धीरेंद्र कुमार, सीईओ, वैल्यू रिसर्च क्या म्यूचुअल फंड चुनते वक्त उसके पोर्टफोलियो की पड़ताल करनी चाहिए? क्या यह सही तरीका होगा? कुछ दिनों पहले मुझे एक इनवेस्टर की ईमेल मिली। उन्होंने ऐडलैब्स के आईपीओ में कई एसेट मैनेजमेंट कंपनियों (एएमसी) के इनवेस्टमेंट के बारे में कमेंट किया था। उनका कहना था कि जब इन एसेट मैनेजमेंट कंपनियों का आईपीओ में एक महीने का लॉक-इन पीरियड खत्म हो जाएगा, तब ऐडलैब्स के शेयर की कीमत इश्यू प्राइस से कम हो जाएगी। उन्होंने ईमेल में सवाल किया था, 'यह हम जैसे छोटे इनवेस्टर्स की गाढ़ी मेहनत की कमाई बर्बाद करना है। इस नुकसान के लिए कौन जवाबदेह है? क्या हम इन एसेट मैनेजमेंट कंपनियों के खिलाफ एक्शन ले सकते हैं? आखिर किस बुनियाद पर इन कंपनियों ने इस आईपीओ में पैसा लगाया?' इनवेस्टमेंट के इस अप्रोच में कई खामियां हैं। सबसे हास्यास्पद बात तो यह है कि एक महीने में आप किसी इक्विटी इनवेस्टमेंट को सही या गलत ठहरा सकते हैं। हालांकि, इससे बड़ी समस्या यह है कि क्या म्यूचुअल फंड इनवेस्टर्स को उस फंड के पोर्टफोलियो का विश्लेषण करना चाहिए, जिसमें वे पैसा लगा रहे हैं? और इनवेस्टर की तय की हुई अवधि में अगर पोर्टफोलियो में शामिल किसी स्टॉक पर नुकसान हुआ है तो 'एक्शन' लेना चाहिए। यह बेतुकी सोच है। इनवेस्टर को किसी म्यूचुअल फंड के परफॉर्मेंस को व्यापक तौर पर देखना चाहिए, भले उसका पैमाना रिटर्न हो या नेट एसेट वैल्यू (एनएवी) में उतार-चढ़ाव। किसी फंड के पोर्टफोलियो की पड़ताल के पीछे यह सोच है कि इनवेस्टर्स को इसी आधार पर उसमें पैसा लगाने या नहीं लगाने का फैसला करना चाहिए। बदकिस्मती की बात यह है कि ऐसा करने वालों की कमी नहीं है। यह गलती सिर्फ इनवेस्टर्स ही नहीं करते। फाइनेंशियल मीडिया और कुछ एनालिस्टों से भी यह भूल होती है। इस तरह की एनालिसिस में किसी स्कीम में शामिल किए गए हालिया स्टॉक्स का विश्लेषण किया जाता है। इसमें इंडीविजुअल स्टॉक्स की पड़ताल की जाती है और यह पता लगाने की कोशिश की जाती है कि अभी मार्केट में जिस तरह के स्टॉक्स चल रहे हैं, क्या ये भी वैसे ही हैं? क्या शॉर्ट टर्म में ये शेयर चढ़ेंगे? इस अप्रोच के साथ दो दिक्कतें हैं। पहली, इसमें मान लिया जाता है कि फंड मैनेजर की तुलना में किसी स्टॉक के बारे में इंडीविजुअल इनवेस्टर बेहतर समझ रखता है। अक्सर ऐसी गलती वैसे इनवेस्टर्स करते हैं, जो खुद शेयर बाजार में सीधे पैसा लगाते रहे हैं और वे म्यूचुअल फंड में भी कुछ इनवेस्टमेंट करते हैं। मुझे ब्रोकरेज हाउसों से जो रिसर्च रिपोर्ट्स मिलती हैं। मेरा मानना है कि इस अप्रोच के पीछे स्टॉक ब्रोकिंग यूनिट्स हैं, जो इसके साथ म्यूचुअल फंड्स भी बेचती हैं। इन रिपोर्ट्स में आम तौर पर ऐसा तर्क होता है, 'इस फंड की टॉप 2 होल्डिंग्स एसबीआई और आईसीआईसीआई बैंक हैं, लेकिन इनमें से कोई भी अभी हमारी बाय लिस्ट में नहीं है। इसलिए हम इस फंड में पैसा लगाने की सलाह नहीं देंगे।' स्टॉक ब्रोकिंग यूनिट्स, शेयरों का विश्लेषण करती हैं। म्यूचुअल फंड्स में भी वे यही काम कर रही हैं। इस इनवेस्टमेंट अप्रोच में अक्सर फाइनेंशियल मीडिया भी गलती करता है। वह किसी फंड के पोर्टफोलियो के कुछ स्टॉक्स का विश्लेषण करता है, जिसमें हाल में गिरावट आई है। इसमें इस बात पर ध्यान नहीं दिया जाता कि उस फंड से इनवेस्टर्स को कितना रिटर्न मिला है। किसी फंड की एनालिसिस में सबसे अहम चीज रिटर्न है, जो इनवेस्टर्स को मिला है। उसके परफॉर्मेंस की तुलना बेंचमार्क इंडेक्स और उसी कैटेगरी के दूसरे फंड्स से की जानी चाहिए।
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