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कस्टमर अब मैच्योर हो गए हैं: एसबीआई लाइफ

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एसबीआई लाइफ के मैनेजिंग डायरेक्टर और सीईओ अरिजीत बसु ने इकनॉमिक टाइम्स की प्रीति कुलकर्णी को दिए इंटरव्यू में बताया कि इंश्योरेंस कानून में बदलाव से कस्टमर्स को काफी फायदा होगा। इससे इंश्योरेंस सेक्टर में फॉरेन डायरेक्ट इनवेस्टमेंट बढ़ेगा और अधिक लोगों को बीमा की सहूलियत मिलेगी। उन्होंने यह भी बताया कि उनकी कंपनी ने मिस-सेलिंग रोकने के लिए कौन से कदम उठाए हैं:

इंश्योरेंस सेक्टर के लिए इस साल की सबसे बड़ी खबर संशोधित बीमा अधिनियम का पास होना है। इससे पॉलिसीहोल्डर्स को क्या फायदा होगा?

नया कानून पॉलिसीहोल्डर्स को ध्यान में रखकर बनाया गया है। यह बात और है कि सबसे ज्यादा चर्चा एफडीआई लिमिट बढ़ने को लेकर हुई है। कई इंश्योरेंस कंपनियां वास्तविक क्लेम को भी रिजेक्ट कर रही थीं। नए कानून में इसे रोकने की कोशिश की गई है। कंपनियों से कहा गया है कि पॉलिसी इश्यू करने के तीन साल बाद वे ऐसे बहानों के आधार पर क्लेम रिजेक्ट नहीं कर सकतीं। इंश्योरेंस इंडस्ट्री फ्रॉड से डरी हुई है, लेकिन इस क्लॉज से जेनुइन कस्टमर्स को फायदा होगा। वहीं, एफडीआई लिमिट बढ़ने से इंश्योरेंस सेक्टर का दायरा बढ़ाने में मदद मिलेगी। इस एक्ट में इंश्योरेंस रेगुलेटरी एंड डिवेलपमेंट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (इरडा) को भी अधिक पावर दी गई है। मिस-सेलिंग और दूसरे उल्लंघन के लिए संशोधित कानून में अधिक जुर्माने का भी प्रावधान है।

आप मिस-सेलिंग कैसे रोक रहे हैं?

हम पॉलिसी इश्यू करने से पहले सभी कस्टमर्स को कॉल करते हैं। यह कॉल सिर्फ उन कस्टमर्स को नहीं की जाती, जो बैंकों के जरिये टर्म इंश्योरेंस पॉलिसी खरीदते हैं। इस साल हमने 11.3 लाख पॉलिसी बेची हैं। इनमें से 9.5 लाख के लिए कॉल की गई थी। इसमें कस्टमर्स से पूछा गया कि क्या वे पॉलिसी की शर्तों को समझते हैं। हमने यह कॉल 15 दिन के फ्री लुक पीरियड से पहले की, जिसमें कस्टमर्स के पास पॉलिसी को बिना किसी वजह से कैंसल करने का अधिकार होता है। हम पॉलिसी बेचने से पहले यह भी देख रहे हैं कि आमदनी, उम्र और पेशे के मुताबिक वह कस्टमर के लिए सही है या नहीं?

क्या इनका फायदा हुआ है?

कुल पॉलिसी की तुलना में मिस-सेलिंग रेशियो घटकर 0.5 पर्सेंट रह गया है। दूसरी कंपनियों के लिए यह आंकड़ा 1.3-1.5 पर्सेंट है। बैंकएश्योरेंस मॉडल में मिस-सेलिंग की शिकायतें काफी की जाती हैं, लेकिन हमारे लिए यह 0.1 पर्सेंट है। सरकारी बैंकों के स्टाफ पॉलिसी इश्यू करने में कंजर्वेटिव अप्रोच अपनाते हैं। इसलिए इसमें मिस-सेलिंग की आशंका कम रहती है।

बड़े पैमाने पर मिस-सेलिंग की शिकायतों के बाद इरडा ने प्रॉडक्ट रेगुलेशंस में बदलाव किए थे। क्या कस्टमर कॉन्फिडेंस बढ़ रहा है?

इसमें कुछ सुधार हुआ है। अब यह हम पर है कि हम इसे कैसे आगे बढ़ाते हैं। शेयर बाजार में गिरावट और कुछ कंपनियों के कस्टमर्स के हितों की अनदेखी करने के चलते कॉन्फिडेंस कम हुआ था। बाजार में तेजी और कंपनियों एवं इरडा के उपायों के बाद कस्टमर्स का भरोसा बीमा कंपनियों पर फिर से बढ़ रहा है।

क्या कस्टमर्स की पसंद में बदलाव हुआ है?

वे ज्यादा मैच्योर हो रहे हैं। हालांकि, अब भी इंश्योरेंस कस्टमर की बुनियादी सोच पहले वाली ही है। पश्चिमी देशों में इसे प्रोटेक्शन टूल के तौर पर देखा जाता है। भारत में अगर मैं यह कहता हूं कि कोई प्रॉडक्ट सस्ता है और आपको प्रीमियम की रकम वापस नहीं मिलेगी तो यह काम नहीं करेगा। जब लोग यूलिप खरीदते हैं तो उनके दिमाग में रिटर्न की बात होती है। हालांकि, इसमें इंश्योरेंस कवर भी है। अब अगर एजेंट्स असामान्य रिटर्न का दावा करते हैं तो कस्टमर्स उस पर सवाल खड़े कर रहे हैं।

क्या अब ज्यादा यूलिप पॉलिसीज बिक रही हैं?

यूलिप के लिए हम खास आमदनी और उम्र के लोगों को टारगेट कर रहे हैं, जो प्रॉडक्ट को समझते हैं। कुल पॉलिसी में यूलिप की हिस्सेदारी 45 पर्सेंट है। टर्म प्लान का कंट्रीब्यूशन 15-20 पर्सेंट तक है।

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