नई दिल्ली
वे दोनों एकसाथ स्कूल गए। वह पढ़ने-लिखने में बेहतर थी और क्लास टॉपर थी। कॉलेज में उन दोनों को एक-दूसरे से मुहब्बत हो गई। लड़की को अच्छी रैंकिंग वाले मैनेजमेंट स्कूल में दाखिला और बेहतर ऑफर के साथ प्लेसमेंट मिला। दोनों ने शादी कर ली। वे एक बच्चे के मां-बाप बने। और आखिरकार करियर की राह में वह पिछड़ गई।
महिलाओं के काम करने के बारे में कई लोग यह बात नहीं समझते कि छोटे बच्चे को घर पर छोड़कर ऑफिस जाना बहुत मुश्किल होता है। मुश्किल आर्थिक स्थितियों वाले दिनों में मर्द और औरत, दोनों के कमाई के लिए घर से बाहर जाना जरूरी था। हालांकि आर्थिक समृद्धि का नया दौर शुरू होने से कई पढ़ी-लिखी महिलाएं बाहर कामकाज नहीं करने का विकल्प चुन रही हैं।
सामान्य तौर पर वर्कप्लेस पुरुषों को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं। परफॉर्मेंस के पैमाने भी पुरुष ही तय करते हैं। जो मसला महिलाएं फोन कॉल पर सुलझा सकती हैं, उसी काम के लिए पुरुष आमने-सामने बैठकर बात करना पसंद करते हैं। बहरहाल ज्यादा महिलाओं के प्रोफेशनल लाइफ अपनाने से वर्कप्लेस का मिजाज बदला है, लेकिन घर पर छोटे बच्चे की देखभाल के मामले में यंग मदर के लिहाज से संतोषजनक समाधान नहीं ढूंढा जा सका है। ऐसे में घर से ही काम करने के सिवा दूसरा कोई संतोषजनक रास्ता नजर नहीं आता।
कंपनियां गाड़ियों को दिनभर पार्क करने की सुविधा देती हैं, लेकिन छोटे बच्चों की देखभाल का इंतजाम ऑफिस परिसर में करना उनकी प्राथमिकता में नहीं है। ऐसे में कई महिलाएं काम छोड़ने या लंबा ब्रेक लेने का रास्ता चुनती हैं। इसका पर्सनल फाइनेंस पर क्या असर पड़ता है?
परिवार को एक झटके में सिंगल इनकम पर निर्भर होना पड़ जाता है। पहले से प्लानिंग न हो तो हाउसहोल्ड इनकम में कमी से तनाव बढ़ सकता है। इस बदलाव से निपटने में समस्या इस वजह से आती है कि लोग जरूरी खर्च और आनंद के लिए किए जाने वाले खर्च में अंतर नहीं कर पाते। सवाल करें कि क्या दो कारों की जरूरत है? जिम और क्लब मेंबरशिप को रिन्यू करना जरूरी है जबकि इनका उपयोग काफी कम किया जा रहा हो? क्या मनोरंजन के लिए बाहर जाने का खर्च ज्यादा नहीं है? छोटे-छोटे खर्च जुड़कर बड़े हो जाते हैं। ऐसे में यह तय करना अहम है कि क्या जरूरी है। उन्हीं मदों को इसमें शामिल किया जाए, जिन्हें सिंगल इनकम से पूरा किया जा सकता हो।
बच्चे के जन्म के साथ नए खर्च जुड़ते हैं। यंग पैरेंट्स यह देखकर हैरान रह जाते हैं कि शिशु रोग विशेषज्ञ के पास प्राय: जाने का खर्च इंश्योरेंस पॉलिसी में कवर नहीं होता। कुछ यंग पैरेंट्स को दुर्भाग्य से कुछ गंभीर चिकित्सकीय स्थितियों का सामना करना पड़ता है। नवजात के लिए आने वाली बीमा पॉलिसी में हो सकता है कि ये सभी स्थितियां कवर नहीं होती हों। इसके अलावा घर में बच्चे की देखभाल पर भी काफी खर्च होता है।
यंग कपल को बच्चे के जन्म से पहले इन बातों के लिए तैयार रहना चाहिए। कामकाजी महिला को अपनी इनकम से ऐसा कॉरपस बना लेना चाहिए, जिसकी मदद वह कामकाज से ब्रेक के दौरान ले सकें। हो सकता है कि वह करियर दोबारा शुरू करना चाहें। इसके लिए भी उन्हें तैयारी रखनी चाहिए। इसके अलावा पुरुष को यह ध्यान रखना चाहिए कि उनकी इनकम इस लेवल पर पहुंच चुकी हो कि केवल उनकी कमाई पर मामला आ जाने से परिवार को दिक्कत न हो।
यंग पैरेंट्स की इन्वेस्टमेंट और इंश्योरेंस की जरूरतें भी बढ़ जाती हैं। पर्याप्त इंश्योरेंस कवर होना जरूरी है। बच्चे की प्लानिंग करने से पहले टर्म इंश्योरेंस जरूर लेना चाहिए। इसी तरह पर्याप्त मेडिकल इंश्योरेंस भी लेना चाहिए। बच्चे के जन्म के बाद परिवार लॉन्ग टर्म गोल्स के बारे में गंभीरता से सोचना शुरू करता है। तब तक अपनी आमदनी बड़े आराम से खर्च करने वाले यंग कपल्स अपने बच्चे के भविष्य के बारे में सोचने लगते हैं। बच्चे के जन्म से पहले ही अगर नियमित बचत करने की आदत पड़ गई हो तो वह काफी उपयोगी साबित होती है। अपनी इनकम का 20 प्रतिशत हिस्से की बचत करती आ रही फैमिली को प्राय: परेशानी नहीं होती है।
कई लोग दलील देते हैं कि वर्तमान अच्छे से गुजारना चाहिए और फाइनेंशियल प्लानिंग में मगजमारी नहीं करनी चाहिए। हालांकि बच्चे के जन्म के साथ कई बार करियर को झटका लग सकता है, प्राथमिकताएं बदल जाती हैं और आमदनी-खर्च का गणित हिल जाता है, लिहाजा यह मामला पहले से योजना बनाने की अहमियत बताने वाला क्लासिक उदाहरण है।
वे दोनों एकसाथ स्कूल गए। वह पढ़ने-लिखने में बेहतर थी और क्लास टॉपर थी। कॉलेज में उन दोनों को एक-दूसरे से मुहब्बत हो गई। लड़की को अच्छी रैंकिंग वाले मैनेजमेंट स्कूल में दाखिला और बेहतर ऑफर के साथ प्लेसमेंट मिला। दोनों ने शादी कर ली। वे एक बच्चे के मां-बाप बने। और आखिरकार करियर की राह में वह पिछड़ गई।
महिलाओं के काम करने के बारे में कई लोग यह बात नहीं समझते कि छोटे बच्चे को घर पर छोड़कर ऑफिस जाना बहुत मुश्किल होता है। मुश्किल आर्थिक स्थितियों वाले दिनों में मर्द और औरत, दोनों के कमाई के लिए घर से बाहर जाना जरूरी था। हालांकि आर्थिक समृद्धि का नया दौर शुरू होने से कई पढ़ी-लिखी महिलाएं बाहर कामकाज नहीं करने का विकल्प चुन रही हैं।
सामान्य तौर पर वर्कप्लेस पुरुषों को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं। परफॉर्मेंस के पैमाने भी पुरुष ही तय करते हैं। जो मसला महिलाएं फोन कॉल पर सुलझा सकती हैं, उसी काम के लिए पुरुष आमने-सामने बैठकर बात करना पसंद करते हैं। बहरहाल ज्यादा महिलाओं के प्रोफेशनल लाइफ अपनाने से वर्कप्लेस का मिजाज बदला है, लेकिन घर पर छोटे बच्चे की देखभाल के मामले में यंग मदर के लिहाज से संतोषजनक समाधान नहीं ढूंढा जा सका है। ऐसे में घर से ही काम करने के सिवा दूसरा कोई संतोषजनक रास्ता नजर नहीं आता।
कंपनियां गाड़ियों को दिनभर पार्क करने की सुविधा देती हैं, लेकिन छोटे बच्चों की देखभाल का इंतजाम ऑफिस परिसर में करना उनकी प्राथमिकता में नहीं है। ऐसे में कई महिलाएं काम छोड़ने या लंबा ब्रेक लेने का रास्ता चुनती हैं। इसका पर्सनल फाइनेंस पर क्या असर पड़ता है?
परिवार को एक झटके में सिंगल इनकम पर निर्भर होना पड़ जाता है। पहले से प्लानिंग न हो तो हाउसहोल्ड इनकम में कमी से तनाव बढ़ सकता है। इस बदलाव से निपटने में समस्या इस वजह से आती है कि लोग जरूरी खर्च और आनंद के लिए किए जाने वाले खर्च में अंतर नहीं कर पाते। सवाल करें कि क्या दो कारों की जरूरत है? जिम और क्लब मेंबरशिप को रिन्यू करना जरूरी है जबकि इनका उपयोग काफी कम किया जा रहा हो? क्या मनोरंजन के लिए बाहर जाने का खर्च ज्यादा नहीं है? छोटे-छोटे खर्च जुड़कर बड़े हो जाते हैं। ऐसे में यह तय करना अहम है कि क्या जरूरी है। उन्हीं मदों को इसमें शामिल किया जाए, जिन्हें सिंगल इनकम से पूरा किया जा सकता हो।
बच्चे के जन्म के साथ नए खर्च जुड़ते हैं। यंग पैरेंट्स यह देखकर हैरान रह जाते हैं कि शिशु रोग विशेषज्ञ के पास प्राय: जाने का खर्च इंश्योरेंस पॉलिसी में कवर नहीं होता। कुछ यंग पैरेंट्स को दुर्भाग्य से कुछ गंभीर चिकित्सकीय स्थितियों का सामना करना पड़ता है। नवजात के लिए आने वाली बीमा पॉलिसी में हो सकता है कि ये सभी स्थितियां कवर नहीं होती हों। इसके अलावा घर में बच्चे की देखभाल पर भी काफी खर्च होता है।
यंग कपल को बच्चे के जन्म से पहले इन बातों के लिए तैयार रहना चाहिए। कामकाजी महिला को अपनी इनकम से ऐसा कॉरपस बना लेना चाहिए, जिसकी मदद वह कामकाज से ब्रेक के दौरान ले सकें। हो सकता है कि वह करियर दोबारा शुरू करना चाहें। इसके लिए भी उन्हें तैयारी रखनी चाहिए। इसके अलावा पुरुष को यह ध्यान रखना चाहिए कि उनकी इनकम इस लेवल पर पहुंच चुकी हो कि केवल उनकी कमाई पर मामला आ जाने से परिवार को दिक्कत न हो।
यंग पैरेंट्स की इन्वेस्टमेंट और इंश्योरेंस की जरूरतें भी बढ़ जाती हैं। पर्याप्त इंश्योरेंस कवर होना जरूरी है। बच्चे की प्लानिंग करने से पहले टर्म इंश्योरेंस जरूर लेना चाहिए। इसी तरह पर्याप्त मेडिकल इंश्योरेंस भी लेना चाहिए। बच्चे के जन्म के बाद परिवार लॉन्ग टर्म गोल्स के बारे में गंभीरता से सोचना शुरू करता है। तब तक अपनी आमदनी बड़े आराम से खर्च करने वाले यंग कपल्स अपने बच्चे के भविष्य के बारे में सोचने लगते हैं। बच्चे के जन्म से पहले ही अगर नियमित बचत करने की आदत पड़ गई हो तो वह काफी उपयोगी साबित होती है। अपनी इनकम का 20 प्रतिशत हिस्से की बचत करती आ रही फैमिली को प्राय: परेशानी नहीं होती है।
कई लोग दलील देते हैं कि वर्तमान अच्छे से गुजारना चाहिए और फाइनेंशियल प्लानिंग में मगजमारी नहीं करनी चाहिए। हालांकि बच्चे के जन्म के साथ कई बार करियर को झटका लग सकता है, प्राथमिकताएं बदल जाती हैं और आमदनी-खर्च का गणित हिल जाता है, लिहाजा यह मामला पहले से योजना बनाने की अहमियत बताने वाला क्लासिक उदाहरण है।
मोबाइल ऐप डाउनलोड करें और रहें हर खबर से अपडेट।