Quantcast
Channel: Mutual Funds in Hindi - म्यूचुअल फंड्स निवेश, पर्सनल फाइनेंस, इन्वेस्टमेंट के तरीके, Personal Finance News in Hindi | Navbharat Times
Viewing all articles
Browse latest Browse all 1906

निवेश पर कम रिस्क लेना है तो डेट फंड बेहतर विकल्प

$
0
0

उमा शशिकांत, नई दिल्ली
इक्विटी मार्केट को भले ही ज्यादा तवज्जो मिलती हो, लेकिन इंस्टीट्यूशनल प्लेयर्स के बीच बड़े ऐक्शन तो डेट मार्केट में होते हैं। पहले इस सेगमेंट में टैक्स सेविंग बॉन्ड के अलावा किसी और चीज में रिटेल इन्वेस्टर्स की दिलचस्पी या सीधी भागीदारी नहीं होती थी। डेट फंड्स ने इसका हिसाब बदल दिया, लेकिन लोगों को अब भी इसके बारे में बहुत कम जानकारी है।

डेट फंड के जरिए होने वाला निवेश बॉन्ड या डेट इंस्ट्रूमेंट्स के पोर्टफोलियो में जाता है। उधारी दो तरह की होती है: एक में उधार लेनेवाला लेंडर से कॉन्टैक्ट करता है और लोन लेता है। दूसरे में बॉरोअर बॉन्ड या इंस्ट्रूमेंट जारी करता है जिसमें लेंडर इन्वेस्ट करते हैं। डेट फंड का पैसा सिर्फ बॉन्ड/इंस्ट्रूमेंट में लगता है। डेट फंड को लोन देने की इजाजत नहीं है और लोन देने से ज्यादा पारदर्शी तरीका सिक्यॉरिटी खरीदना होता है।

पर्सनल फाइनैंस के सारे आर्टिकल्स यहां पढ़ें

डेट फंड को हर दिन कॉस्ट हटाकर पोर्टफोलियो का वैल्यू डिक्लेयर करना होता है। यह वैल्यू नेट ऐसेट वैल्यू यानी एनएवी कहलाता है। नियम के मुताबिक, फंड की होल्डिंग करंट मार्केट वैल्यू के हिसाब से तय होती है। इसे सुनिश्चित करने के लिए जटिल सिस्टम, प्रोसेस और रूल्स होते हैं।

डेट फंड्स का वर्गीकरण पोर्टफोलियो होल्डिंग के हिसाब से होता है। लिक्विड फंड में आनेवाला निवेशकों का पैसा बहुत ही शॉर्ट टर्म इंस्ट्रूमेंट्स में लगता है। गिल्ट फंड सरकारी इंस्ट्रूमेंट्स में इन्वेस्ट करते हैं जबकि कॉर्पोरेट बॉन्ड फंड कंपनियों के डेट में पैसा लगाते हैं।

बैंक डिपॉजिट में इन्वेस्टर्स बैंक को एक तरह से लोन देते हैं। बैंक इसका इस्तेमाल फिक्स्ड पीरियड के लिए करता है और उस ब्याज देता है। बैंक क्या करता है, किसे लोन देता है, इन्वेस्टमेंट का परफॉर्मेंस कैसा होता है, इन सबसे उसके इन्वेस्टर्स पर सीधा असर नहीं होता। जब तक कोई डिफॉल्ट नहीं होता, इन्वेस्टर्स बेफिक्र रहते हैं।

अगर कोई डेट फंड आधा पर्सेंट चार्ज वसूल करता है और वह रकम उसी मार्केट में लगा देता है क्योंकि बैंक डिपॉजिटर को पेमेंट करने से पहले सालाना 3 पर्सेंट का नेट इंट्रेस्ट मार्जिन कमाता है तो डेट फंड में पैसा लगाना बेहतर विकल्प होगा।

जरा हजारों करोड़ की उस रकम के बारे में सोचिए जो कॉर्पोरेट और इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स लिक्विड फंड्स में लगाते हैं। उन्हें अपने निवेश के हर रुपये पर रोज ब्याज मिलता है। रिटेल इन्वेस्टर्स मनी मार्केट को सीधे एक्सेस नहीं कर सकते इसलिए वे अपना पैसा बैंक में पड़ा रहने देते हैं।

डेट फंड में रोज ब्याज चढ़ता है और t+1 का रिडेम्पशन पीरियड होता है। इन्वेस्टर्स बैंक जैसी इंटरमीडियरी से कम रिटर्न कमाने के बजाय डेट फंड्स में निवेश के लिए मार्केट को एक्सेस कर सकते हैं। लेकिन इसमें एक पेच है: डेट फंड्स का रिस्क। बहुत से लोग जटिलताओं के चलते इसे समझने की कोशिश नहीं करते। हम आसान शब्दों में बता रहे हैं।

पैसा बॉन्ड में लगाकर या डिपॉजिट डालकर मच्योरिटी तक ब्याज कमाया जा सकता है। जब तक डिफॉल्ट नहीं होता, ब्याज वादे के मुताबिक मिलता रहता है। मान लेते हैं कि तीन साल के डिपॉजिट या बॉन्ड पर 7% इंट्रेस्ट चल रहा है। इन्वेस्टर को मच्योरिटी पर प्रिंसिपल रीपेमेंट तक हर 100 पर 7 रुपये का कैश फ्लो हासिल होगा।

7% क्यों? बॉन्ड या डिपॉजिट के समय तीन साल की उधारी पर इतने का मार्केट रेट था। यह सबको पता है कि समय-समय पर इंट्रेस्ट रेट चेंज होता रहता है और भविष्य में अलग रेट होगा, लेकिन बॉन्ड पर ब्याज पहले जितने तय रेट पर ही मिलेगा।

मान लेते हैं कि छह महीने बाद ब्याज दरें बढ़ती हैं। डिपॉजिट या बॉन्ड ढार्इ साल का रह गया है। मान लेते हैं कि इतने के लिए 8% देना होता है। नए बॉन्ड इसी रेट पर आएंगे, लेकिन पुराने पर 7% का ही इंट्रेस्ट मिलेगा। तो फिर कोई 8% वाला बॉन्ड नहीं लेगा? ऐसे में 7% वाले बॉन्ड का बाजार भाव घटेगा। यह डेट फंड का रिस्क होता है।

जब-जब रेट चढ़ता है, तब-तब पुराने बॉन्ड की वैल्यू घटती है और डेट फंड का एनएवी भी कम हो जाता है। डेट फंड इन्वेस्टर्स को बॉन्ड से मिलनेवाली इंट्रेस्ट इनकम का लाभ मिलता है। साथ ही बॉन्ड की वैल्यू में चेंज होने से नफा और नुकसान दोनों होता है।

लेखिका सेंटर फॉर इन्वेस्टमेंट एजुकेशन ऐंड लर्निंग की चेयरपर्सन हैं।

मोबाइल ऐप डाउनलोड करें और रहें हर खबर से अपडेट।


Viewing all articles
Browse latest Browse all 1906

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>