[ संजय कुमार सिंह ] शेयर मार्केट के मौजूदा हाल से कई रिटेल इनवेस्टर्स घबराए हुए हैं। हालांकि वे मार्केट में निवेश बनाए भी रखना चाहते हैं। साथ ही, वे जोखिम भी नहीं लेना चाहते। जो लोग एसेट एलोकेशन का सेफ ऑप्शन चाहते हों, उन्हें एक्सपर्ट्स का सहारा लेना चाहिए। उनकी मुश्किल मल्टी-एसेट्स फंड्स से आसान हो सकती है। क्या होते हैं मल्टी-एसेट फंड्स ये ऑल-इन-वन फंड्स हैं। ये इक्विटी, डेट और गोल्ड में निवेश करते हैं। इस कैटेगरी का आम फंड डेट में ज्यादा (50-90% तक), इक्विटीज में 40% तक और गोल्ड में 35% तक निवेश करता है। कुछ फंड्स इक्विटी पर ज्यादा फोकस रखते हैं और डेट तथा गोल्ड में कम निवेश करते हैं, वहीं कुछ तीनों कैटेगरीज को बराबर वेटेज देते हैं। अच्छा दांव क्यों इन फंड्स का सबसे बड़ा फायदा डायवर्सिफिकेशन का है। इसकी वजह से इनमें उतार-चढ़ाव का जोखिम कम रहता है और लंबी अवधि में इनवेस्टर बगैर हिचकोलों के अच्छा रिटर्न पाने की उम्मीद कर सकता है। दूसरी बात यह है कि एसेट एलोकेशन और रीबैलेंसिंग का काम एक्सपर्ट फंड मैनेजर के हाथ में होता है। कोटक एसेट मैनेजमेंट कंपनी की चीफ इनवेस्टमेंट ऑफिसर लक्ष्मी अय्यर ने कहा, 'कई रिटेल इनवेस्टर्स को हो सकता है कि एसेट एलोकेशन और रीबैलेंसिंग के तरीके पता न हों। उन्हें एक्सपर्ट से मदद मिल सकती है।' ये फंड कुछ तरह की लागत से भी आपको बचाते हैं। रीबैलेंसिंग में आपको एसेट बेचनी होती है और फिर टैक्सेशन का पहलू सामने आ जाता है। कभी-कभार हो सकता है कि आपको एग्जिट लोड देना पड़ जाए। मल्टी-एसेट फंड्स में आपको ये नहीं चुकाने होते। खामियां क्या हैं ये ब्लेंडेड प्रॉडक्ट्स होते हैं, लिहाजा इनमें रिटर्न किसी भी वक्त के बेहतरीन एसेट क्लास से कम ही रहेगा। कम उतार-चढ़ाव की यही कीमत इनवेस्टर्स को इनमें चुकानी पड़ती है। कई बार मल्टी-एसेट फंड्स का स्ट्रक्चर फंड ऑफ फंड्स सरीखा होता है। ऐसे में उसी फंड हाउस का मदर फंड इनमें निवेश करता है। ऐसा इनवेस्टर के हित में नहीं होता है। फंड्सइंडियाडॉटकॉम की रिसर्च हेड विद्या बाला ने कहा, 'इसमें इनवेस्टर्स को तमाम फंड हाउसेज के बेहतरीन फंड्स में चुनाव करने का मौका नहीं मिल पाता।' कई मल्टी-एसेट फंड्स का निवेश गोल्ड में काफी ज्यादा होता है। फाइनेंशियल प्लानर्स का कहना है कि रिटेल इनवेस्टर के पोर्टफोलियो में गोल्ड में एलोकेशन 10 से ज्यादा नहीं होना चाहिए। गोल्ड में बुल और बीयर साइकल्स पूरा होने में एक दशक तक लग जाते हैं। अभी मंदी का दौर चल रहा है। फिर इंडिया में मल्टी-एसेट फंड्स का लॉन्ग टर्म ट्रैक रिकॉर्ड भी नहीं है। आपको पांच साल का ट्रैक रिकॉर्ड ही मिलेगा। इन फंड्स का कॉरपस साइज भी सीमित है। क्या करना चाहिए इस कैटेगरी से उस फंड को चुनें, जिसका एसेट एलोकेशन आपके रिस्क प्रोफाइल जैसा हो। मसलन, बेहद कम जोखिम पसंद करने वाले निवेशकों को इक्विटी में ज्यादा निवेश करने वाला फंड नहीं चुनना चाहिए। इन फंड्स में कम से कम पांच साल के लिए पैसा लगाएं। इनके रिटर्न की तुलना बेस्ट परफॉर्मिंग कैटेगरी से न करें। इनकी तुलना इनके बेंचमार्क इंडाइसेज के वेटेज ऐवरेज रिटर्न से करें। प्लान अहेड वेल्थ एडवाइजर्स के चीफ फाइनेंशिल प्लानर विशाल धवन ने कहा, 'लॉन्ग टर्म में इन फंड्स से 10 से 15-16 पर्सेंट तक रिटर्न मिलना चाहिए।' इस कैटेगरी के सभी फंड का एक्सपेंस रेशियो देखें क्योंकि इनमें काफी अंतर रहता है। बेहद छोटे फंड में पैसा लगाने से बचें। अगर कॉरपस साइज नहीं बढ़ता है तो इस बात का डर रहता है कि फंड हाउस उस फंड को बंद कर दे। याद रखें कि ये कंजर्वेटिव और कम जोखिम वाले प्रॉडक्ट्स हैं। लॉन्ग टर्म में डेट ओरिएंटेड फंड्स के मामले में टैक्स की सहूलियत को देखते हुए ये बैंक एफडी और पोस्ट ऑफिस स्कीम्स से बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं।
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