धीरेंद्र कुमार
इंटरनेट पर कुछ समय पहले मुझे इन्वेस्टमेंट पर दी गई एक शानदार स्पीच मिली थी। लगभग 40 साल पहले की यह स्पीच एक इन्वेस्टमेंट मैनेजर की थी। वह बैटरीमार्च फंड नाम की एक मैनेजमेंट फर्म से जुड़े हुए थे। 'ट्राइंग टू हार्ड' नाम की इस स्पीच की आज काफी अहमियत है। यह स्पीच आपको गूगल करने से मिल जाएगी। इससे जुड़ा एक दिलचस्प पहलू यह है कि इसमें फिजिक्स और इन्वेस्टमेंट में समानता होने की बात कही गई है।
न्यूटोनियन यानी क्लासिक फिजिक्स फिजिकल लॉ बेस्ड फिजिकल इवेंट्स पर आधारित है। ज्यादातर सिक्यॉरिटी ऐनालिसिस, टेक्निकल ऐनालिसिस, इकनॉमिक थिअरी और फोरकास्टिंग मेथड को आप इन्हीं सिद्धांतों पर आधारित पाएंगे। आसपास की चीजों को प्रभावित करने वाली आर्थिक शक्तियां तार्किक होती हैं। अगर हमें कंपनी की हर डिटेल पता हो तो उनके बारे में पूर्वानुमान दिया जा सकता है। बशर्ते हमारे पास फोरकास्टिंग मॉडल के लिए सही वेरिएबल हों। अर्निंग और प्राइस और इंटरेस्ट रेट तार्किक आधार पर चलते हैं और उनके बारे में पूर्वानुमान दिया जा सकता है। बशर्ते हम पूरी कोशिश करें लेकिन फिजिक्स में इन्वेस्टर्स के लिए हकीकत क्वॉन्टम मकैनिक्स जैसी होती है। जरूरी नहीं कि इवेंट्स की तार्किक वजह हो। जिन चीजों की वजह से वित्तीय और आर्थिक घटनाएं होती हैं, वह वैसी नहीं होतीं, जो हम सोच रहे होते हैं।
ज्यादातर इक्विटी इन्वेस्टर्स को लगता है कि अगर वे ठीकठाक जानकारी जुटा लें और उस पर अमल करें तो उन्हें पता चल जाएगा कि किसी इन्वेस्टमेंट के साथ क्या होने वाला है। कुल मिलाकर वे यह जानने की कोशिश कर रहे होते हैं कि कल शेयरों का भाव क्या रह सकता है जिसे जानकर मुनाफा बटोरा जा सकता है। हम सबको यही लगता है कि रिसर्च रिपोर्ट या बिजनस प्रेस आर्टिकल में अच्छा पूर्वानुमान हो सकता है। उन्हें ऐसा क्यों लगता है? यह इस बात पर डिपेंड करता है कि वह भविष्य क्या है जिसका अनुमान लगाना है। क्या इसका मतलब यह है कि एक जानीमानी कंपनी के फाइनैंशल आंकड़े नियर फ्यूचर में कैसे हो सकते हैं या हम किसी बड़े असर के बारे में सोच रहे हैं।
इस प्रश्न का उत्तर तब स्पष्ट दिखता है, जब हम बीते हुए कल में देखते हैं और पाते हैं कि क्या चीजें प्रिडिक्टेबल थीं और क्या नहीं। आइए देखते हैं कि पिछली सदी के अंतिम 25 सालों में इकॉनमी और मार्केट में क्या हुआ था। क्या उसको लेकर कोई पूर्वानुमान दिया जा सकता था? लॉन्ग टर्म और शॉर्ट टर्म ट्रेंड दोनों पर विचार करते हैं। क्या आप 80 के दशक के अंतिम दिनों में इंडियन सॉफ्टवेयर सर्विसेज इंडस्ट्री के उत्थान के बारे में पूर्वानुमान दे सकते थे? क्या शहरी इलाकों में रहन-सहन के स्तर के बारे में पूर्वानुमान दिया जा सकता था?
क्या 1995 में इंटरेस्ट रेट में गिरावट और उसके चलते हाउसिंग सेक्टर में बूम का पूर्वानुमान दिया जा सकता था? क्या 1996 में 20,000 रुपये के बेसिक मोबाइल फोन को देखकर यह अनुमान लगाया सकता था कि 2008 में इंडिया में कितने मोबाइल कनेक्शन होंगे? क्या 2008 में ग्लोबल फाइनैंशल सिस्टम के धराशायी होने का अनुमान दो साल पहले दिया जा सकता था। जब बाजार ने 2009 में मनमोहन सिंह के मजबूत जनादेश के साथ सत्ता में लौटने पर उनका स्वागत किया था तो क्या अगले पांच साल में होने वाली दुर्गति का पूर्वानुमान दिया जा सकता था? हालिया घटनाएं भी इसी क्रम में आती हैं तो उनका जिक्र करना बेमानी है।
यह बात बेतुकी है कि बहुत से एक्सपर्ट बीती बातों का पूर्वानुमान देने में माहिर हैं। वे अब कहेंगे कि अंग्रेजी बोलने वाले टेक्निकल वर्कफोर्स के चलते इंडिया में IT और ITES सर्विसेज का एक्सपोर्ट मुमकिन हो पाया और इलेक्ट्रॉनिक गुड्स के दाम में गिरावट के चलते मोबाइल टेलीफोनी का दौर आया लेकिन ये लोग पहले हो चुकी घटनाओं के बारे में आज बता रहे हैं। स्टॉक मार्केट की मूवमेंट भी कुछ ऐसे ही सरप्राइज दे रही है। पिछले दो दशकों के किसी भी बुल और बेयर मार्केट की दिशा और असर के बारे में अंदाजा लगाना मुमकिन नहीं था।
तो क्या इन सबका मतलब यही निकलता है कि निवेशकों को इस बारे में सोचना बंद कर देना चाहिए कि आगे क्या होने वाला है? ऐसा नहीं है। असल में अगर हम किसी चीज का पूर्वानुमान नहीं दे सकते तो इसका मतलब यह है कि जिसके बारे में नहीं जानते हैं, वह असल में जानने लायक है। लॉन्ग ट्रैक रिकॉर्ड के आधार पर कंपनी की कारोबारी स्थिति का अनुमान लगाया जा सकता है। बड़े और डायवर्सिफाइड पोर्टफोलियो से कंपनी और सेक्टर विशेष को प्रभावित करनेवाली घटनाओं के असर को काटा जा सकता है।
(CEO, वैल्यू रिसर्च)
इंटरनेट पर कुछ समय पहले मुझे इन्वेस्टमेंट पर दी गई एक शानदार स्पीच मिली थी। लगभग 40 साल पहले की यह स्पीच एक इन्वेस्टमेंट मैनेजर की थी। वह बैटरीमार्च फंड नाम की एक मैनेजमेंट फर्म से जुड़े हुए थे। 'ट्राइंग टू हार्ड' नाम की इस स्पीच की आज काफी अहमियत है। यह स्पीच आपको गूगल करने से मिल जाएगी। इससे जुड़ा एक दिलचस्प पहलू यह है कि इसमें फिजिक्स और इन्वेस्टमेंट में समानता होने की बात कही गई है।
न्यूटोनियन यानी क्लासिक फिजिक्स फिजिकल लॉ बेस्ड फिजिकल इवेंट्स पर आधारित है। ज्यादातर सिक्यॉरिटी ऐनालिसिस, टेक्निकल ऐनालिसिस, इकनॉमिक थिअरी और फोरकास्टिंग मेथड को आप इन्हीं सिद्धांतों पर आधारित पाएंगे। आसपास की चीजों को प्रभावित करने वाली आर्थिक शक्तियां तार्किक होती हैं। अगर हमें कंपनी की हर डिटेल पता हो तो उनके बारे में पूर्वानुमान दिया जा सकता है। बशर्ते हमारे पास फोरकास्टिंग मॉडल के लिए सही वेरिएबल हों। अर्निंग और प्राइस और इंटरेस्ट रेट तार्किक आधार पर चलते हैं और उनके बारे में पूर्वानुमान दिया जा सकता है। बशर्ते हम पूरी कोशिश करें लेकिन फिजिक्स में इन्वेस्टर्स के लिए हकीकत क्वॉन्टम मकैनिक्स जैसी होती है। जरूरी नहीं कि इवेंट्स की तार्किक वजह हो। जिन चीजों की वजह से वित्तीय और आर्थिक घटनाएं होती हैं, वह वैसी नहीं होतीं, जो हम सोच रहे होते हैं।
ज्यादातर इक्विटी इन्वेस्टर्स को लगता है कि अगर वे ठीकठाक जानकारी जुटा लें और उस पर अमल करें तो उन्हें पता चल जाएगा कि किसी इन्वेस्टमेंट के साथ क्या होने वाला है। कुल मिलाकर वे यह जानने की कोशिश कर रहे होते हैं कि कल शेयरों का भाव क्या रह सकता है जिसे जानकर मुनाफा बटोरा जा सकता है। हम सबको यही लगता है कि रिसर्च रिपोर्ट या बिजनस प्रेस आर्टिकल में अच्छा पूर्वानुमान हो सकता है। उन्हें ऐसा क्यों लगता है? यह इस बात पर डिपेंड करता है कि वह भविष्य क्या है जिसका अनुमान लगाना है। क्या इसका मतलब यह है कि एक जानीमानी कंपनी के फाइनैंशल आंकड़े नियर फ्यूचर में कैसे हो सकते हैं या हम किसी बड़े असर के बारे में सोच रहे हैं।
इस प्रश्न का उत्तर तब स्पष्ट दिखता है, जब हम बीते हुए कल में देखते हैं और पाते हैं कि क्या चीजें प्रिडिक्टेबल थीं और क्या नहीं। आइए देखते हैं कि पिछली सदी के अंतिम 25 सालों में इकॉनमी और मार्केट में क्या हुआ था। क्या उसको लेकर कोई पूर्वानुमान दिया जा सकता था? लॉन्ग टर्म और शॉर्ट टर्म ट्रेंड दोनों पर विचार करते हैं। क्या आप 80 के दशक के अंतिम दिनों में इंडियन सॉफ्टवेयर सर्विसेज इंडस्ट्री के उत्थान के बारे में पूर्वानुमान दे सकते थे? क्या शहरी इलाकों में रहन-सहन के स्तर के बारे में पूर्वानुमान दिया जा सकता था?
क्या 1995 में इंटरेस्ट रेट में गिरावट और उसके चलते हाउसिंग सेक्टर में बूम का पूर्वानुमान दिया जा सकता था? क्या 1996 में 20,000 रुपये के बेसिक मोबाइल फोन को देखकर यह अनुमान लगाया सकता था कि 2008 में इंडिया में कितने मोबाइल कनेक्शन होंगे? क्या 2008 में ग्लोबल फाइनैंशल सिस्टम के धराशायी होने का अनुमान दो साल पहले दिया जा सकता था। जब बाजार ने 2009 में मनमोहन सिंह के मजबूत जनादेश के साथ सत्ता में लौटने पर उनका स्वागत किया था तो क्या अगले पांच साल में होने वाली दुर्गति का पूर्वानुमान दिया जा सकता था? हालिया घटनाएं भी इसी क्रम में आती हैं तो उनका जिक्र करना बेमानी है।
यह बात बेतुकी है कि बहुत से एक्सपर्ट बीती बातों का पूर्वानुमान देने में माहिर हैं। वे अब कहेंगे कि अंग्रेजी बोलने वाले टेक्निकल वर्कफोर्स के चलते इंडिया में IT और ITES सर्विसेज का एक्सपोर्ट मुमकिन हो पाया और इलेक्ट्रॉनिक गुड्स के दाम में गिरावट के चलते मोबाइल टेलीफोनी का दौर आया लेकिन ये लोग पहले हो चुकी घटनाओं के बारे में आज बता रहे हैं। स्टॉक मार्केट की मूवमेंट भी कुछ ऐसे ही सरप्राइज दे रही है। पिछले दो दशकों के किसी भी बुल और बेयर मार्केट की दिशा और असर के बारे में अंदाजा लगाना मुमकिन नहीं था।
तो क्या इन सबका मतलब यही निकलता है कि निवेशकों को इस बारे में सोचना बंद कर देना चाहिए कि आगे क्या होने वाला है? ऐसा नहीं है। असल में अगर हम किसी चीज का पूर्वानुमान नहीं दे सकते तो इसका मतलब यह है कि जिसके बारे में नहीं जानते हैं, वह असल में जानने लायक है। लॉन्ग ट्रैक रिकॉर्ड के आधार पर कंपनी की कारोबारी स्थिति का अनुमान लगाया जा सकता है। बड़े और डायवर्सिफाइड पोर्टफोलियो से कंपनी और सेक्टर विशेष को प्रभावित करनेवाली घटनाओं के असर को काटा जा सकता है।
(CEO, वैल्यू रिसर्च)
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