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'चुनिंदा छोटे और मझोले शेयरों में खरीदारी का शानदार मौका'

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SBI म्यूचुअल फंड के CIO नवनीत मुनोट के मुताबिक दाम में आई गिरावट के बाद चुनिंदा मिड और स्मॉल कैप स्टॉक खरीदारी लायक हो गए हैं। देश के सबसे बड़े इक्विटी फंड को मैनेज करने वाले मुनोट ने ETMarkets.com को दिए इंटरव्यू में कहा कि बाजार को लेकर कोई भी राय बनाने से पहले हमें चार फैक्टर्स पर गौर करना होगा। ये फैक्टर्स हैं: मैक्रो, कॉरपोरेट प्रॉफिटेबिलिटी, वैल्यूएशन और लिक्विडिटी। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश:

हम जानते हैं कि आप नियर टर्म व्यू नहीं देते तो बताएं कि बाजार को लेकर आपका मीडियम टर्म व्यू कैसा है?
आमतौर पर मैं चार चीजों पर गौर करता हूं: मैक्रो, कॉरपोरेट प्रॉफिटेबिलिटी, वैल्यूएशन और लिक्विडिटी। आप कोई नजरिया बना सकें इसके लिए मैं बताना चाहूंगा कि मैक्रो व्यू में मॉनिटरी और फिस्कल पॉलिसी शामिल हैं। इसमें ग्रोथ और इन्फ्लेशन डायनेमिक्स हैं और हम यह भी देखते हैं कि ग्लोबल इकॉनमी में क्या हो रहा है, ग्लोबल मार्केट और लिक्विडिटी का क्या हाल है।

इसके बाद कॉर्पोरेट प्रॉफिटेबिलिटी आती है क्योंकि आखिर में लॉन्ग टर्म में शेयरों का दाम तय करनेवाला अहम फैक्टर कॉर्पोरेट प्रॉफिट ग्रोथ होता है। इक्विटी प्राइस कुछ और नहीं, बस कंपनियों की प्रॉफिट कमाने की क्षमता से जुड़ा आंकड़ा होता है। पिछले कुछ वर्षों में टॉप 500 कंपनियों (फाइनैंशल और ऑयल ऐंड गैस कंपनियों को छोड़कर) का प्रॉफिट मार्जिन पहले के 12.5% PAT के मुकाबले घटकर लगभग 7.5% रह गया है। इस साल तो यह 7% से भी कम है जो कंपनियों के PAT मार्जिन में बड़ी गिरावट है। इसकी सबसे बड़ी वजह नेगेटिव ऑपरेटिंग लीवरेज है, जिसका मतलब यह है कि कंपनियों की पूरी क्षमता का इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है। कंपनियों ने कारोबार में मोटी रकम लगाई हुई है लेकिन ग्रोथ में कमी आई है। हमारा मानना है कि अगले कुछ वर्षों में रेवेन्यू और प्रॉफिट ग्रोथ दोनों नॉमिनल जीडीपी ग्रोथ से ज्यादा रह सकती है।

तीसरा पार्ट वैल्यूएशन का है। मार्केट हर साल कॉरपोरेट ग्रोथ और प्रॉफिटेबिलटी या जीडीपी ग्रोथ के हिसाब से परफॉर्म नहीं कर सकता, लेकिन लॉन्गर टर्म में यह मुमकिन है क्योंकि इक्विटी मार्केट में स्टार्टिंग प्वाइंट वैल्यूएशन काफी अहम होता है। खासतौर पर लार्ज कैप कंपनियों का ऐग्रिगेट लेवल पर वैल्यूएशन उनके लॉन्ग टर्म ऐवरेज से ज्यादा नजर आ रहा है लेकिन मिड और स्मॉल कैप इंडेक्स में उनके लॉन्ग टर्म एवरेज से नीचे ट्रेड हो रहा है।

चौथा फैक्टर लिक्विडिटी फ्लो से जुड़ा हुआ है। इकॉनमी और कॉरपोरेट प्रॉफिट के मोर्चे पर चुनौतीपूर्ण माहौल के बावजूद भारत में FII का इन्वेस्टमेंट और घरेलू निवेशकों का निवेश पहले जैसा ही है। विदेशी निवेशकों ने इस साल इंडियन मार्केट 13 अरब डॉलर का निवेश किया है जबकि घरेलू निवेशकों के निवेश में पिछले कुछ महीनों में थोड़ी सुस्ती आई है। SIP के जरिए MF में निवेश की रफ्तार मजबूत बनी हुई है।

आपने कहा कि फाइनैंशल सेक्टर की कंपनियों को छोड़ दें तो बाकी सेक्टर की कंपनियों की प्रॉफिटेबिलिटी 7% से कम है। क्या यह बाजार का सबसे बुरा वक्त बीत जाने का संकेत है?
अगर आपने यह सवाल छह महीने या साल भर पहले पूछा होता तो मेरा जवाब हां में होता, लेकिन ऐसा हुआ नहीं है। ग्रोथ में गिरावट आई है और मुझे लगता है कि आनेवाले समय में प्रॉफिटेबिलिटी लॉन्ग टर्म एवरेज की तरफ पलट सकती है। जीडीपी के पर्सेंटेज बेसिस पर ऐग्रिगेट लेवल पर कॉरपोरेट प्रॉफिट 2% से कम है जो 2008 में 7% हुआ करता था। जीडीपी के मुकाबले कॉरपोरेट प्रॉफिट में बड़ी गिरावट कुछ स्ट्रक्चरल और साइक्लिकल फैक्टर्स की वजह से आई हैं। टेलीकॉम कंपनियों के लॉस और NPA के लिए बैंकिंग सेक्टर की तरफ से होने वाली प्रोविजनिंग के चलते भी ऐग्रिगेट प्रॉफिट में गिरावट आई है और कुछ फैक्टर्स के चलते मार्जिन लेवल भी घटा है। रियल रेट में गिरावट आने, ओवरऑल इकॉनमी और इन्वेस्टमेंट साइकिल में रिकवरी होने पर कॉरपोरेट प्रॉफिट में भी रिकवरी होगी।

आपने कहा है कि मिड और स्मॉल कैप शेयरों में लॉन्ग टर्म एवरेज से नीचे ट्रेड हो रहा है। क्या यह चुनिंदा शेयरों में खरीदारी करने का वक्त है?
2018 की शुरुआत में मिड और स्मॉल कैप स्पेस में वैल्यूएशन थोड़ा बढ़ा हुआ था। लगभग पिछले दो साल में हुए करेक्शन से अतिरिक्त वैल्यूएशन में काफी कमी आई है। ऐसे में कहा जा सकता है कि बाजार में चुनिंदा शेयरों की खरीदारी के अच्छे मौके हैं।

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