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नामुमकिन-सा है नए नियम से पेंशन मिल पाना

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सुधा श्रीमाली, नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने हाल में प्राइवेट सेक्टर के कर्मचारियों की पेंशन में भारी वृद्धि का रास्ता साफ किया तो कर्मचारियों में यह जानने की उत्सुकता बढ़ गई है कि वे किस तरह यह गोल्डन पेंशन पा सकते हैं। कुछ जानकारों का कहना है कि पहली नजर में इतनी पेंशन दे पाना कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) के लिए असंभव है। वह कर्मचारी को उसके योगदान से कई गुना ज्यादा पेंशन नहीं दे पाएगा। दूसरी तरफ कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर सही तरह से कैलकुलेशन की जाए और सरकार का सहयोग हो तो कोर्ट का आदेश अमल में लाना असंभव भी नहीं है।

गौरतलब है कि केरल हाईकोर्ट ने ईपीएफओ को ऑर्डर दिया था कि वह रिटायर हुए कर्मचारी को उनकी आखिरी सैलरी (बेसिक+डीए) के हिसाब से पेंशन दे। ईपीएफओ ने केरल हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप करने से मना कर दिया। ऐसे में ईपीएफओ से ज्यादा पेंशन को लेकर अब कर्मचारियों को काफी उम्मीद है, लेकिन सवाल है कि क्या वह इतनी पेंशन दे सकता है?

कैसे मिल सकेगी फुल पेंशन
टैक्स एक्सपर्ट बलवंत जैन के अनुसार, फुल पेंशन चुनना एम्प्लॉयी का अधिकार है। अगर वह फुल पेंशन का ऑप्शन चुनता है तो पेंशन कर्मचारी द्वारा सेवा के वर्ष और रिटायरमेंट के वक्त जो वह सैलरी उठा रहा था, उसके आधार पर तय होगी। यानी मंथली पेंशन = आपकी नौकरी में सेवा के वर्षां को अगर आपकी अंतिम सैलरी से गुणा करके 70 से भाग दिया जाए तो आपकी मंथली पेंशन की गणना हो जाएगी।

कोर्ट के ऑर्डर के अनुसार, अगर किसी की सैलरी (बेसिक + डीए) साल 1999-2000 में 10,000 रुपये प्रति माह थी और हर साल उसमें 10 पर्सेंट की बढ़ोतरी हुई तो उसकी सैलरी आज 61,159 रुपये होगी। इस उदाहरण में आज रिटायर होने वाले व्यक्ति को 61,159 रुपये के आधार पर पेंशन मिलेगी, लेकिन इसके लिए ईपीएफओ इनकार कर रहा है।

वैसे, यहां उदाहरण में दिए गए कर्मचारी को ज्यादा पेंशन मिल सकती है, बशर्ते वह ईपीएस में अपनी तरफ से पैसा जमा करे ताकि पिछले वर्षों में ईपीएस में जो कमी रही, वह पूरी हो सके। इसके लिए उसे एक बड़ी रकम अपने ईपीएफ कॉर्पस से ईपीएस में डायवर्ट करना होगा। यहां के उदाहरण में कर्मचारी को पिछले 20 वर्षों के लिए 4 लाख रुपये का अतिरिक्त योगदान ईपीएस में करना होगा। चूंकि इसमें ब्याज भी एक हिस्सा है, इसलिए असल में उसे कुल 8 लाख रुपये के करीब देना होगा। ऐसी स्थिति में उसे 17,474 रुपये मंथली पेंशन मिल सकती है, जबकि पुराने नियमों के तहत उसे 4,285 रुपये ही पेंशन मिलती है।

कहां है समस्या
फाइनैंशल कोच कार्तिक झवेरी के अनुसार, इतनी पेंशन देना असंभव-सी बात है। दरअसल, पेंशन फंड में योगदान ही कम होगा तो आपको ईपीएफओ पेंशन कहां से देगा? अभी आपके नियोक्ता द्वारा पीएफ योगदान में जो 12 पर्सेंट दिया जाता है, उसका 8.33 पर्सेंट (यहां अधिकतम 15,000 की सालाना सीमा है) का योगदान ईपीएस के पेंशन फंड में जाता है। बची हुई रकम आपके पीएफ में जमा होती है। अगर सीमा हटा भी ली जाए तो भी वह योगदान इतनी ज्यादा पेंशन देने में असमर्थ होगा। टैक्स एक्सपर्ट मानते हैं कि हालिया फैसले को लागू करना कैलकुलेशन के हिसाब से मुश्किल है। ऐसे में ईपीएफओ द्वारा असमर्थता जताने के बाद इस फैसले की समीक्षा करनी पड़ सकती है।

समझें आसान गणित
अगर आज किसी की सैलरी 20,000 रुपये महीना है तो बिना कैप के उसका ईपीएस में योगदान नियोक्ता के 12 पर्सेंट का 8.33 पर्सेंट होगा। हर साल उसकी सैलरी में 10 पर्सेंट का इजाफा होता है तो उसका ईपीएस योगदान 25 साल के बाद 20 लाख रुपये बनेगा। 25 साल के बाद उसकी सैलरी (बेसिक+डीए) दो लाख रुपये होती है तो पेंशन की गणना (मंथली पेंशन = नौकरी के कुल साल X आपकी अंतिम सैलरी/ 70) के हिसाब से उसे 70,000 रुपये तक की पेंशन मिलनी चाहिए। मतलब कोर्ट के अनुसार, हर साल 8 लाख 40 हजार रुपये पेंशन मिलनी चाहिए, जबकि उस कर्मचारी का योगदान ईपीएस में कुल 20 लाख रुपये ही है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि ईपीएफओ इतनी पेंशन देगा कहां से? ईपीएफओ कर्मचारी के कॉन्ट्रिब्यूशन के हिसाब से लगभग 5,000 रुपये मासिक पेंशन ही दे सकता है।

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