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Channel: Mutual Funds in Hindi - म्यूचुअल फंड्स निवेश, पर्सनल फाइनेंस, इन्वेस्टमेंट के तरीके, Personal Finance News in Hindi | Navbharat Times
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लंबी अवधि के बॉन्ड्स में निवेश वाले फंड्स से निकल जाना बेहतर!

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संकेत धानोरकर
आरबीआई ने पिछले दिनों एक अस्वाभाविक कदम उठाया था। ऑपरेशन ट्विस्ट के तहत उसने 10 साल की अवधि वाले सरकारी बॉन्ड खरीदे थे जबकि सालभर में मैच्योर होने वाले बॉन्ड खरीदे थे। इसका बॉन्ड फंड इन्वेस्टर्स के लिए क्या मतलब है?

आरबीआई द्वारा यह कदम उठाने से पहले के हफ्तों में बॉन्ड मार्केट्स का पलड़ा एक ओर ज्यादा झुक गया था। कम अवधि के सरकारी बॉन्ड्स के मुकाबले लंबी अवधि के सरकारी बॉन्ड्स पर यील्ड बढ़ गई थी। लंबी अवधि के बॉन्ड्स पर प्राय: 'टर्म प्रीमियम' होता है यानी यील्ड ज्यादा होता है क्योंकि लंबी अवधि के साथ जुड़ी अनिश्चितता के कारण निवेशक इन्हें ज्यादा जोखिम वाला मानते हैं और इनमें निवेश करने के लिए ज्यादा ब्याज की डिमांड करते हैं। लिहाजा कम अवधि की मैच्योरिटी वाले बॉन्ड्स से शुरू होकर सबसे ज्यादा अवधि के बॉन्ड पर यील्ड की जानकारी देने वाला चार्ट यानी यील्ड कर्व ऊपर की ओर चढ़ता है।

मौजूदा आर्थिक स्थितियों और बॉन्ड मार्केट्स में ज्यादा अनिश्चितता के कारण यील्ड कर्व सामान्य से भी ज्यादा तीखा हो गया। यील्ड्स में अंतर काफी ज्यादा बढ़ गया। आरबीआई ने तब इसमें दखल देने का निर्णय किया ताकि यील्ड कर्व को कुछ नरम किया जाए। इसके लिए उसने लंबी अवधि के बॉन्ड्स खरीदने और छोटी अवधि के बॉन्ड्स बेचने का फैसला किया। इससे लंबी अवधि के बॉन्ड्स पर बढ़े हुए यील्ड को घटाने में मदद मिली और इस दौरान इंटरेस्ट रेट्स पर भी असर नहीं पड़ा। बॉन्ड मार्केट ने इस पर वांछित प्रतिक्रिया दी थी। 16 दिसंबर को 10 साल के बेंचमार्क बॉन्ड पर यील्ड 6.8 प्रतिशत था, जो साल के अंत तक 6.52 प्रतिशत पर आ गया। बॉन्ड यील्ड और बॉन्ड प्राइस एक-दूसरे से उल्टी दिशा में चलते हैं। लंबी और कम अवधि वाले बॉन्ड्स के बीच स्प्रेड काफी घट गया। इससे यील्ड कर्व का असंतुलन कम हुआ।

आरबीआई के इस अलग नजरिए से लंबी अवधि के बॉन्ड्स को काफी फायदा होगा। हालांकि एक्सपर्ट्स आरबीआई के इस कदम से ज्यादा उत्साहित होने के प्रति आगाह कर रहे हैं। उनका कहना है कि निवेशकों को भविष्य में ऐसे ज्यादा कदमों की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। इडलवाइज म्यूचुअल फंड के फिक्स्ड इनकम हेड धवल दलाल ने कहा कि बॉन्ड मार्केट्स के लिए यह ऐक्शन स्थिति साफ करने के मुकाबले दुविधा पैदा करने वाला है। उन्होंने कहा, 'आरबीआई का मकसद कभी भी यील्ड कर्व को मैनेज करना नहीं रहा है। उसका घोषित उद्देश्य तो इंफ्लेशन को काबू में करना रहा है।' केनरा रोबेको म्यूचुअल फंड के फिक्स्ड इनकम हेड अवनीश जैन ने कहा, 'आरबीआई का यह कदम पॉलिसी में किसी बड़े बदलाव के बजाय फौरी तौर पर उठाया गया लगता है।'

इसके अलावा बॉन्ड मार्केट में यह सेंटीमेंट दिख रहा है कि लंबी अवधि के बॉन्ड्स में और चढ़ने की गुंजाइश सीमित है। कुछ मैक्रो इंडिकेटर्स से भी बॉन्ड मार्केट्स पर असर पड़ने का पता चल रहा है। कुछ महीनों पहले नरम चल रही इन्फ्लेशन में तेजी आनी शुरू हो गई है। जैन ने कहा, 'नए साल की पहली छमाही में इन्फ्लेशन में तेजी जारी रह सकती है।' इंफ्लेशन ज्यादा रहने से आरबीआई को सतर्कता बढ़ानी पड़ेगी और इकॉनमी को सहारा देने के लिए ब्याज दरों में नरमी लाने के बजाय उन्हें जस का तस बनाए रखना पड़ सकता है। इससे बॉन्ड प्राइसेज में और तेजी की गुंजाइश घटेगी। राजकोषीय समीकरण भी दबाव में दिख रहा है। जीएसटी कलेक्शंस में कमी और इस साल के विनिवेश लक्ष्य के हासिल न हो पाने की आशंका को देखते हुए सरकार राजकोषीय घाटे का लक्ष्य चूक सकती है। राजकोषीय घाटे में बढ़ोतरी यानी सरकारी आमदनी के बजाय इसके खर्च में इजाफा ज्यादा होने से सरकार को अधिक उधार लेना पड़ सकता है। यह बॉन्ड मार्केट्स के लिए बुरी खबर है क्योंकि बॉन्ड्स की सप्लाई बढ़ने बॉन्ड प्राइसेज में नरमी आएगी।

इस तरह के सेंटिमेंट्स को देखत हुए एक्सपर्ट्स अवधि के आधार पर जोखिम उठाने से बचने की सलाह दे रहे हैं। ड्यूरेशन स्ट्रैटिजी में निवेशक ब्याज दरों में कमी के माहौल में लंबी अवधि के बॉन्ड फंड्स पर दांव लगाते हैं। ब्याज दरों में नरमी के बीच पिछले सालभर में लंबी अवधि के डेट फंड्स और गिल्ट फंड्स में पैसा लगाने वाले निवेशकों ने अच्छा रिटर्न पाया है। इन फंड्स ने औसतन क्रमश: 12.4% और 10.7% की बढ़ोतरी दर्ज की। आने वाले समय में इस बास्केट से गेन सीमित रह सकता है। दलाल का कहना है कि लॉन्ग ड्यूरेशन फंड्स में प्रॉफिट बुक करने का यह सही समय है। उन्होंने कहा, 'बॉन्ड मार्केट में यह सीन बनता दिख रहा है कि सरकार अतिरिक्त उधार लेगी और इन्फ्लेशन में बढ़ोतरी होगी। ऐसे में बॉन्ड यील्ड्स में धीरे-धीरे ही बढ़ोतरी होगी।' फंड मैनेजरों की सलाह है कि निकट भविष्य के लिए छोटी अवधि के बॉन्ड फंड्स के साथ रहना चाहिए क्योंकि अवधि छोटी होने से ब्याज दर में बदलाव का असर भी कम ही होता है।

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