प्रीति कुलकर्णी
जब भी आप इंश्योरेंस पॉलिसी खरीदेंगे, आपको नियम और शर्तें ध्यान से पढ़ने की सलाह दी जाएगी। हालांकि, घंटों तक कॉन्ट्रैक्ट पढ़ने के बाद भी इस बात के चांसेज बहुत कम हैं कि आपकी जानकारी बढ़ेगी। ऐसा इसलिए कि कॉन्ट्रैक्ट्स की भाषा कानूनी और टेक्निकल शब्दों से भरी होती है। हाल के वर्षों में रेग्युलेटर और इंश्योरेंस कंपनियों ने कॉन्ट्रैक्ट्स में अस्पष्टता घटाने वाले कदम उठाए हैं। अब कॉन्ट्रैक्ट्स की भाषा कुछ आसान हुई है। इससे आप भी उसके क्लॉज चेक कर सकते हैं जिससे क्लेम सेटलमेंट के वक्त झटका नहीं लगे।
लाइफ इंश्योरेंस
निर्विवादिता
यह क्लॉज पॉलिसी होल्डर्स के हितों की सुरक्षा के लिए होता है। इसमें इंश्योरेंस कंपनी को तीन साल बाद लाइफ पॉलिसी किसी भी आधार पर वापस लेने से रोक होती है। उस समय तक इंश्योरेंस कंपनी फ्रॉड के केस में सवाल उठा सकती है। ऐसे मामलों में इंश्योरेंस कंपनी को आरोप का आधार लिखकर बताना होता है। अगर आप यह साबित कर देते हैं कि कोई सूचना गलती से छूटी या अनजाने में गलतबयानी हो गई है, तो क्लेम रिजेक्शन को रोका जा सकता है।
फ्री लुक
कस्टमर्स को डॉक्युमेंट मिलने के एक पखवाड़े के भीतर पॉलिसी लौटाने का ऑप्शन मिलता है। अगर आप कवर से संतुष्ट नहीं हैं तो पॉलिसी रिटर्न करके रिफंड ले सकते हैं। यहां यह याद रखना जरूरी है कि यह पीरियड तब से स्टार्ट होता है जिस दिन पॉलिसी डॉक्युमेंट्स मिलते हैं, तब से नहीं जब से यह इश्यू होता है। हालांकि, प्रीमियम रिफंड मांगने पर मेडिकल टेस्ट, स्टांप ड्यूटी और समान अनुपात में रिस्क प्रीमियम काट लिया जाता है।
नॉमिनेशन
संशोधित इंश्योरेंस ऐक्ट में माता पिता, पति या पत्नी और बच्चों को बेनेफिशल नॉमिनी बनाने का कॉन्सेप्ट पेश किया है। इसमें इंश्योरेंस क्लेम की रकम पर दूसरे कानूनी उत्तराधिकारी दावा करते हैं तो भी इंश्योरेंस कंपनी बेनेफिशल नॉमिनी को ही देगी। पॉलिसीहोल्डर एक से ज्यादा बेनेफिशल नॉमिनी बना सकता है और उनका शेयर तय कर सकता है।
हेल्थ इंश्योरेंस
रिन्यूएबिलिटी
इंश्योरेंस कंपनी को हर हाल में पॉलिसी रिन्यू करना होगा, बशर्ते कस्टमर पर धोखाधड़ी करने, गलत तथ्य पेश करने वगैरह का आरोप न हो। इसी तरह, इंश्योरेंस कंपनियां पिछले साल में हुए क्लेम के आधार पर मनमाने तरीके से रिन्यूअल प्रीमियम नहीं बढ़ा सकतीं। प्रीमियम जिन फैक्टर्स के आधार पर बढ़ाया जा सकता है, उनमें उम्र और बीमारी भी शामिल है।
रीजनेबिलिटी
इस क्लॉज में यह लिखा है कि सिर्फ वाजिब और जरूरी खर्च के लिए ही दावा किया जा सकता है। इससे इसकी अलग अलग व्याख्या की गुंजाइश बनती है। ICICI लोंबार्ड में अंडरराइटिंग और क्लेम्स चीफ संजय दत्ता कहते हैं, 'यह कुछ अपरिभाषित क्षेत्रों में एक है। इससे क्लेम सेटलमेंट के वक्त कस्टमर्स के साथ विवाद पैदा होने का रिस्क पैदा होता है।' इस क्लॉज का मकसद यह तय करना है कि हॉस्पिटल हेल्थ इंश्योरेंस के तहत कवर्ड पेशेंट का बिल सही-सही बनाएं। हालांकि, हेल्थ इंश्योरेंस रेग्युलेशंस में व्याख्या की सीमा बांध दी गई है। इंश्योरेंस कंपनियों को लिखित में अपनी वजह के बारे में बताना होगा। इसलिए अगर आपको लगता है कि यह सही नहीं है तो आप उस पर सवाल उठा सकते हैं।
एक्सक्लूजंस और सब-लिमिट
इंश्योरेंस पॉलिसी में कुछ शर्तों और खर्च पर सब-लिमिट लगती है या हटती है। इसलिए फोकस इस बात पर होना चाहिए कि क्या कवर्ड नहीं है। IRDAI ने 2013 में 199 एक्सक्लूशंस की लिस्ट जारी की थी। आपको दावों के लिए वेटिंग पीरियड पर भी ध्यान रखना होगा। मिसाल के लिए, ऐक्सिडेंट्स को छोड़ किसी और मामले में पॉलिसी के पहले 30 दिन में कोई क्लेम नहीं लिया जा सकता। सब-लिमिट का मतलब कस्टमर के खर्च पर सम अश्योर्ड के भीतर लिमिट लगाना होता है। आमतौर पर यह हॉस्पिटल रूम रेंट, डॉक्टर की फीस, ऑपरेशन थिएटर चार्ज वगैरह पर लगता है।
जब भी आप इंश्योरेंस पॉलिसी खरीदेंगे, आपको नियम और शर्तें ध्यान से पढ़ने की सलाह दी जाएगी। हालांकि, घंटों तक कॉन्ट्रैक्ट पढ़ने के बाद भी इस बात के चांसेज बहुत कम हैं कि आपकी जानकारी बढ़ेगी। ऐसा इसलिए कि कॉन्ट्रैक्ट्स की भाषा कानूनी और टेक्निकल शब्दों से भरी होती है। हाल के वर्षों में रेग्युलेटर और इंश्योरेंस कंपनियों ने कॉन्ट्रैक्ट्स में अस्पष्टता घटाने वाले कदम उठाए हैं। अब कॉन्ट्रैक्ट्स की भाषा कुछ आसान हुई है। इससे आप भी उसके क्लॉज चेक कर सकते हैं जिससे क्लेम सेटलमेंट के वक्त झटका नहीं लगे।
लाइफ इंश्योरेंस
निर्विवादिता
यह क्लॉज पॉलिसी होल्डर्स के हितों की सुरक्षा के लिए होता है। इसमें इंश्योरेंस कंपनी को तीन साल बाद लाइफ पॉलिसी किसी भी आधार पर वापस लेने से रोक होती है। उस समय तक इंश्योरेंस कंपनी फ्रॉड के केस में सवाल उठा सकती है। ऐसे मामलों में इंश्योरेंस कंपनी को आरोप का आधार लिखकर बताना होता है। अगर आप यह साबित कर देते हैं कि कोई सूचना गलती से छूटी या अनजाने में गलतबयानी हो गई है, तो क्लेम रिजेक्शन को रोका जा सकता है।
फ्री लुक
कस्टमर्स को डॉक्युमेंट मिलने के एक पखवाड़े के भीतर पॉलिसी लौटाने का ऑप्शन मिलता है। अगर आप कवर से संतुष्ट नहीं हैं तो पॉलिसी रिटर्न करके रिफंड ले सकते हैं। यहां यह याद रखना जरूरी है कि यह पीरियड तब से स्टार्ट होता है जिस दिन पॉलिसी डॉक्युमेंट्स मिलते हैं, तब से नहीं जब से यह इश्यू होता है। हालांकि, प्रीमियम रिफंड मांगने पर मेडिकल टेस्ट, स्टांप ड्यूटी और समान अनुपात में रिस्क प्रीमियम काट लिया जाता है।
नॉमिनेशन
संशोधित इंश्योरेंस ऐक्ट में माता पिता, पति या पत्नी और बच्चों को बेनेफिशल नॉमिनी बनाने का कॉन्सेप्ट पेश किया है। इसमें इंश्योरेंस क्लेम की रकम पर दूसरे कानूनी उत्तराधिकारी दावा करते हैं तो भी इंश्योरेंस कंपनी बेनेफिशल नॉमिनी को ही देगी। पॉलिसीहोल्डर एक से ज्यादा बेनेफिशल नॉमिनी बना सकता है और उनका शेयर तय कर सकता है।
हेल्थ इंश्योरेंस
रिन्यूएबिलिटी
इंश्योरेंस कंपनी को हर हाल में पॉलिसी रिन्यू करना होगा, बशर्ते कस्टमर पर धोखाधड़ी करने, गलत तथ्य पेश करने वगैरह का आरोप न हो। इसी तरह, इंश्योरेंस कंपनियां पिछले साल में हुए क्लेम के आधार पर मनमाने तरीके से रिन्यूअल प्रीमियम नहीं बढ़ा सकतीं। प्रीमियम जिन फैक्टर्स के आधार पर बढ़ाया जा सकता है, उनमें उम्र और बीमारी भी शामिल है।
रीजनेबिलिटी
इस क्लॉज में यह लिखा है कि सिर्फ वाजिब और जरूरी खर्च के लिए ही दावा किया जा सकता है। इससे इसकी अलग अलग व्याख्या की गुंजाइश बनती है। ICICI लोंबार्ड में अंडरराइटिंग और क्लेम्स चीफ संजय दत्ता कहते हैं, 'यह कुछ अपरिभाषित क्षेत्रों में एक है। इससे क्लेम सेटलमेंट के वक्त कस्टमर्स के साथ विवाद पैदा होने का रिस्क पैदा होता है।' इस क्लॉज का मकसद यह तय करना है कि हॉस्पिटल हेल्थ इंश्योरेंस के तहत कवर्ड पेशेंट का बिल सही-सही बनाएं। हालांकि, हेल्थ इंश्योरेंस रेग्युलेशंस में व्याख्या की सीमा बांध दी गई है। इंश्योरेंस कंपनियों को लिखित में अपनी वजह के बारे में बताना होगा। इसलिए अगर आपको लगता है कि यह सही नहीं है तो आप उस पर सवाल उठा सकते हैं।
एक्सक्लूजंस और सब-लिमिट
इंश्योरेंस पॉलिसी में कुछ शर्तों और खर्च पर सब-लिमिट लगती है या हटती है। इसलिए फोकस इस बात पर होना चाहिए कि क्या कवर्ड नहीं है। IRDAI ने 2013 में 199 एक्सक्लूशंस की लिस्ट जारी की थी। आपको दावों के लिए वेटिंग पीरियड पर भी ध्यान रखना होगा। मिसाल के लिए, ऐक्सिडेंट्स को छोड़ किसी और मामले में पॉलिसी के पहले 30 दिन में कोई क्लेम नहीं लिया जा सकता। सब-लिमिट का मतलब कस्टमर के खर्च पर सम अश्योर्ड के भीतर लिमिट लगाना होता है। आमतौर पर यह हॉस्पिटल रूम रेंट, डॉक्टर की फीस, ऑपरेशन थिएटर चार्ज वगैरह पर लगता है।
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