Quantcast
Channel: Mutual Funds in Hindi - म्यूचुअल फंड्स निवेश, पर्सनल फाइनेंस, इन्वेस्टमेंट के तरीके, Personal Finance News in Hindi | Navbharat Times
Viewing all articles
Browse latest Browse all 1906

दूर करें म्यूचुअल फंड्स की ये बड़ी 8 दुविधाएं- सीरीज 4

$
0
0

संकेत धानोरकर, नई दिल्ली
म्यूचुअल फंड्स में निवेश करने की राह में दुविधा पैदा करनेवाली बातों पर पिक्चर क्लियर करने के लिए हम 8 कड़ियों की एक सीरीज चला रहे हैं। पहली कड़ी में डायवर्सिफाइड फंड्स या सेक्टर स्कीम्स की चर्चा की थी जबकि दूसरी कड़ी में डायवर्सिफाइड होल्डिंग्स या कॉन्संट्रेटेड पोर्टफोलियो को लेकर पिक्चर क्लियर की थी। वहीं, तीसरी कड़ी में ग्रोथ ऑप्शन या डिविडेंड पेआउट एवं ऐक्टिवली मैनेज्ड फंड्स या पैसिव इंडेक्स फंड्स, ईटीएफ आदि पर चर्चा हुई। आज आगे की बात...

यहां पढ़ें इस सीरीज की पहली कड़ी

अधिक एयूएम वाले बड़े फंड या कम एयूएम वाली छोटी स्कीम: इन फंड्स के कॉरपस से अधिक मायने उनका ट्रैक रिकॉर्ड रखता है...
क्या आपको एक बड़े फंड में निवेश करना चाहिए, जिसका ऐसेट्स अंडर मैनेजमेंट (एयूएम) बड़ा हो या कम कॉरपस वाली एक छोटी स्कीम में? फाइनैंशल अडवाइजर्स आमतौर पर बड़े फंड्स में निवेश करने की सलाह देते हैं क्योंकि अच्छे ट्रैक रिकॉर्ड की वजह से ही उनका साइज बड़ा होता है। हो सकता है कि छोटे फंड्स का परफॉर्मेंस का लंबा रिकॉर्ड ना हो। वहीं, बड़े फंड्स छोटी स्कीम की तुलना में कम फी चार्ज करते हैं।

पढ़ें: म्यूचुअल फंड्स से जुड़ी सीरीज की तीसरी कड़ी

निवेशकों के लिए साइज का कोई मतलब नहीं होता। उनके लिए फंड का परफॉर्मेंस मायने रखता है। अगर किसी फंड ने अलग-अलग मार्केट साइकल में सुपीरियर रिस्क अजस्टेड रिटर्न दिया है तो उसमें निवेश किया जा सकता है। वहीं, अगर लॉन्ग टर्म में किसी फंड से हेल्दी रिटर्न नहीं मिला है तो उसमें पैसा नहीं लगाना चाहिए। अलग-अलग टाइम फ्रेम में कई छोटे फंड्स ने बड़ी स्कीम्स से अधिक रिटर्न दिया है। सच तो यह है कि बड़े फंड्स की तुलना में छोटे फंड्स को कई फायदे होते हैं। छोटे फंड्स शेयरों में तुलनात्मक तौर पर कम रकम लगाते हैं, इसलिए वे तेजी से पोजिशन ले सकते हैं और उतनी ही जल्दी किसी स्टॉक से निकल सकते हैं। वहीं, बड़े फंड्स को अच्छा एक्सपोजर लेने में समय लगता है।

पढ़ें: इस सीरीज की दूसरी कड़ी

ओपन एंडेड स्कीम या क्लोज एंडेड स्कीम: ओपन एंडेड स्कीम में अधिक आजादी मिलती है और यह पसंदीदा चॉइस होनी चाहिए...
अधिकतर म्यूचुअल फंड्स ओपन एंडेड होते हैं। इसका मतलब यह है कि आप इनमें कभी भी पैसा लगा सकते हैं और उनसे निकल सकते हैं। हालांकि, कुछ फंड क्लोज एंडेड भी होते हैं, जिनमें निवेशक खास समय में ही पैसा लगा सकते हैं और निकलने का समय भी तय होता है। क्लोज एंडेड फंड्स का रिटर्न निवेश की अवधि पूरी होने पर मार्केट कैसा है, इस पर निर्भर करता है। अगर मार्केट का परफॉर्मेंस उस वक्त अच्छा हो तो बढ़िया रिटर्न मिलेगा। हालांकि, अगर मार्केट की हालत उस वक्त अच्छी न हो तो रिटर्न भी कम हो सकता है।

पांचवीं और आखिरी कड़ी के लिए यहां क्लिक करें

दूसरी तरफ, ओपन एंडेड फंड्स में निवेशक पैसा लगाने और उससे निकलने का समय अपने हिसाब से चुन सकते हैं। वे इनमें निवेश बढ़ा सकते हैं या अपने हिसाब से कुछ या पूरा पैसा निकाल भी सकते हैं। क्लोज एंडेड फंड्स में एकमुश्त निवेश करना पड़ता है, इससे इनमें मार्केट टाइमिंग का रिस्क जुड़ जाता है। हालांकि, क्लोज एंडेड फंड्स में एक फायदा भी है। इसमें निवेशक की रकम खास अवधि के लिए लॉक हो जाती है। इसलिए उसके गलत समय पर पैसा निकालने की आशंका नहीं रहती।

अक्सर लोग समय से पहले पैसा निकाल लेते हैं, इससे वे मैक्सिमम रिटर्न हासिल नहीं कर पाते। क्लोज एंडेड फंड्स निवेशक को बाजार में गिरावट और तेजी दोनों ही दौर में निवेशित रहने को मजबूर करते हैं। इसके बावजूद आपका अधिकांश पैसा ओपन एंडेड फंड्स में लगा होना चाहिए। इस बारे में क्लीयरफंड्स के सीईओ कुणाल बजाज ने कहा, 'क्लोज एंडेड फंड्स में तभी निवेश करना चाहिए, जब उन्हें किसी खास मकसद के लिए बनाया गया हो और यह मकसद ओपन एंडेड फंड से हासिल न हो रहा हो।'

मोबाइल ऐप डाउनलोड करें और रहें हर खबर से अपडेट।


Viewing all articles
Browse latest Browse all 1906

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>