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Channel: Mutual Funds in Hindi - म्यूचुअल फंड्स निवेश, पर्सनल फाइनेंस, इन्वेस्टमेंट के तरीके, Personal Finance News in Hindi | Navbharat Times
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सिर्फ टैक्स सेविंग के लिए बचत में है नुकसान

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संकेत धानोरकर, मुंबई

एंप्लॉयीज प्रॉविडेंट फंड पर टैक्स लगाने के प्रस्ताव से तमाम लोगों को धक्का लगा है, लेकिन टैक्सेशन पॉलिसी में हो सकने वाले इस बड़े बदलाव में एक अहम सबक उन लोगों के लिए छिपा हुआ है, जो निवेश के इंस्ट्रूमेंट्स चुनते वक्त केवल टैक्स सेविंग को ध्यान में रखते हैं। एक्सपर्ट्स का कहना है कि निवेशकों को ऐसी सोच के दायरे से बाहर निकलना चाहिए। अगर बजट प्रस्ताव पास हो जाता है तो ईपीएफ के अलावा वॉलंटरी प्रॉविडेंट फंड में अतिरिक्त योगदान करने वालों को भी झटका लगेगा।

दो साल पहले डेट फंड्स, खासतौर से फिक्स्ड मच्योरिटी प्लान में निवेश करने वालों को झटका लगा था, जब लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस के लिए एलिजिबिलिटी पीरियड एक से बढ़ाकर तीन साल कर दिया गया था। वाइजइनवेस्ट अडवाइजर्स के सीईओ हेमंत रुस्तगी का कहना है कि टैक्स मामलों में ऐसे बदलाव आने वाले दिनों में हो सकते हैं और निवेशकों को ज्यादा सक्रियता से प्लानिंग करनी चाहिए। ईपीएफ का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, 'जिन सेविंग्स इंस्ट्रूमेंट्स को पहले माना जाता था कि इन पर तो टैक्स लग ही नहीं सकता, उनको भी टैक्स के दायरे में लाया जा रहा है।'

लैडर 7 फाइनैंशल सर्विसेज के फाउंडर सुरेश सदगोपन ने कहा कि निवेशकों को रिस्क फ्री असेट्स से ऊंचे रिटर्न की उम्मीद नहीं करनी चाहिए क्योंकि लॉन्ग टर्म में ऐसा रिटर्न सस्टेनेबल नहीं होता है। उन्होंने कहा, 'निवेशकों को ईपीएफ और पीपीएफ जैसे टैक्स फ्रेंडली विकल्पों पर ही फोकस करने की बजाय दूसरे विकल्पों में भी निवेश बढ़ाना चाहिए और रिस्क के अलग-अलग स्तरों को आजमाना चाहिए। अपनी रिस्क प्रोफाइल के अनुसार निवेशकों को डेट, इक्विटी और हाइब्रिड इंस्ट्रूमेंट्स के मिक्स में निवेश करना चाहिए।'

मार्केट लिंक्ड प्रॉडक्ट्स:
एक्सपर्ट्स निवेशकों को यह सलाह भी दे रहे हैं कि उन्हें इंस्ट्रूमेंट की लिक्विडिटी पर ध्यान देना चाहिए। ईपीएफ और पीपीएफ जैसे प्रॉडक्ट्स निवेशक के पैसे को लंबे समय तक लॉक रखते हैं और टैक्स नियमों में होने वाले किसी भी प्रतिकूल बदलाव के बाद वहां से पैसे निकालकर दूसरी जगह लगाने की गुंजाइश बेहद कम बचती है।

रुस्तगी की सलाह है कि निवेशकों को म्यूचुअल फंड्स जैसे मार्केट लिंक्ड प्रॉडक्ट्स की ओर बढ़ना चाहिए, जिनमें निवेशक के पास पैसे लगाने की ज्यादा सहूलियत होती है। स्मॉल सेविंग्स स्कीम्स पर ब्याज दरों में भी तिमाही आधार पर बदलाव करने की राह बन रही है, ऐसे में निवेशक इन इंस्ट्रूमेंट्स में एक तय रिटर्न के लिए लॉक-इन करने पर निर्भर नहीं रह सकते हैं। इसी तरह इक्विटी इंस्ट्रूमेंट्स से लॉन्ग टर्म गेंस पर टैक्स फ्री रिटर्न पाने की आदत डाल चुके निवेशक भी लंबे समय तक टैक्स नेट से बाहर नहीं रह पाएंगे।

EPF पर टैक्स ने किया परेशान:
ईपीएफ के सब्सक्राइबर्स तो नियमों में हाल में किए गए बदलावों से बेहद परेशान हैं। पहले तो 10 फरवरी को एक सरकारी नोटिफिकेशन में कहा गया कि ईपीएफ सब्सक्राइबर्स एंप्लॉयर्स कंट्रीब्यूशन 58 साल की उम्र के बाद ही निकाल सकते हैं। यह कदम गलत है क्योंकि हो सकता है कि कई सब्सक्राइबर्स ने बच्चों की पढ़ाई, विवाह आदि जैसे अहम कार्यों के लिए ईपीएफ के कॉरपस के इस्तेमाल की योजना बनाई हो। सवाल यह पूछा जा सकता है कि फिर रिटायरमेंट पर वे क्या करेंगे? तो हो सकता है कि ऐसे लोगों ने नैशनल पेंशन सिस्टम और म्यूचुअल फंड्स या बीमा कंपनियों के पेंशन प्रॉडक्ट्स के जरिए रिटायरमेंट प्लानिंग की हो।



दूसरी बात यह है कि बजट में प्रस्ताव किया गया है कि 1 अप्रैल 2016 के बाद जमा हुई रकम के 60 पर्सेंट हिस्से पर विदड्रॉल टैक्स लगाया जाएगा। इस बारे में सरकार ने एक के बाद एक स्पष्टीकरण देकर यह जताने की कोशिश की है कि वह तो सब्सक्राइबर्स के एक हिस्से पर ही टैक्स लगा रही है।

सरकार की दलील थोथी है क्योंकि 15,000 रुपये महीने से ज्यादा बेसिक सैलरी वाले किसी भी शख्स को अब 'ज्यादा वेतन वाला कर्मचारी' मान लिया जाएगा। इससे भी अहम यह है कि प्रेस नोट में यह साफ नहीं किया गया कि 15,000 रुपये महीने का यह कट-ऑफ कब से लागू होगा यानी ईपीएफ में एंट्री के वक्त से या रिटायरमेंट के समय पर। अगर यह रिटायरमेंट के समय पर हुआ तो अभी इसके दायरे से बाहर के ज्यादातर लोग रिटायरमेंट के समय तक यह लिमिट पार कर चुके होंगे।

इसी प्रेस नोट के मुताबिक सरकार 'प्राइवेट सेक्टर के ऊंची सैलरी वाले करीब 60 लाख कर्मचरियों को टारगेट कर रही है, जिन्होंने स्वेच्छा से ईपीएफ को चुना था।' यह भी गलत दलील है क्योंकि इनमें से ज्यादातर को ईपीएफ के मौजूदा नियमों के अनुसार निवेश बनाए रखना होगा। मौजूदा नियमों के मुताबिक, ईपीएफ में कवर्ड एंप्लॉयीज को केवल इस वजह से बाहर जाने की इजाजत नहीं है कि उनकी सैलरी 15,000 रुपये महीने के कट-ऑफ को पार कर गई।

दूसरे शब्दों में कहें तो कोई एंप्लॉयी ईपीएफ से तभी दूर रह सकता है, जब वह ईपीएफ में कभी कवर्ड हुआ ही न हो, न तो मौजूदा जॉब में और न ही इससे पहले की जॉब में। अगर सरकार को लगता है कि ये 'ऊंची सैलरी वाले एंप्लॉयीज' ईपीएफ सब्सिडी का बेजा फायदा ले रहे हैं तो वह उन्हें तुरंत ईपीएफ स्ट्रक्चर से बाहर जाने का रास्ता दे और इसमें होल्डिंग पीरियड या टैक्सेशन जैसी कोई बाधा न लगाए।

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