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जॉब छोड़ने के 48 घंटों के भीतर हो जाएगा फुल ऐंड फाइनल पेमेंट!

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प्रीति मोतियानी
जॉब छोड़ने पर आपको अमूमन अपना फुल ऐंड फाइनल सेटलमेंट कराने में एक महीने का वक्त लग जाता है, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। बहुत जल्द बदलाव नियमों में बदलाव हो सकते हैं, फिर इस काम में महज 48 घंटे का समय लगेगा। 8 अगस्त को नोटिफाइ किए गए कोड ऑन वेजेस, 2019 के मुताबिक, आपकी नौकरी के लास्ट वर्किंग डे के दो दिनों के भीतर आपके एम्प्लॉयर को आपका बकाया अदा करना होगा।

फुल ऐंड फाइनल पेमेंट पर क्या कहता है कोड
कोड के तहत आपको मिलने वाली सैलरी और अलाउंस आपके रेम्युनरेशन का हिस्सा होते हैं। इसमें आपका डीए, बेसिक पे और रिटेनिंग अलाउंस शामिल होते हैं। एलटीए, हाउसिंग कॉम्पन्सेशन और कन्वेऐंस अलाउंस आदि इसका हिस्सा नहीं होते। देय ग्रैच्युटी के अलावा रीट्रेंचमेंट कॉम्पन्सेशन और अन्य रिटायरमेंट बेनिफिट्स आदि कुल रेम्युनरेशन के 50 फीसदी से ज्यादा होते हैं तो उसे सैलरी में ऐड किया जाएगा।

इसके अलावा, कुल वेतन का 15% एम्प्लॉयी स्टॉक ऑप्शन(ESoPs) के रूप में हो सकता है। कोड कहता है, एम् प्लॉयी को नौकरी से हटा दिया गया हो, वह छंटनी का हिस्सा हो, उसने जॉब छोड़ दिया हो या कंपनी बंद होने की वजह से वह बेरोजगार हो जाए, हर केस में उसका फुल ऐंड फाइनल पेमेंट 48 घंटों के भीतर उसे मिल जाना चाहिए। ऐसे में मान लीजिए, अपने संस्थान में आपका लास्ट वर्किंग डे अगर 18 दिसंबर है तो आपको 20 तारीख तक फुल ऐंड फाइनल पेमेट मिल जाना चाहिए।

क्या कहते हैं मौजूदा नियम
ईवाई के डायरेक्टर पुनीत गुप्ता कहते हैं, मौजूदा ऐक्ट (पेमेंट ऑफ वेजेस ऐक्ट, 1936) के मुताबिक, कुछ चीजों को छोड़कर कुल मेहनताना पे कर दिया जाता है। जो मदें छोड़ी जाती हैं, वे हैं बोनस, मकान की कीमत, बिजली आपूर्ति, पानी, मेडिकल आदि, जो रोजगार की शर्तों का हिस्सा नहीं होतीं। इसके अलावा, एंप्लॉयर द्वारा किया गया पीएफ योगदान या पेंशन फंड, ट्रैवलिंग अलाउंस या कन्सेशन, ग्रैच्युटी आदि भी इसका हिस्सा नहीं होते।

फिलहाल फुल ऐंड फाइनल पेमेंट की कोई तय समयसीमा नहीं है। कंपनियों की अलग-अलग पॉलिसीज हैं। गुप्ता ने बताया कि ऐक्ट 1936 में भी कोई तय समयसीमा नहीं दी गई है। हालांकि, किसी को नौकरी से बेदखल करने या छंटनी के केस में पेमेमेंट ऑफ वेजेस ऐक्ट 1936 में जरूर प्रावधान है। ऐक्ट के तहत, कुछ जॉब्स ऐसे हैं, जिनमें टर्मिनेशन पर फुल ऐंड फाइनल के लिए डेडलाइन है। इनमें 24000 से कम मासिक आय वाले जॉब्स हैं। नैशनल सैंपल सर्वे ऑर्गनाइजेशन(NSSO) के सर्वे के आधार पर कन्ज्यूमर एक्सपेंडिचर सर्वे किया जाता है, जिसके आधार पर सरकार सैलरी रिवाइज करती है।

डेलॉइट इंडिया में पार्टनर सारस्वती कस्तूरीरंजन कहती हैं, 'पेमेंट ऑफ वेजेस ऐक्ट 1936 के मुताबिक अगर किसी कर्मी को टर्मिनेट किया जाता है या कंपनी किसी वजह से बंद हो जाती है तो दो दिनों के भीतर पेमेंट करने का प्रवाधना है। हालांकि इस्तीफा देने के मामले में कोई समयसीमा नहीं है।'

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