चंद्रलेखा मुखर्जी
टैक्स की डेडलाइन करीब आ रही है और आपको हर अठन्नी बचाने की कोशिश करनी चाहिए। इस बचत में आपके लिए सबसे पहला ऑप्शन इंश्योरेंस पॉलिसी का हो सकता है। आप इस साल नया प्लान खरीदने के बजाय क्यों नहीं कंपनियों के स्पेशल पॉलिसी रिवाइवल अभियान में शामिल होकर अपना लैप्स्ड प्लान रिन्यू करा लेते? इंश्योरेंस कंपनी का ऑफर कमाल का लग सकता है? पेनल्टी चार्ज पर डिस्काउंट, फ्री पॉलिसी बहाली और कोई नया डॉक्यूमेंटेशन या हेल्थ चेकअप नहीं। हालांकि, अंतिम फैसला लेने से पहले थोड़ी और ऐनालिसिस करनी चाहिए।
इंश्योरेंस पॉलिसी ग्रेस पीरियड के भीतर प्रीमियम न चुकाने पर लैप्स हो जाती है। सालाना, छमाही और तिमाही प्रीमियम पेमेंट वाली पॉलिसी के लिए ग्रेस पीरियड 30 दिन और मंथली रिन्यूअल वाले में 15 दिन का ग्रेस पीरियड होता है। इसको उस साल के बाद पांच साल के भीतर रिवाइव किया जाता है, जिस साल प्रीमियम पहली बार मिस हुआ हो। लैप्स्ड पॉलिसी रिवाइव करने के लिए पांच साल तक जमा हुए प्रीमियम को ब्याज सहित चुकाना होता है। पॉलिसी और इंश्योरेंस कंपनी के हिसाब से प्लान के बकाया प्रीमियम पर 8-9 पर्सेंट पेनल्टी चुकानी होती है, जिससे आमतौर पर 5-6% रिटर्न मिलने वाला होता है। इस हिसाब से इसको रिन्यू कराना फायदेमंद नहीं होगा।
इंश्योरेंस कंपनियां स्पेशल स्पॉट स्कीमों के जरिए पॉलिसीहोल्डर्स को अट्रैक्ट करने की कोशिश में जुटी हैं। ये कंपनियां (लैप्स) पॉलिसीहोल्डर्स को 31 मार्च की डेडलाइन का ऑफर दे रही हैं, लेकिन इसमें एक पेच है। अगर इंश्योरेंस कंपनी को लगता है कि रिस्क बहुत ज्यादा है यानी सम अश्योर्ड बहुत ज्यादा है और दो साल की पॉलिसी में कस्टमर्स के बीमार होने का रिस्क बढ़ गया है तो हो सकता है कि इंश्योरेंस कंपनी आपको हेल्थ चेकअप कराने या अच्छे स्वास्थ्य का डिक्लेरेशन देने के लिए कहे। यह फ्रेश असेसमेंट के साथ नई अंडराइटिंग के साथ फ्रेश पॉलिसी लेने जैसा होगा।
PNB मेटलाइफ के डायरेक्टर ऑपरेशंस शिव कुमार एन कहते हैं, 'यह बात जरूर है कि कस्टमर ने पहले डिटेल्ड मेडिकल टेस्ट कराया होगा, लेकिन अगर हमें लगता है कि पिछले दो साल में उसकी हेल्थ कंडिशन चेंज हुई है तो हम उनसे फ्रेश मेडिकल टेस्ट कराने के लिए कहते हैं क्योंकि यह उनकी पॉलिसी के रिस्क असेसमेंट को प्रभावित कर सकता है।'
अगर आपकी पॉलिसी दो साल से ज्यादा पुरानी हो गई है तो इसकी बड़ी संभावना है कि यह 2013 की गाइडलाइंस वाले जमाने से पहली की हो। कुमार कहते हैं, 'अगर पॉलिसी गाइडलाइंस के हिसाब से इश्यू की गई थी तो इसको पुराने टर्म्स एंड कंडिशंस के हिसाब से रिन्यू कराया जा सकता है। यह रेग्युलेटर की कॉन्ट्रैक्चुअल गाइडलाइंस के हिसाब से है।' अगर आपका पुराना इंश्योरेंस प्लान बैड पॉलिसी और कमिशन स्ट्रक्चर और हाई मॉर्टेलिटी चार्ज के हिसाब है तो आपकी दिक्कत और बढ़ सकती है।
फिनकार्ट के फाउंडर और CEO तनवीर आलम के मुताबिक, 'इंश्योरेंस कंपनियों की ग्रोथ इस साल बहुत कम रही थी। इसलिए मौजूदा कस्टमर्स से प्रीमियम हासिल करने के मकसद से यह कवायद हो रही है। इसमें बैड प्लान रिन्यू कराने के लिए उनके सामने जीरो पेनल्टी का ऑफर का चारा फेंका जा रहा है। साथ में उनको कृतार्थ महसूस कराया जा रहा है।'
नई प्रीमियम और पॉलिसी कंडिशंस उस पीरियड पर भी डिपेंड करती है, जिसमें उसके प्रीमियम का भुगतान नहीं किया गया है। इसके अलावा इसमें पॉलिसीहोल्डर की उम्र और सम अश्योर्ड का भी ध्यान रखा जाता है। इसलिए अगर पिछले अनपेड प्रीमियम की ड्यू डेट के बाद से आपका एज बैंड चेंज हो गया है तो इंश्योरेंस कंपनी आपके लिए मॉर्टेलिटी रेट बढ़ा सकती है।
आपको यह बात भी समझनी होगा कि जिस पीरियड में पॉलिसी लैप्स रही थी, उस दौरान जारी किया गया ऐनुअल बोनस आपको नहीं मिलेगा, भले ही आप पॉलिसी को रिन्यू करा लें। अगर पॉलिसी तीन साल से ज्यादा पुरानी है तो आपको सरेंडर वैल्यू भी चेक करना चाहिए। लेकिन कई मौके ऐसे होते हैं जब लैप्स प्लान रिन्यू करना फायदेमंद होता है।
आलम कहते हैं, 'अगर थोड़ी नई पॉलिसी है और जिसमें दो साल का प्रीमियम चुका दिया गया है और पैसे जब्त हो जाने का रिस्क है तो पॉलिसीहोल्डर्स को प्लान रिन्यू करा लेना चाहिए। अगर आपके साथ स्वास्थ्य संबंधी बड़ी दिक्कत है तो आपके लिए नई पॉलिसी खरीदने के बजाय मौजूदा इंश्योरेंस कंपनी के साथ सौदेबाजी करना बेहतर होगा।'
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