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गिरावट के तूफान में डटे रहने वाले फंड पर लगाएं दांव

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संकेत धानोरकर

करीब दो साल तक स्टॉक मार्केट में तेजी रहने के बाद आई गिरावट ने कई इक्विटी फंड्स का गणित गड़बड़ कर दिया है। मौजूदा स्थिति साबित कर रही है कि बाजार में तेजी के दौरान दिखा प्रदर्शन किसी फंड की बेहतर स्ट्रैटिजी का सबूत नहीं हो सकता है। गिरावट के दौर में प्रदर्शन देखकर ही किसी फंड पर दांव लगाया जाना चाहिए। जो फंड गिरावट में टिके रहते हैं, वे आमतौर पर लॉन्ग टर्म में बेहतर रिटर्न देते हैं। कुछ ही फंड ऐसे हैं, जो बुल फेज में मार्केट से ज्यादा रिटर्न देने और गिरावट में नुकसान कम से कम रखने का दावा कर पाएं। ऐसे फंड ही असल आउटपरफॉर्मर्स होते हैं।

इस दलील को जांचने के लिए हमने 1 सितंबर 2010 से 31 अगस्त 2015 के बीच कई तरह के इक्विटी फंड्स में आई बढ़त और गिरावट के रेशियो पर विचार किया, जब फंड्स को मार्केट की अलग-अलग स्थितियों का सामना करना पड़ा था। बढ़त का रेशियो बताता है कि जब मार्केट चढ़ा तो उसका कितना पर्सेंट असर फंड पर पड़ा। डाउनसाइड कैप्चर रेशियो गिरावट के वक्त का हाल बताता है। अपसाइड कैप्चर रेशियो 100% से ज्यादा होने का मतलब यह है कि फंड ने बेंचमार्क या कैटिगरी ऐवरेज को आटउपरफॉर्म किया। डाउनसाइड कैप्चर रेशियो 100% से कम होने का अर्थ यह है कि फंड ने गिरावट के वक्त बेंचमार्क या कैटिगरी ऐवरेज से कम नुकसान दर्ज किया। यानी अगर मार्केट में 20% बढ़त आई, लेकिन फंड 25% चढ़ गया तो इसका अर्थ यह हुआ कि फंड ने मार्केट के मूव का 125% (20% का 25%) कर लिया। इसी तरह अगर मार्केट 10% गिरा और आपके फंड की वैल्यू 8% घटी, तो इसका अर्थ यह हुआ कि फंड ने 80% डाउनसाइड ही कैप्चर किया।

हर फंड के परफॉर्मेंस की तुलना उसके बेंचमार्क इंडेक्स से की गई है। मॉर्निंगस्टार इंडिया ने जो डेटा दिए हैं, उनसे पता चलता है कि पिछले पांच वर्षों में जिन फंड्स का डाउनसाइड कैप्चर रेशियो कम रहा है, वे टॉप परफॉर्मर्स के रूप में सामने आए।

अलग-अलग कैटिगरीज में देखें तो जिन फंड्स ने गिरावट कम से कम दर्ज की, उन्होंने अपने कैटिगरी ऐवरेज से बेतर प्रदर्शन किया। मॉर्निंगस्टार इंडिया के सीनियर ऐनालिस्ट और मैनेजर (रिसर्च) हिमांशु श्रीवास्तव ने कहा, 'ये फंड्स पांच साल की इस अवधि में दूसरों से अलग रहे। इस दौरान मार्केट में काफी उतार-चढ़ाव हुआ।'

उदाहरण के लिए, लार्ज कैप सेगमेंट में 100% से कम डाउनसाइड कैप्चर वाले फंड्स ने पांच वर्षों में 10.23% का सालाना रिटर्न दिया, जबकि कैटिगरी एवरेज 9.61% रहा। दूसरी ओर, जिन फंड्स ने इस दौरान मार्केट डाउनसाइड का 100% से ज्यादा हिस्सा कैप्चर किया, उन्होंने औसतन 6.67% रिटर्न ही दिया। इसी तरह मिड और स्मॉल कैप कैटिगरी में 100% से ज्यादा डाउनसाइड कैप्चर वाले फंड्स का सालाना औसत रिटर्न इन पांच वर्षों के दौरान 7.37% रहा, जबकि कैटिगरी का रिटर्न 16.32% था। वहीं, जिन फंड्स के मामले में डाउनसाइड कैप्चर 100% से कम रहा, उन्होंने 17.13% का सालाना रिटर्न दिया। उदाहरण के लिए, इस दौरान एसबीआई स्मॉल ऐंड मिड कैप फंड ने मार्केट अपसाइड का 91% हिस्सा ही कैप्चर किया, लेकिन डाउनसाइड कैप्चरिंग इतनी कम रही कि कुलमिलाकर इसका प्रदर्शन सबसे अच्छा हो गया।

ज्यादा डाउनसाइड कैप्चर वाले फंड्स अपसाइड कैप्चर के मामले में बेहतरीन रहे, लेकिन पूरी अवधि के लिहाज से देखें तो ये दूसरे फंड्स से पिछड़ गए। यही ट्रेंड फ्लेक्सी-कैप में दिखा, जिसमें गिरावट के दौरान कम झटका खाने वाले फंड्स अपनी कैटिगरी में टॉप परफॉर्मर रहे, हालांकि मार्केट में तेजी को वे ज्यादा कैप्चर नहीं कर सके।

इस विश्लेषण से यह साफ है कि मार्केट में गिरावट के दौरान जो फंड नुकसान कम से कम होने देते हैं, वे कुलमिलाकर अच्छा प्रदर्शन कर ले जाते हैं, न कि वे फंड, जो तेजी के दौरान बढ़िया रिटर्न देते हैं। श्रीवास्तव ने कहा, 'गिरावट के वक्त संभलना अहम होता है, लेकिन मार्केट में तेजी के दौरान फंड की वैल्यू में अच्छी बढ़त भी होनी चाहिए, भले ही वह सबसे ज्यादा न हो।'

सिस्टेमैटिक्स शेयर्स ऐंड स्टॉक्स के वीपी (रिसर्च) अरुण गोपालन का कहना है कि लॉन्ग टर्म परफॉर्मेंस इस बात पर निर्भर करती है कि गिरावट के वक्त फंड मैनेजर क्या करता है। उन्होंने कहा, 'अगर मार्केट में तेजी के दौरान कोई फंड इसका 140% हिस्सा कैप्चर कर रहा हो, लेकिन गिरावट के वक्त उसकी इतनी ही वैल्यू घट भी जा रही हो तो कुलमिलाकर मामला ठीक नहीं है।'

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