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कैसे और कहां से खरीदें शुद्ध सोना, जानें सबकुछ

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नई दिल्ली
धनतेरस पर सोना खरीदना शुभ माना जाता है। ऐसे में ज्यादातर लोगों की चाहत इस मौके पर थोड़ा-बहुत सोना खरीदने की जरूर होती है, लेकिन बाजार की गहमागहमी और ऑफरों के ढेर के बीच कई बार कस्टमर धोखा खा जाता है। सोना खरीदना हो तो जागना यानी चौकन्ना रहना जरूरी है। चूंकि, सोना दुनिया की सबसे कीमती धातुओं में सबसे लोकप्रिय है। यह ट्रैडिशनल होने के साथ फैशनेबल भी है। यह किसी का शौक तो किसी के लिए इन्वेस्टमेंट का जरिया है। ऐसे में सोने के सिक्के या जूलरी खरीदते वक्त कुछ बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है, ताकि जूलर्स आपको चूना न लगा सकें...

जूलरी खरीदते हुए बरतें ये सावधानियां
1. शुद्धता का ख्याल रखें
गोल्ड जूलरी या सिक्के खरीदते वक्त सबसे पहले उसकी शुद्धता का पता लगाना चाहिए। 24 कैरट गोल्ड सबसे शुद्ध होता है, लेकिन इससे जूलरी नहीं बनाई जा सकती। गोल्ड जूलरी 22 या 18 कैरट के सोने से बनाई जाती है, यानी 22 कैरट गोल्ड के साथ 2 कैरट कोई और मेटल मिक्स किया जाता है। जूलरी खरीदने से पहले हमेशा जूलर से सोने की शुद्धता जान लें।

2. ट्रेडमार्क की जांच करें
गोल्ड जूलरी में हमेशा ट्रेडमार्क होता है। जूलरी खरीदने से पहले ट्रेडमार्क की पहचान कर लें। इससे आपको मैन्युफैक्चरर की पहचान का पता चल सकता है।

3. जेम स्टोन की शुद्धता भी जांचें
अगर आप डायमंड, रूबी या किसी और जेम स्टोन (कीमती पत्थर) वाले सोने के गहने खरीद रहे हैं, तो उनकी शुद्धता भी जरूर जांचे। जब आप इन स्टोन के लिए भी पूरे पैसे चुकाते हैं, तो गोल्ड के साथ जेम स्टोन की क्वॉलिटी का भी ध्यान रखना चाहिए।

4. मिक्सिंग के बारे में जानना भी जरूरी
अगर आप वाइट गोल्ड की जूलरी ले रहे हैं तो निकेल या प्लैटिनम मिक्स के बजाय पैलेडियम मिक्स जूलरी लेना बेहतर होगा। निकेल या प्लैटिनम मिक्स वाइट गोल्ड से स्किन एलर्जी होने का खतरा रहता है।

5. प्योरिटी सर्टिफिकेट लेना न भूलें
गोल्ड जूलरी खरीदते वक्त आप ऑथेंटिसिटी/प्योरिटी सर्टिफिकेट लेना न भूलें। सर्टिफिकेट में गोल्ड की कैरट क्वॉलिटी भी जरूर चेक कर लें। इसके साथ ही गोल्ड जूलरी में लगे जेम स्टोन के लिए भी एक अलग सर्टिफिकेट लेना जरूरी है।

इन गलतियों से बचें
गोल्ड खरीदने की खुशी और उत्साह में अक्सर हम कुछ छोटी-छोटी गलतियां कर देते हैं और बाद में पछताते रहते हैं। तो आइए पहचानें इन गलतियों को ताकि सही समय पर इनसे बचा जा सके :

1. सोने के सिक्के गलत वक्त पर खरीदना:सिक्के खरीदने के पीछे आपका मकसद सीधे तौर पर इन्वेस्टमेंट का होता है, इसलिए सिक्कों की खरीद का फैसला करते वक्त जोश के बजाय रिटर्न की संभावनाओं पर ध्यान रखना चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि सोने की कीमत के टर्म साइकल के निचले हिस्से में आने का इंतजार किया जाए।

2. गोल्ड की खरीद पर बहुत ज्यादा खर्चःगोल्ड खरीदते हुए यह याद रखना बहुत जरूरी है कि यह कोई डिविडेंड या लगातार कैश देने वाला एसेट नहीं है, यानी इस पर इन्वेस्ट किए गए पैसों से कोई रेग्युलर इनकम नहीं होगी। ऐसे में कुल इन्वेस्टमेंट का सिर्फ 5 फीसदी ही गोल्ड पर खर्च करना सही है।

3. गलत जगह से खरीदारी करना:किसी भी नए इन्वेस्टर के लिए यह सबसे सामान्य गलती है। अगर आपको मालूम नहीं है कि कॉमन बुलियन सिक्के कैसे दिखते हैं, तो इस बात की पूरी आशंका रहेगी कि आप बहुत ज्यादा खर्च करके भी नकली सिक्का खरीद लेंगे। इसलिए सिक्के हमेशा विश्वसनीय दुकानों से और जूलरी हमेशा हॉलमार्क निशान वाली ही खरीदें। छोटे जूलरों के पास हॉलमार्क जूलरी नहीं होती। ऐसे में वहां धोखा होने का डर ज्यादा होगा।

4. जरूरत पर फोकस न होना:अगर आप इन्वेस्टमेंट के लिहाज से गोल्ड खरीदने की सोच रहे हैं, तो अपनी जरूरत पर फोकस करें। पहले मार्केट को समझें और अपने इन्वेस्टमेंट प्लान पर टिके रहें। कई बार लोग दोस्तों और रिश्तेदारों को इम्प्रेस करने के लिए भी सोने की खरीदारी कर लेते हैं, जिससे जेब पर जबरन और फालतू बोझ पड़ता है।

5. गोल्ड के स्पॉट प्राइस की जानकारी न होना:कई बार कंस्यूमर गोल्ड का मार्केट प्राइस जाने बगैर खरीदारी कर लेते हैं। ऐसा कभी न करें। इससे आपके पैसे भी ज्यादा खर्च होने की आशंका होगी और आपको सही वैल्यू भी नहीं मिल पाएगी।

6. सिल्वर को नकारना:जब सोने की कीमत बहुत ज्यादा हो, तो चांदी के सिक्के खरीदना ज्यादा समझदारी है। चांदी की कीमतें भी लगातार बढ़ रही हैं और खरीद के कुछ वक्त बाद चांदी अक्सर अच्छा रिटर्न देती है।

गोल्ड में इन्वेस्टमेंट
गोल्ड में इन्वेस्टमेंट के कई विकल्प हैं। लेकिन किसी भी विकल्प को चुनने से पहले आपको अपनी जरूरतों और बजट पर गौर करना चाहिए...

1. फिजिकल गोल्ड
यह इन्वेस्टमेंट दो तरह से हो सकता है - पहला, जूलरी खरीद कर और दूसरा सिक्के या बार खरीद कर। आप क्या खरीदना चाहते हैं, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि आपके इन्वेस्टमेंट का मकसद और अवधि क्या है? जूलर्स से सोने की जूलरी खरीदना गोल्ड इन्वेस्टमेंट का सबसे ट्रडिशनल और आसान तरीका है। लेकिन ऐसा आपको सिर्फ तभी करना चाहिए, जब आप उसे इस्तेमाल करना चाहते हों और बहुत लंबे समय के लिए अपने पास रखना चाहते हों। यह भी ध्यान रखें कि जूलरी खरीदने पर भारी-भरकम मेकिंग चार्ज लगता है। ऐसे में अगर आप 100 फीसदी इन्वेस्टमेंट के लिहाज से जूलरी खरीदते हैं, तो यह आपके रिटर्न को प्रभावित कर सकता है।

अगर आप बार या सिक्के खरीदना चाहते हैं तो जूलर्स ऑप्शन हो सकते हैं। इसकी दो वजहें हैं - पहला, बैंकों के मुकाबले जूलर्स के चार्ज कम होते हैं। और दूसरा यह कि अभी तक बैंक सिर्फ गोल्ड बेचते हैं, उसे कंस्यूमर से बायबैक नहीं करते। लेकिन शुद्धता और विश्वसनीयता के लिहाज से बैंक, सरकारी कंपनी एमएमटीसी या बड़े जूलर्स से इनकी खरीद करना ही बेहतर है।

2. गोल्ड ईटीएफ
ये म्यूचुअल फंड स्कीम हैं, जो सिर्फ गोल्ड में ही इन्वेस्ट करते हैं। ऐसे में लंबे वक्त तक गोल्ड होल्ड करने और लिक्विडिटी के लिहाज से यह बेहतर ऑप्शन है। इसमें आपके पास गोल्ड फिजिकल के बजाय इलेक्ट्रॉनिक फॉर्म में होता है। आपके पास इन्वेस्टमेंट के पेपर होते हैं, जिनसे आप चाहें तो इन्वेस्टमेंट की वैल्यू के बराबर गोल्ड बेचकर मौजूदा भाव पर मुनाफा कमा सकते हैं। सामान्य तौर पर गोल्ड ईटीएफ की एक यूनिट एक ग्राम गोल्ड के बराबर होती है और इस स्कीम के तहत आपको कम-से-कम 1 यूनिट गोल्ड ईटीएफ खरीदना होता है। हाल में ऐसी फंड ऑफ फंड्स स्कीम भी लॉन्च हुई हैं, जो गोल्ड ईटीएफ में इनवेस्ट करती हैं। लेकिन ये ईटीएफ से कुछ मायनों में अलग हैं। इनमें इन्वेस्टमेंट का फायदा यह है कि इनके लिए डीमैट अकाउंट की जरूरत नहीं होती। साथ ही इसमें एसआईपी की भी सुविधा है, जो ईटीएफ में मुमकिन नहीं है।

जरूर पढ़ें: फिजिकल गोल्ड, गोल्ड ETFs या सॉवरन गोल्ड बॉन्ड में निवेश करना चाहिए?

3. इक्विटी बेस्ड गोल्ड फंड्स
ये भी म्यूचुअल फंड स्कीम हैं, जो सीधे गोल्ड में इनवेस्ट करने के बजाय उन कंपनियों के शेयरों में इनवेस्ट करते हैं, जो गोल्ड बिजनेस, जैसे माइनिंग, एक्सट्रैक्शन, प्रोसेसिंग और गोल्ड मेकिंग से जुड़ी हुई हैं।

4. गोल्ड बॉन्ड्स

सॉवरन गोल्ड बॉन्ड्स स्टॉक एक्सचेंजों में लिस्टेड हैं, लेकिन इन्हें बहुत जल्दी भंजाया नहीं जा सकता। सॉवरन गोल्ड बॉन्ड्स के कई फायदे हैं। पहला- गोल्ड ईटीएफ या गोल्ड फंड्स की तरह इसमें कोई एक्सपेंस रेशियो नहीं है। दूसरा- सभी सॉवरन गोल्ड बॉन्ड्स में 2.5 से 2.75 प्रतिशत तक का ब्याज मिलता है। इस ब्याज पर टैक्स भी लगता है। चूंकि ब्याज फेस वैल्यू पर दिया जाता है और चूंकि इसकी मार्केट प्राइस कम है, इसलिए वास्तविक रनिंग यील्ड ज्यादा (2.78 से 3.18 प्रतिशत) होता है। इसका मतलब है कि गोल्ड फंड्स के मुकाबले इसका शुद्ध अतिरिक्त आय 3.78 और 4.18 प्रतिशत प्रति वर्ष हो सकता है, अगर गोल्ड फंड्स पर 1% का ऐनुअल एक्सपेंस रेशियो मान लें तो।

कौन-सा इन्वेस्टमेंट बेहतर
अगर आप खालिस इन्वेस्टमेंट के लिहाज से गोल्ड लेना चाहते हैं तो बेहतर है कि इलेक्ट्रॉनिक रूप में लें। फिजिकल होल्डिंग के मुकाबले इसके कई फायदे हैं...

1. कम कीमत: गोल्ड ईटीएफ या ई-गोल्ड खरीदने में आपको सिर्फ ब्रोकरेज चार्ज देना पड़ता है। आमतौर पर यह कुल रकम का सिर्फ 0.5 फीसदी होता है। इसके अलावा ईटीएफ में हर साल फंड मैनेजमेंट चार्ज (0.5-1 फीसदी) चुकाना पड़ता है। दूसरी ओर फिजिकल होल्डिंग में 10 से 20 फीसदी या इससे भी ज्यादा मेकिंग चार्ज चुकाना पड़ता है। साथ ही फिजिकल गोल्ड घर में रखने पर इंश्योरेंस जीरो रहता है।

2. ट्रांसपैरंट रेट: ईटीएफ और ई-गोल्ड के रेट इंटरनैशनल कीमतों से जुड़े होते हैं, जबकि फिजिकल गोल्ड की कीमतों में स्थानीय वजहों से भी फर्क आ जाता है। मुमकिन है कि आप लोकल जूलर या बैंक से गोल्ड खरीदते हैं तो वह इंटरनैशनल प्राइस से ज्यादा कीमत वसूले। साथ ही, जब आप गोल्ड बेचने जाएंगे तो उसका कट ज्यादा हो सकता है।

3. शुद्धता: गोल्ड ईटीएफ और ई-गोल्ड में शुद्धता सबसे ज्यादा होती है और ये सर्टिफाइड भी होते हैं। लेकिन जूलरी के मामले में आपको जूलर्स पर भरोसा करना पड़ता है।

4. सहूलियत: गोल्ड-ईटीएफ और ई-गोल्ड में आप अपने ब्रोकर को सिर्फ एक कॉल या ऑनलाइन क्लिक करके इन्वेस्टमेंट कर सकते हैं, जबकि जूलरी में आपको जूलर्स के पास जाना होगा।

5. कैपिटल गेन टैक्स: फिजिकल गोल्ड और ई-गोल्ड में 3 साल से ज्यादा होल्डिंग पर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स लगता है। वहीं गोल्ड ईटीएफ के मामले में यह लिमिट 1 साल की है। फिजिकल गोल्ड और ई-गोल्ड पर वेल्थ टैक्स लगता है, जबकि गोल्ड ईटीएफ को इससे छूट है। ई-गोल्ड भी 3 साल के बाद ही लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स के दायरे में आता है।

पढ़ें: कहां-कहां है धनतेरस और दीवाली पर ऑफर

कैसे पहचानें हॉलमार्क
जो जूलरी हॉलमार्क होगी, उस पर पांच तरह के निशान जरूर होंगे। ये हैं-
1. बीआईएस का लोगो
2. सोने की शुद्धता बताने वाला नंबर। सोने की शुद्धता अंकों में लिखी होती है। सभी कैरट की हॉलमार्किंग अलग होती है। वैसे, 22 कैरट की जूलरी सबसे अच्छी मानी जाती है। इसमें 92 फीसदी सोना होता है। इसे इस तरह देखा जा सकता है।


3. जांच-पड़ताल व हॉलमार्किंग करने वाली एजेंसी का लोगो
4. जूलर का लोगो
5. हॉलमार्किंग किए जाने का साल। हॉलमार्किंग होने का साल अंग्रेजी अल्फाबेट के आधार पर होता है। हॉलमार्किंग की शुरुआत 2000 में हुई इसलिए 2000 में हॉलमार्क की गई जूलरी पर A लिखा गया। इसी आधार पर इस साल यानी 2012 में जिस जूलरी की हॉलमार्किंग हुई होगी, उस पर M लिखा होगा।

हॉलमार्क जूलरी लेने का फायदा
हॉलमार्क जूलरी भले ही पहली नजर में महंगी लगे, लेकिन इसे लेना हमेशा फायदे का सौदा होता है। हॉलमार्क जूलरी के कैरेट आप कहीं भी कैरेट मीटर से चेक करा सकते हैं, जबकि बिना हॉलमार्क जूलरी की शुद्धता का पता उस जूलरी को गला कर ही लगाया जा सकता है।

कहां से खरीदें हॉलमार्क जूलरी
देश के ज्यादातर जूलर्स के पास हॉलमार्क जूलरी उपलब्ध है, लेकिन कम मुनाफा होने की वजह से वे इसे कस्टमर को नहीं बेचना चाहते। हॉलमार्क जूलरी को आम जूलर्स के अलावा भारत सरकार की एजेंसी एमएमटीसी से भी खरीदा जा सकता है। ये सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक खुलते हैं। रविवार को बंद रहते हैं। पता है:

एमएमटीसी, एफ 8-11, फ्लैटेड फैक्ट्री कॉम्प्लेक्स, रानी झांसी रोड, झंडेवालान, नई दिल्ली, फोन : 011-2362 3950
एमएमटीसी, कोर वन, स्कोप कॉम्प्लेक्स, 7 इंस्टिट्यूशनल एरिया, लोदी रोड, नई दिल्ली, फोन : 011-2436 2200

बिल लेना न भूलें
हॉलमार्क जूलरी का भी बिल जरूर लें। बिल में कीमत, वजन के अलावा गोल्ड की शुद्धता भी लिखी होनी चाहिए। जूलर के साथ कोई विवाद होने की स्थिति में यह बिल काम आता है।

सोने की टेस्टिंग
जूलरी पर हॉलमार्क देखने के बाद भी सोने की जांच करना सही रहता है। इससे सोने की शुद्धता चेक हो जाती है और खर्च भी ज्यादा नहीं आता।

जांच के 3 तरीके हैं:
1. फर्नेस से जांच: यह जांच किसी जूलर के यहां या सोने की जांच के तमाम केंद्रों पर कराई जा सकती है। हॉलमार्क केंद्रों में भी इसकी व्यवस्था है।

2. एक्सआरएफ मशीन से: एक्सआरएफ यानी एक्स-रे फ्लोरेसेंस मशीन एमएमटीसी केंद्रों, सरकार से मान्यता प्राप्त केंद्रों और हॉलमार्क केंद्रों पर होती है। मशीन के अंदर सोने या उससे बने किसी प्रॉडक्ट को रखकर उसे थोड़ा गर्म करके यह पता लगाया जाता है कि वह कितना शुद्ध है। इसे फायर एसे मेथड भी कहा जाता है। विदेशों में सोने की परख इसी तरीके से की जाती है। खास बात यह है कि यह काफी सस्ता तरीका है। इसमें एक प्रॉडक्ट की जांच के 18 से 50 रुपये ही लगते हैं। साथ में शुद्धता की रसीद भी मिलती है। एमएमटीसी के डायरेक्टर (मार्केटिंग) वेदप्रकाश का कहना है, 'एमएमटीसी केंद्रों में सोने की शुद्धता जांचने के खास इंतजाम किए गए हैं। जो ग्राहक शादी-ब्याह के लिए सोना या जेवर खरीदते हैं, उनके लिए यह जांच बहुत उपयोगी है।' जांच के लिए यहां संपर्क कर सकते हैं : एमएमटीसी हॉलमार्किंग सेंटर, एफ 8-11, फ्लैटेड फैक्ट्रीज कॉम्प्लेक्स, झंडेवालान, नई दिल्ली- 110055।

3. स्क्रैच मेथडः
यह सोने की जांच का सबसे आसान तरीका है। इसमें जूलर एक खास तरह के पत्थर पर सोने को रगड़ता है और उस पर उभरे रंग के आधार पर सोने की शुद्धता का फैसला करता है। इस पत्थर को कसौटी कहते हैं।

हॉलमार्किंग सेंटर
यहां हम दिल्ली के कुछ सेंटरों के नाम व पते दे रहे हैं। पूरी लिस्ट http://www.bis.org.in/cert/hallmarkass.htm पर देखी जा सकती है।
शिवम एसेइंग एंड हॉलमार्किंग सेंटर, बैंक स्ट्रीट, करोल बाग, नई दिल्ली।
जालान हॉलमार्किंग सेंटर, लाजपतनगर सेंट्रल मार्केट, नई दिल्ली।
स्तुति हॉलमार्किंग सेंटर, नेताजी सुभाष पैलेस, पीतमपुरा, नई दिल्ली।
स्तुति लैब, कूचामहाजनी, चांदनी चौक, दिल्ली।

क्या कहता है कानून : नकली सोना बेचने के मामले में आईपीसी की धारा 420 (धोखाधड़ी) के तहत मामला दर्ज किया जाता है। मामला साबित हो जाने पर अधिकतम सात साल की कैद हो सकती है।

हेल्पलाइन
आज बाजार में हॉलमार्किंग के नाम पर धोखाधड़ी भी हो रही है। नकली हॉलमार्क के अलावा आधा-अधूरा हॉलमार्क लगाकर भी जूलरी बेची जा रही है। अगर कभी गोल्ड जूलरी में हॉलमार्किंग के नाम पर आपके साथ धोखा हो या हॉलमार्क जूलरी पर शक हो, तो इसकी शिकायत बीआईएस को इस पते पर जरूर करें :
महानिदेशक, भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस), मानक भवन, 9, बहादुरशाह जफर मार्ग, नई दिल्ली-110002
फोन : 011-2323 7991/ 2323 6980/ 2323 4223, email : dg@bis.org.in

क्या है कैरट
कैरट के मायने गोल्ड और डायमंड के लिए अलग-अलग होते हैं। डायमंड के लिए कैरट का मतलब उसके वजन से होता है। एक कैरट 200 मिलीग्राम या 0.200 ग्राम के बराबर होता है। 24 कैरट गोल्ड बिल्कुल प्योर होता है। गोल्ड में कैरट से उसकी शुद्धता का पता चलता है। 100 फीसदी प्योर गोल्ड से जूलरी नहीं बनाई जा सकती, इसलिए इसमें सिल्वर, पैलेडियम, प्लैटिनम, निकेल और यहां तक कि 'फिलर मेटल' के तौर पर कॉपर भी मिलाया जाता है। गोल्ड में जब 'फिलर मेटल' के तौर पर सिल्वर, प्लैटिनम या पैलेडियम मिलाया जाता है तो उसे 'वाइट गोल्ड' कहते हैं। हालांकि जब गोल्ड में कॉपर मिलाया जाता है, तो उसकी मजबूती बढ़ जाती है और इससे गोल्ड को हल्की लालिमा भी मिलती है। अगर कोई गोल्ड 22 कैरट का है, तो इसका मतलब है, उसमें 2 कैरट 'फिलर मेटल' मिलाया गया है। इसी तरह 16 कैरट के गोल्ड में 8 कैरट कोई और मेटल मिलाया जाता है।

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