मुमकिन है कि इंडियन इक्विटीज में पैसे लगाने वाले विदेशी निवेशकों के बीच यह चर्चा चल रही हो कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व कब इंटरेस्ट रेट बढ़ाना शुरू करेगा। बात चाहे जो भी हो, HDFC स्टैंडर्ड लाइफ इंश्योरेंस के फिक्स्ड इनकम हेड बद्रीश कुलहल्ली का कहना है कि इंडिया फॉरेन इनवेस्टर्स के लिए अब भी अट्रैक्टिव डेस्टिनेशन बना हुआ है। 34,000 करोड़ रुपये से ज्यादा के डेट एसेट्स मैनेज कर रहे कुलहल्ली ने सैकत दास से बातचीत में बताया कि अमेरिकी फेड रिजर्व के रेट हाइक का इंडिया पर क्या असर होगा और इनवेस्टर्स को किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। पेश हैं इस बातचीत के मुख्य अंश: RBI की तरफ से उम्मीद से पहले दो बार इंटरेस्ट रेट में कटौती के बाद अब आपकी क्या इनवेस्टमेंट स्ट्रैटेजी है? मार्केट पिछले साल अगस्त और सितंबर से ही इंटरेस्ट रेट में कटौती के असर को फैक्टर कर रहा था। इसलिए हमने यील्ड में गिरावट का फायदा उठाने के लिए डेट सिक्योरिटीज का ड्यूरेशन बढ़ा दिया है और उसके हिसाब से अपने पोर्टफोलियो की पोजिशनिंग की है। हमारे हिसाब से अगले साल इंटरेस्ट रेट में 50 से 75 बेसिस प्वाइंट (0.50-0.75 पर्सेंटेज प्वाइंट) की कटौती हो सकती है। लो इंटरेस्ट रेट साइकल में क्या चीज बाधक बन सकती है? महंगाई में तेज उछाल इंटरेस्ट रेट में कटौती की संभावना कम कर सकता है। खाड़ी देशों में हिंसा बढ़ने पर अगर क्रूड ऑयल की सप्लाई बहुत बुरी तरह प्रभावित हुई तो महंगाई फिर बढ़ने लग सकती है। ऐसे में मार्केट में तेज उतार-चढ़ाव का माहौल बन सकता है। क्या अमेरिकी फेड रिजर्व के रेट बढ़ाने पर एफआईआई इंडिया से वापसी कर सकते हैं? अमेरिका में इंटरेस्ट रेट में बढ़ोतरी का चक्र धीरे-धीरे बढ़ सकता है। अंत में यह उस लेवल तक पहुंच सकता है, जहां यह पिछली रेट हाइक के खत्म होने पर था। अमेरिकी बॉन्ड्स की यील्ड में तेज उछाल की संभावना नहीं है। अमेरिकी और इंडियन ट्रेजरी बॉन्ड की यील्ड के बीच का फर्क अब भी बहुत है। रेट हाइक होने पर मार्केट में कुछ समय के लिए थोड़ी-बहुत उथल-पुथल मच सकती है, लेकिन इंडियन मार्केट पर इसका बड़ा असर नहीं होगा। इंटरेस्ट रेट में गिरावट का माहौल बनने पर रिटेल इनवेस्टर्स को क्या करना चाहिए? जब इंटरेस्ट रेट में गिरावट आने लगे, तो इंडिविजुअल इनवेस्टर्स को अपने डेट पोर्टफोलियो का ड्यूरेशन बढ़ाना शुरू कर देना चाहिए। उनको हायर रेट पर अपने लॉन्ग टर्म इनवेस्टमेंट को लॉक करना चाहिए। ऑप्शन के तौर पर यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्रॉडक्ट्स के बॉन्ड फंड्स लेने की सलाह दी जा सकती है क्योंकि फंड मैनेजर्स हालात को देखते हुए पोर्टफोलियो का ड्यूरेशन एडजस्ट करते हैं। फिस्कल ईयर 2015-16 में कुछ टैक्स फ्री बॉन्ड्स आ सकते हैं और वे अच्छा ऑप्शन साबित हो सकते हैं। इंडिया में अब भी इंश्योरेंस को इनवेस्टमेंट के तौर पर देखा जाता है। इस बारे में आपको क्या कहना है? कस्टमर्स आमतौर पर उम्मीद करते हैं कि उनको पॉलिसी पीरियड के दौरान कुछ इंश्योरेंस कवर मिले और जब पॉलिसी खत्म हो तब प्रीमियम का कुछ हिस्सा भी वापस मिले, लेकिन यह कॉम्बिनेशन एक बंडल्ड इंश्योरेंस प्रॉडक्ट में ही मिल सकता है जिसमें एक इनवेस्टमेंट कंपोनेंट हो। टैक्स बेनेफिट भी इनवेस्टर्स की इंश्योरेंस पॉलिसी की चॉइस को प्रभावित करता है। कस्टमर्स बाजार में मिलने वाले टैक्स सेविंग ऑप्शंस की भी तुलना करते हैं। इसे देखते हुए लोग इस बात की भी उम्मीद करते हैं कि इंश्योरेंस प्रॉडक्ट्स एक इनवेस्टमेंट प्रॉडक्ट्स जैसा हो।
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