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EPF रूल्स में बदलाव: जानें आप पर क्या असर

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संकेत धानोरकर
एंप्लॉयी प्रोविडेंट फंड (EPF) से जुड़े नियमों कई बदलाव किए जा रहे हैं। इन बदलावों का आप पर क्या असर होगा? क्या इससे सुविधाओं में इजाफा होगा या सब्सक्राइबर्स के हाथ बंध जाएंगे? आइए जानते हैं...

निकासी पर नियंत्रण
कर्मचारी प्रोविडेंट फंड के तहत भविष्य के लिए धन सुरक्षित रखते हैं। रिटायरमेंट से पहले भी इसमें कई बार निकासी की जरूरत पड़ सकती है। कुछ साल पहले एंप्लॉयीज प्रोविडेंट फंड ऑर्गेनाइजेशन (EPFO) ने नियम बनाया था कि आंशिक निकासी बच्चे की शादी, उच्च शिक्षा और मकान खरीदने के लिए की जा सकती है। ईपीएफओ के नए नियम के मुताबिक, सेवा छोड़ने के एक महीने बाद ही मेंबर्स 75 फीसदी धन की निकासी कर सकते हैं और 2 महीने बाद शेष 25 फीसदी हिस्सा भी निकाल सकते हैं।

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फाइनैंशल प्लानर्स कहते हैं कि निकासी पर प्रतिबंध से सुनिश्चित होता है कि रिटायरमेंट से कोई समझौता नहीं होगा। गेटिंग यू रिच के फाउंडर रोहित शाह कहते हैं कि अहम अवसरों पर पीएफ निकासी की छूट जारी रहनी चाहिए। हालांकि, लेडर 7 फाइनैंशल सर्विसेज के फाउंडर सुरेश सदागोपन इससे सहमत नहीं हैं। वे कहते हैं, 'यदि संचय के दौर में अधिक छूट दी गई तो यह रिटायरमेंट फेज को नुकसान पहुंचाएगा।'

इक्विटी में वृद्धि
हाल के समय तक, ईपीएफ ने फिक्स्ड इनकम इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश से ही रिटर्न हासिल किया। तीन साल पहले, ईपीएफ ने स्टॉक मार्केट में एंट्री की और 5 फीसदी अंशदान को एक्सचेंज ट्रेडेड फंड्स (ईटीएफ) में लगाया। इसके बाद से इसे 15 फीसदी तक बढ़ाया जा चुका है। भविष्य में कर्मचारियों को अपने अंशदान से और अधिक हिस्सा इक्विटीज में लगाने की छूट मिल सकती है।

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फाइनैंशल प्लानर्स कहते हैं कि इक्विटी निवेश में वृद्धि से रिटायरमेंट के दौरान मेंबर्स को अधिक मदद मिलेगी। प्लानरूपी इंन्वेस्टमेंट सर्विसेज के फाउंडर अमोल जोशी कहते हैं, 'इक्विटी में निवेश की सीमा बढ़ने से सब्सक्राइबर्स को अधिक रिटर्न मिलेगा।' हालांकि, कुछ एक्सपर्ट मानते हैं कि इक्विटीज में निवेश अच्छा विचार नहीं है। सर्टिफाइड फाइनैंशल प्लानर पंकज मालडे के मुताबिक, इक्विटी रिर्टन में अस्थिरता से सालाना ईपीएफ रिटर्न में उतार-चढ़ाव आएगा।

यूनिट के रूप में पीएफ बैलेंस
पिछले साल ईपीएफओ ने इक्विटीज में निवेश से जुड़ी अकाउंटिंग पॉलिसी में बदलाव किया। इटीएफ में लगाए गए कोष जल्द ही सब्सक्राइबर्स के अकाउंट में यूनिट्स के रूप में दिए जाएंगे। इन यूनिट्स को फंड से निकलने पर भुनाया जा सकता है। इस बीच ऋण हिस्से पर कमाई ब्याज के रूप में मिलता रहेगा। सभी सब्सक्राइबर्स के ईपीएफ के तहत दो अकाउंट्स होंगे, फिक्स्ड इनकम और इक्विटी। इसके अलावा, सब्सक्राइबर्स को इक्विटी में निवेश की गई राशि की निकासी को तीन साल तक टालने का विकल्प मिलेगा।

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कई फाइनैंशल प्लानर्स के मुताबिक, यूनिटाइजेशन से पारदर्शिता में बढ़ोतरी होगी। हालांकि, अन्य का यह कहना है कि इससे जोखिम का भार सब्सक्राइबर्स पर शिफ्ट हो जाएगा। इसके अलावा, इक्विटी परफॉर्मेंस लगातार दिखने से सब्सक्राइबर्स जल्दबाजी में फैसला लेने को प्रेरित हो सकते हैं।

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ईपीएस में बदलाव
ईपीएफ के साथ चलने वाले एंप्लॉयी पेंशन स्कीम (ईपीएस) में भी कुछ बदलाव हो सकते हैं। मौजूदा समय में, प्रति माह 15 हजार रुपये कमाने वाले एंप्लॉयी रिटायरमेंट के बाद हर महीने 1 हजार रुपये मासिक पेंशन मिलता है। ईपीएस में 10 सालों तक योगदान के बाद सभी मेंबर्स पेंशन के हकदार हो जाते हैं। कर्मचारी मूल वेतन का 12 फीसदी हिस्सा ईपीएफ में देता है और इतना ही योगदान नियोक्ता को भी करना होता है, जो दो हिस्सों में बंटा होता है: मूल वेतन (अधिकतम 15 हजार रुपये) का 8.33 फीसदी हिस्सा ईपीएस में जाता है और 3.67 फीसदी ईपीएफ में।

श्रम मंत्रालय मूल वेतन की सीमा को 15 हजार रुपये से बढ़ाकर 21 हजार रुपये कर सकता है। मिनिमम मंथली पेंशन को भी बढ़ाकर 2 हजार रुपये किया जा सकता है।

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अधिक आय, अधिक योगदान
कर्मचारियों के वेतन के ढांचे में बदलाव का ईपीएफ पर अप्रत्यक्ष असर पड़ सकता है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, सरकार अलाउंसेज को कर्मचारियों के वेतन का 50 फीसदी तय करना चाहती है। यदि मूल आय में वृद्धि होती है तो अन्य सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के अलावा ईपीएफ में भी हिस्सेदारी बढ़ेगी।

ऑनलाइन सर्विस से आसानी
ईपीएफओ ने ऑनलाइन सर्विसेज देकर सब्सक्राइबर्स को आसानी से अपना काम कराने की सुविधा दी है। यूनिवर्सल अकाउंट नंबर या यूएएन जारी होने से निकासी और एक से अधिक खातों को जोड़ना अब आसान है।

अन्य बचत योजनाओं की तुलना में ईपीएफ टैक्स बेनिफिट का अडवांटेज देता है। नियोक्ता के अंशदान पर इनकम टैक्स छूट के अलावा रिटर्न भी इनकम टैक्स से मुक्त है। 8.55 फीसदी ब्याज दर अन्य सरकारी उपकरणों से अधिक है।

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