इंश्योरेंस लॉज (अमेंडमेंट) बिल 2015 को गुरुवार को राज्यसभा ने भी पास कर दिया। इस बिल में फॉरन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट की लिमिट 26 पर्सेंट से बढ़ाकर 49 पर्सेंट कर दी गई है। बिल के इसी प्रविजन को लेकर सबसे अधिक चर्चा भी हो रही है, लेकिन पॉलिसीहोल्डर्स पर भी इस बिल के पास होने का काफी असर पड़ेगा।
पहली बात तो यह है कि फॉरन पार्टनर कंपनियों के स्टेक बढ़ाने से मार्केट में इनोवेटिव प्रॉडक्ट्स आएंगे। कस्टमर्स को बेहतर सर्विस और टेक्नॉलजी मिलेगी। इससे इंश्योरेंस सेक्टर में कस्टमर सर्विस स्टैंडर्ड्स में सुधार हो सकता है। आईडीबीआई फेडरल लाइफ के सीईओ और होलटाइम डायरेक्टर विघ्नेश सहाणे ने कहा, 'कंपनियों को अब अधिक पूंजी मिलेगी। इसके साथ डोमेन एक्सपर्टाइज भी बेहतर होगा। इससे बाजार में अधिक कॉम्पिटिटिव प्रॉडक्ट्स आ सकते हैं। प्रॉडक्ट इनोवेशन और टेक्नॉलजी का बेहतर इस्तेमाल भी दिखेगा।'
नए कानून में सख्त पेनल्टी की बात कही गई है। कई उल्लंघन को लेकर इसमें 1 करोड़ से 25 करोड़ रुपये तक की पेनल्टी की शर्त है। मिस-सेलिंग और मिस-रिप्रेजेंटेशन के मामलों में भी पेनल्टी लगाने की बात कही गई है। इससे इंडस्ट्री में मिस-सेलिंग की प्रॉब्लम खत्म करने में मदद मिलेगी। इस बारे में एसबीआई लाइफ के मैनेजिंग डायरेक्टर और सीईओ अरिजीत बसु ने कहा, 'इंश्योरेंस बिल में कहा गया है कि अगर किसी कंपनी का एजेंट मिस-सेलिंग करता है तो उसके लिए कंपनी जिम्मेदार होगी। हमने इस बारे में क्लैरिफिकेशन मांगी है। अगर कोई कंपनी गड़बड़ी करने वाले डिस्ट्रीब्यूटर्स के खिलाफ ऐक्शन लेती है क्या तब भी कंपनी पर पेनल्टी लगेगी? अभी इस बारे में तस्वीर साफ नहीं है।'
बिल में एक और प्रविजन है, जिसका लेना-देना पॉलिसी लेते वक्त आपकी ओर से दी गई जानकारी से है। बीमा कंपनियां तीन साल के बाद लाइफ पॉलिसी पर सवाल नहीं खड़े कर सकतीं। उन्हें किसी भी आधार पर ऐसा करने की इजाजत नहीं होगी। तीन साल के अंदर ही किसी तरह के फ्रॉड को लेकर आवाज उठानी होगी। इस तरह के मामलों में इंश्योरेंस कंपनी को लिखित में बताना होगा कि वह किस आधार पर किसी को फ्रॉड बता रही है। अगर पॉलिसीहोल्डर यह बात साबित कर देता है कि उसने जान-बूझकर कोई गलत सूचना नहीं दी है तो उसकी पॉलिसी कैंसल नहीं की जा सकेगी। बसु ने बताया कि इस बिल से ईमानदार पॉलिसीहोल्डर्स को फायदा होगा। गलत आधार पर उनका क्लेम खारिज नहीं किया जा सकेगा।
नए कानून में नॉमिनेशन प्रोसेस को भी आसान बनाया गया है। अभी नॉमिनीज को बेनेफिशरीज नहीं माना जाता, उन्हें सिर्फ क्लेम की रकम दी जाती है। इंश्योरेंस कंपनी नॉमिनी को बीमा की रकम अदा करने के बाद हर तरह की लीगल लायबिलिटीज से मुक्त हो जाती है। इसमें वास्तविक बेनेफिशरीज को नॉमिनी से अपना हिस्सा मांगना होता है। नए कानून के लागू होने के बाद लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी के लिए माता-पिता, पत्नी और बच्चे सहित कई नॉमिनी हो सकते हैं। नया कानून इन सभी को बेनेफिशरीज का दर्जा देता है। इसके तहत क्लेम की रकम किस रेशियो में बेनेफिशरीज के बीच बांटनी है, यह तय किया जा सकता है।
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