भारत में मार्केट के हितों के लिए काम करने वाली सरकार के होने से भविष्य में ग्रोथ की अच्छी संभावनाएं हैं। आरबीएस प्राइवेट बैंकिंग के सीआईओ राजेश चेरूवू ने ईटी के संकेत धानोरकर को दिए इंटरव्यू में कहा कि अमेरिका के फेडरल रिजर्व के रेट बढ़ाने का भारत पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा: आप यूरोप पर बुलिश क्यों हैं? रीजन में इकनॉमिक ग्रोथ पिछले कुछ क्वॉर्टर्स में उम्मीद से ज्यादा रही है। इसके अलावा कॉरपोरेट अर्निंग्स ग्रोथ उम्मीद के अनुसार है। इसके साथ ही यूरोपीय मार्केट आकर्षक मल्टीपल्स पर ट्रेड कर रहे हैं। इन कारणों से हमें लगता है कि यूरोप आउटपरफॉर्म करेगा। वर्ष की शुरुआत में चीन पर आपका बुलिश दांव अच्छा रहा था। सेंटीमेंट में बदलाव के बाद आपकी मौजूदा स्थिति क्या है? पहली छमाही में चीन का ऑफशोर मार्केट तेजी से बढ़ा था। यह अर्निंग्स के 65-85 मल्टीपल्स पर ट्रेड कर रहा था। अभी मार्केट को लेकर चिंताएं इस आशंका की वजह से हैं कि क्या चीन का मार्केट एक बबल जोन में है। चीन सरकार की फिस्कल और मॉनेटरी कोशिशों से ग्रोथ बढ़ेगी और विदेशी इनवेस्टर्स का भरोसा मजबूत होगा। क्या एमएससीआई इंडेक्स में चीन के शामिल होने से भारत में फ्लो पर असर पड़ेगा? इसका कोई बड़ा असर नहीं पड़ेगा। आमतौर पर ग्लोबल इनवेस्टर्स इमर्जिंग मार्केट्स (ईएम) के मुकाबले में डिवेलप्ड मार्केट्स को लेकर राय बनाते हैं। डिवेलप्ड मार्केट ग्रोथ 2-3 पर्सेंट से नीचे है, जबकि इमर्जिंग मार्केट्स में 5 पर्सेंट से ज्यादा की ग्रोथ मिलने की उम्मीद है। इसमें भारत एक ऐसा मार्केट है, जो किसी भी अन्य इमर्जिंग मार्केट के मुकाबले तेजी से बढ़ेगा। इस समय भारत की ग्रोथ 7.3 पर्सेंट की है। हमारा मानना है कि मार्च 2016 तक यह 7.6 पर्सेंट पर जा सकती है। मार्च 2017 के बाद से ग्रोथ 8 पर्सेंट से ज्यादा की होगी। इसे देखते हुए फॉरेन इनवेस्टर्स भारत पर अपनी ओवरवेट स्थिति बरकरार रखेंगे। क्या भारतीय मार्केट अमेरिकी फेडरल रिजर्व की ओर से रेट बढ़ाने का असर झेल सकती है? असर कुछ कम होगा। अगस्त 2013 के मुकाबले फॉरेक्स रिजर्व को लेकर स्थिति काफी अच्छी है। क्रूड और गोल्ड सहित कमोडिटी प्राइसेज नीचे आए हैं। अगर फेडरल रिजर्व रेट बढ़ाता है तो गोल्ड में गिरावट आ सकती है। इसके अलावा रेट में बढ़ोतरी धीरे-धीरे होगी और बहुत अधिक नहीं रहेगी। इससे मार्केट को एडजस्ट करने में मदद मिलेगी। फिक्स्ड इनकम मार्केट पर भी सीमित असर होने की संभावना है। इकनॉमिक रिकवरी को ऑयल के प्राइस में बढ़ोतरी से क्या जोखिम है? ग्लोबल ग्रोथ 2008 के निचले स्तरों से रिकवर कर रही है। इसके साथ ही एनर्जी के नए सोर्सेज की डिस्कवरी हो रही है। दुनिया भर में लोगों ने एनर्जी के ऑल्टरनेटिव सोर्सेज पर विचार करना शुरू कर दिया है। मुझे लगता है कि डिमांड इन लेवल्स से बहुत अधिक नहीं बढ़ेगी, जबकि सप्लाई बहुत अच्छी रहेगी। एक वर्ष पहले के मुकाबले अब भौगोलिक-राजनीतिक तनाव कम हुए हैं। पिछले कुछ वर्षों में ऑयल की नॉन-ओेपेक सप्लाई बढ़ी है। इससे प्राइसेज 65-70 डॉलर प्रति बैरल पर सीमित रहेंगे। आप किन सेक्टर्स पर दांव लगा रहे हैं? हम अपने पोर्टफोलियो का एक्टिव मैनजमेंट करते हैं। वर्ष की शुरुआत में हम इंटरेस्ट को लेकर सेंसिटिव और एक्सपोर्ट वाले सेक्टर्स पर बुलिश थे। हम अभी भी फाइनेंशियल, कंज्यूमर, आईटी जैसे सेक्टर्स पर ओवरवेट हैं। हमने आउटपरफॉर्म करने वाले सेक्टर्स की लिस्ट में हेल्थकेयर को जोड़ा है। फार्मा वैल्यूएशंस बेहतर हुए हैं। कुछ क्वॉलिटी स्टॉक्स में पीक लेवल्स से 25-30 पर्सेंट गिरावट आई है। इससे इनवेस्टर्स के लिए मौके बने हैं। हमें लगता है कि कुछ समय तक इंटरेस्ट को लेकर सेंसेटिव और एक्सपोर्ट पर निर्भर सेक्टर्स अच्छा परफॉर्म करेंगे।
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