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Channel: Mutual Funds in Hindi - म्यूचुअल फंड्स निवेश, पर्सनल फाइनेंस, इन्वेस्टमेंट के तरीके, Personal Finance News in Hindi | Navbharat Times
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दूर करें म्यूचुअल फंड्स की ये बड़ी 8 दुविधाएं- सीरीज 5

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संकेत धानोरकर, नई दिल्ली
म्यूचुअल फंड्स में निवेश करने की राह में दुविधा पैदा करनेवाली बातों पर पिक्चर क्लियर करने के लिए हम 8 कड़ियों की एक सीरीज चला रहे हैं। पहली कड़ी में डायवर्सिफाइड फंड्स या सेक्टर स्कीम्स की चर्चा की थी जबकि दूसरी कड़ी में डायवर्सिफाइड होल्डिंग्स या कॉन्संट्रेटेड पोर्टफोलियो को लेकर पिक्चर क्लियर की थी। वहीं, तीसरी कड़ी में ग्रोथ ऑप्शन या डिविडेंड पेआउट एवं ऐक्टिवली मैनेज्ड फंड्स या पैसिव इंडेक्स फंड्स, ईटीएफ आदि पर चर्चा हुई जबकि चौथी कड़ी में अधिक एयूएम वाले बड़े फंड या कम एयूएम वाली छोटी स्कीम और ओपन एंडेड स्कीम या क्लोज एंडेड स्कीम में निवेश को लेकर स्थिति स्पष्ट की गई थी। आज आखिरी कड़ी में खत्म होगी डायरेक्ट प्लान या रेग्युलर प्लान और नए फंड या मौजूदा स्कीम्स की उलझन...

इस सीरीज की चौथी कड़ी यहां पढ़ें

डायरेक्ट प्लान या रेग्युलर प्लान: डायरेक्ट प्लान से बेहतर रिटर्न मिलता है, जबकि रेग्युलर फंड का चयन आसान नहीं होता...
सभी म्यूचुअल फंड स्कीम के रेग्युलर और डायरेक्ट प्लान ऑप्शन होते हैं। रेग्युलर प्लान के लिए आपको अधिक चार्ज देना पड़ता है क्योंकि म्यूचुअल फंड्स को उसमें से ब्रोकरों और डिस्ट्रीब्यूटरों को कमीशन देना पड़ता है। दूसरी तरफ, डायरेक्ट प्लान निवेशकों को सीधे बेचे जाते हैं। इसलिए इनकी लागत कम होती है। इसलिए निवेशक को इसमें कम फी देनी पड़ती है। कम फी की वजह से डायरेक्ट प्लान का रिटर्न रेग्युलर प्लान की तुलना में अधिक होता है। अगर आप लंबी अवधि के लिए निवेश करते हैं, तब कंपाउंडिंग की वजह से रिटर्न में काफी अंतर हो सकता है।

इस सीरीज की तीसरी कड़ी भी पढ़ें

हालांकि, हमेशा सस्ता ऑप्शन अच्छा नहीं होता। डायरेक्ट प्लान का मतलब यह है कि फंड चुनने का काम निवेशक का होता है। इसमें किसी फाइनैंशल अडवाइजर की सलाह नहीं मिलती। उसे खुद रिसर्च करना पड़ता है, सही फंड चुनना होता है और उसके परफॉर्मेंस पर नजर रखनी पड़ती है। इस बारे में वाइजइनवेस्ट एडवाइजर्स के सीईओ हेमंत रुस्तगी ने कहा, 'कई निवेशक खुद ऐसेट अलोकेशन के बारे में फैसला नहीं कर पाते।

पढ़ें: इस सीरीज की दूसरी कड़ी

उनके लिए किसी ऐसेट क्लास में सही फंड चुनना, उनके परफॉर्मेंस पर नजर रखना, समय आने पर सही कदम उठाना और बाजार में उतार-चढ़ाव के दौर में गोल पर नजर बनाए रखना आसान नहीं होता।' जो लोग ऐसा कर सकते हैं, उन्हें डायरेक्ट प्लान चुनना चाहिए। वहीं, सामान्य निवेशकों के लिए रेग्युलर प्लान ठीक रहता है। इसके लिए अगर वे कुछ अधिक फी चुकाते हैं तो उसके बदले उन्हें अडवाइजर से अच्छे फंड के बारे में सलाह भी मिलती है। उन्हें रेग्युलर प्लान में खुद डॉक्युमेंट्स की प्रोसेसिंग का झंझट भी नहीं उठाना पड़ता। हालांकि, सभी अडवाइजर्स निवेशक के हित में काम नहीं करते। इसलिए रेग्युलर प्लान में अडवाइजरी सर्विस की क्वॉलिटी पर आपकी सफलता निर्भर करती है।

यहां क्लिक कर पढ़ें सीरीज की पहली कड़ी

नए फंड या मौजूदा स्कीम्स: नए फंड में निवेश करने के बजाय मौजूदा स्कीम में पैसा लगाना अच्छा रहता है...
हाल के वर्षों में नए फंड ऑफर्स (एनएफओ) की संख्या कम हुई है, लेकिन अब भी धूम-धड़ाके के साथ नए फंड लॉन्च किए जा रहे हैं। डिस्ट्रीब्यूटर्स इनकी अग्रेसिव मार्केटिंग करते हैं। आपको इनके चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए। आप वैसे फंड्स का ट्रैक रिकॉर्ड देखकर निवेश के बारे में फैसला करिए, जो कई साल से हैं। इससे अलग-अलग मार्केट साइकल में आपको फंड के परफॉर्मेंस के बारे में भी पता चलता है। नया फंड आकर्षक लग सकता है और फंड हाउस उसकी अट्रैक्टिव मार्केटिंग भी करते हैं, लेकिन नए फंड का कोई ट्रैक रिकॉर्ड नहीं होता। ऐसे में निवेशक किस आधार पर उसमें पैसा लगाने का फैसला करे। यह भी याद रखिए कि अगर किसी पुराने फंड की एनएवी 500 रुपये है और नए फंड की 10 रुपये तो इसका मतलब यह नहीं है कि नया फंड सस्ता है। वह 500 रुपये की एनएवी वाले फंड से महंगा भी हो सकता है।

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