[ धीरेंद्र कुमार ] सरकार ने जो गोल्ड बॉन्ड स्कीम लॉन्च की है, वह कई मायनों में दिलचस्प है। जब यह स्कीम ऑपरेशनल हो जाएगी, तो गोल्ड म्यूचुअल फंड्स के बने रहने की वजह लगभग खत्म हो जाएगी। ऐसे लोग हैं जो फिजिकल फॉर्म में गोल्ड रखना पसंद करते हैं। वहीं ऐसे लोग भी हैं, जो पेपर फॉर्म में गोल्ड रखते हैं क्योंकि उन्हें इस पर रिटर्न चाहिए। अभी तक नॉन-फिजिकल गोल्ड में निवेश करने वालों के लिए गोल्ड फंड्स सबसे मुफीद हुआ करते थे। अब नए सरकारी बॉन्ड्स बेहतर विकल्प हैं। ये बॉन्ड गोल्ड की प्राइस तो ट्रैक करेंगे ही उसके अलावा भी ब्याज देंगे। ये बॉन्ड्स 5 ग्राम से शुरू होकर अलग-अलग मात्राओं में अवलेबल होंगे। निवेश का तरीका यह है कि 10 ग्राम गोल्ड खरीदने के बजाय इसमें आप 10 ग्राम गोल्ड बॉन्ड खरीदेंगे। ये बैंकों, डाकघरों और दूसरी जगहों पर मिलेंगे। बॉन्ड का मिनिमम टेनर अभी तय नहीं किया गया है, लेकिन हो सकता है कि इसे पांच साल फिक्स किया जाए। तो पांच साल बाद जब आप बॉन्ड भुनाएंगे, तो आपको वह रकम मिलेगी, जो 10 ग्राम गोल्ड की वैल्यू होगी। गोल्ड वैल्यू के अलावा आपको अतिरिक्त ब्याज भी मिलेगा। इतना ही नहीं, ऑफिशियल रिलीज में कहा गया है कि रेवेन्यू डिपार्टमेंट इनकम टैक्स एक्ट में बदलाव करने को राजी हो गया है ताकि इन बॉन्ड्स की खरीद-फरोख्त पर टैक्स के वही नियम लगें, जो फिजिकल गोल्ड के मामले में लगते हैं। फिजिकल गोल्ड और गोल्ड फंड्स से तुलना: जो वैध रकम से गोल्ड में निवेश करेंगे और जो गोल्ड में अपना गला और अंगुलियां फंसाकर घूमना पसंद नहीं करेंगे, उनके लिए ही इन बॉन्ड्स का मतलब बनता है। उन्हें ब्याज के रूप में अतिरिक्त रकम मिलेगी और दूसरी बात यह है कि शुद्धता या सुरक्षा को लेकर कोई चिंता नहीं होगी। जहां तक गोल्ड म्यूचुअल फंड्स से तुलना की बात है तो ये बॉन्ड ज्यादा रिटर्न देंगे। गोल्ड फंड्स भी इन बॉन्ड्स की तरह गोल्ड प्राइसेज ट्रैक करते हैं, लेकिन उनमें फंड मैनेजमेंट चार्जेज लगते हैं। इन चार्जेज से ही फंड कंपनी अपने खर्च चलाती है और मुनाफा बनाती है। चूंकि गवर्नमेंट गोल्ड बॉन्ड पर कोई चार्ज नहीं लगेगा और वे अतिरिक्त ब्याज भी देंगे, तो गोल्ड म्यूचुअल फंड उनसे रिटर्न के मामले में मुकाबला नहीं कर सकेंगे। हां, लिक्विडिटी के मामले में वे मुकाबले में होंगे। बॉन्ड्स तो एक तय वक्त के लिए फ्रीज होंगे। वहीं गोल्ड फंड्स को कभी भी तीन दिनों के नोटिस पर भुनाया जा सकता है। हो सकता है कि इन बॉन्ड्स को बेचने का सेकेंडरी मार्केट भी सामने आए, लेकिन यह पक्का तो नहीं ही है। फिर इन बॉन्ड्स का मिनिमम टिकट साइज भी 5 ग्राम है, जो कुछ बड़ा ही है। इसका मतलब अभी 13,000 रुपये के आसपास हुआ और गोल्ड प्राइसेज चढ़ने पर यह और बढ़ेगा। वहीं ज्यादातर गोल्ड फंड्स में न्यूनतम 5,000 रुपये की टिकट साइज है। हालांकि, जो लोग कुछ वर्षों के लिए निवेश कर रहे होंगे, उनके लिए गवर्नमेंट बॉन्ड्स बेहतर रहेंगे। क्या स्कीम सफल होगी: यह बात तो इस पर निर्भर करती है कि सफलता की परिभाषा क्या तय की जाए। साफ है कि इस स्कीम के कारण गोल्ड इंपोर्ट में 50% या 25% कमी नहीं होने जा रही है। इसे दरअसल ऐसे लॉन्ग टर्म उपाय के रूप में देखना चाहिए, जो आने वाले वर्षों में इंडिया में गोल्ड रखने का तरीका कुछ हद तक बदल देगा। इसका जितना भी यूज हो, गोल्ड बॉन्ड जैसा इनवेस्टमेंट टूल तो हमेशा उपलब्ध होना चाहिए। इनवेस्टमेंट के लिहाज से गोल्ड कोई खास उपयोगी एसेट नहीं है, लेकिन वह कहानी फिर कभी। (लेखक वैल्यू रिसर्च के सीईओ हैं)
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