आर्गनाइज्ड सेक्टर के कर्मचारियों को जल्दी ही कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) द्वारा संचालित ईपीएफ योजना तथा नई पेंशन योजना (एनपीएस) में किसी एक को चुनने का विकल्प मिल सकता है।
केंद्रीय मंत्रिमंडल अगले सप्ताह इस प्रस्ताव पर विचार कर सकता है।यह प्रस्ताव कर्मचारी भविष्य निधि एवं विविध प्रावधान कानून 1952 में व्यापक संशोधन करने के लिये लाये जा रहे विधेयक का हिस्सा है। विधेयक में प्रस्तावित एक अन्य संशोधन के तहत केंद्र सरकार को मासिक आय की निश्चित सीमा के साथ कर्मचारियों द्वारा पीएफ (भविष्य निधि) में योगदान से छूट देने के लिये अधिकृत किया गया है।
एक सूत्र ने बताया, 'विधेयक पर त्रिपक्षीय चर्चा पूरी हो गयी है और केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी के लिये इस अगले सप्ताह रखा जाएगा।' सूत्र ने यह भी कहा कि योजना के क्रियान्वयन के लिये ईपीएफओ नियामकीय निकाय होगा क्योंकि ऐसे मामले हो सकते हैं जहां कर्मचारी न तो ईपीएफ अपनायें और न ही एनपीएस को लें।
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2015-16 के अपने बजट भाषणा में कर्मचारियों द्वारा सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में चुनने का विकल्प देने के प्रस्ताव की घोषणा की थी। जेटली ने संसद में कहा था, 'ईपीएफ के संदर्भ में कर्मचारियों को दो विकल्प देने की जरुरत है। पहला, कर्मचारी ईपीएफ को अपना सकते हैं या नई पेंशन योजना (एनपीएस) को। अगर किसी कर्मचारी की मासिक वेतन निश्चित सीमा से कम है तो ईपीएफओ में योदान वैकल्पिक होना चाहिए लेकिन इसमें नियोक्ताओं का योगदान प्रभावित या कम नहीं होगा।'
अंतिम विधेयक में एक अन्य संशोधन वेतन की परिभाषा में बदलाव से जुड़ा है। इसके तहत मूल वेतन में कर्मचारियों को दिये जाने वाला सभी भत्ते शामिल होंगे। इससे कर्मचारियों एवं नियोक्ताओं का पीएफ योगदान बढ़ेगा लेकिन दूसरी तरफ कर्मचारियों के लिये बचत ज्यादा होगी। विधेयक के अनुसार वेतन का मतलब है कि सभी परिलब्धियां या पारितोषिक। इसमें वे भत्ते भी शामिल हैं जो कर्मचारियों को नकद मिलते हैं। योजना के तहत ईपीएफ में कर्मचारियों का योगदान उनके मूल वेतन का 12 प्रतिशत होता है। इतना ही योगदान नियोक्ताओं का होता है। नियोक्ताओं के योगदान में से 3.67 प्रतिशत ईपीएफ में, 8.33 प्रतिशत कर्मचारी पेंशन योजना तथा 0.5 प्रतिशत एंप्लायज डिपोजिट लिंक्ड इंश्योरेंस स्कीम में जाता है। मौजूदा समय में कुछ नियोक्ता वेतन को कई भत्तों में बांट देते हैं ताकि उनकी पीएफ जवाबदेही कम हो।
संशोधन से इस मुद्दे का समाधान होगा। कर्मचारियों के प्रतिनिधि वेतन को जोड़ने को पक्ष में हैं। हालांकि ट्रेड यूनियनों ने कर्मचारियों को ईपीएफ और एनपीएस में चयन का विकल्प देने पर आपत्ति जतायी है। उनका कहना है कि एनपीएस सामाजिक सुरक्षा योजना नहीं है बल्कि यह बचत योजना है। कर्मचारियों द्वारा पीएफ योगदान में छूट के बारे में उनका मानना है कि इससे अनिवार्य सामाजिक सुरक्षा दायरा कमजोर होगा।
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