में भी एक रिस्क है। जैसा कि पहले बताया गया है, ईपीएफ एक्रुअल सिस्टम बेस्ड है। इसमें फिक्स्ड रिटर्न की घोषणा की जाती है। एनपीएस एनएवी बेस्ड प्रॉडक्ट है और यह मार्क टू मार्केट मेथड पर चलता है। इसका मतलब यह है कि एनपीएस में रिटर्न नेगेटिव भी हो सकता है।
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