Quantcast
Channel: Mutual Funds in Hindi - म्यूचुअल फंड्स निवेश, पर्सनल फाइनेंस, इन्वेस्टमेंट के तरीके, Personal Finance News in Hindi | Navbharat Times
Viewing all articles
Browse latest Browse all 1906

बॉन्ड यील्ड बढ़ने से आप पर क्या असर होगा?

$
0
0

समीर भारद्वाज, नई दिल्ली
देश में 10 साल के सरकारी बॉन्ड की यील्ड सितंबर 2018 के 8.18 पर्सेंट के पीक से गिरकर दिसंबर 2018 में 7.22 पर्सेंट पर आ गई थी। कच्चे तेल के दाम में गिरावट, बॉन्ड मार्केट में ट्रेडिंग ऐक्टिविटी बढ़ने और इंटरनैशनल मार्केट में रुपये में स्थिरता आने से इधर बॉन्ड यील्ड पर दबाव कम हुआ है। हालांकि, आने वाले महीनों में अंतरिम बजट के कारण फिस्कल डेफिसिट के अधिक रहने से बॉन्ड मार्केट का ट्रेंड बदल सकता है। अंतरिम बजट के चलते सरकार के खर्च में बढ़ोतरी का अनुमान लगाया जा रहा है।

क्या गोल्ड में पैसा लगाने का आ गया मौका?

41 अर्थशास्त्रियों का सर्वे
ब्लूमबर्ग के 41 अर्थशास्त्रियों के सर्वे में 2019 में 10 साल के सॉवरन बॉन्ड की ऐवरेज यील्ड के 7.5 पर्सेंट रहने का अनुमान लगाया गया है। कंपोजिट ब्लूमबर्ग एवरेज 7.46 पर्सेंट है। सरकार ने अंतरिम बजट में किसानों को कैश देने और मध्य वर्ग के लिए इनकम टैक्स में कटौती की थी, जिससे फिस्कल डेफिसिट के लक्ष्य से अधिक रहने की आशंका बढ़ी है।

मार्केट से उधार लेगी सरकार?
बजट के बाद पब्लिश ब्लूमबर्ग इंटेलिजेंस की रिपोर्ट में कहा गया था कि सरकार की आमदनी का अनुमान काफी आशावादी है। जब सरकार खर्च बढ़ाने के लिए मार्केट से अधिक उधारी लेती है, तो प्राइवेट सेक्टर के कैपिटल एक्सपेंडिचर पर उसका बुरा असर पड़ता है क्योंकि निजी क्षेत्र की कंपनियों को फंड कम पड़ जाता है। ऐसे में इंडस्ट्रियल और कैपिटल गुड्स सेक्टर के परफॉर्मेंस पर नेगेटिव असर पड़ता है। अभी तक जीएसटी से होने वाली आमदनी भी स्टेबल नहीं हुई है। अगर जीएसटी कलेक्शन अनुमान से कम रहता है तो इसका भी सरकारी खजाने पर बुरा असर पड़ेगा।

बैंक बेचेंगे सरकारी बॉन्ड?
अनुमान के मुताबिक, सरकार अपने खर्च पूरे करने के लिए 2019-20 में 7 लाख करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज लेगी। इससे मार्केट में अडिशनल बॉन्ड की सप्लाई बढ़ेगी। दूसरी तरफ, बैंकों के पास पहले से काफी सरकारी बॉन्ड हैं। इसलिए जो नए बॉन्ड जारी किए जाएंगे, उसे खरीदने में शायद उनकी बहुत दिलचस्पी न हो। इधर, लोन की मांग बढ़ रही है। ऐसे में सरकारी बैंक बॉन्ड बेचना चाहेंगे ताकि कर्ज देने के लिए अधिक फंड का इंतजाम किया जा सके। खासतौर पर हाल में जो सरकारी बैंक आरबीआई के प्रॉम्प्ट करेक्टिव ऐक्शन (पीसीए) फ्रेमवर्क से बाहर आए हैं, उनके ऐसा करने के अधिक आसान हैं।

बॉन्ड यील्ड में बढ़ोतरी के आसार
मार्केट पर्टिसिपेंट्स को यह भी लग रहा है कि हाल में रुपया-डॉलर स्वाप ऑक्शन के ऐलान के बाद आरबीआई बॉन्ड की खरीदारी घटा सकता है। ऐसे में कम डिमांड के साथ सप्लाई बढ़ने से बॉन्ड के दाम पर बुरा असर पड़ेगा और इससे उनकी यील्ड में बढ़ोतरी होगी। बॉन्ड के दाम और यील्ड के बीच उलटा रिश्ता होता है।

कूपन रेट और फेस वैल्यू का गणित
जब नए बॉन्ड संशोधित दरों पर इशू किए जाते हैं तो उनका पुराने बॉन्ड के दाम पर असर पड़ता है, जिससे उनकी यील्ड नेगेटिव हो सकती है। मिसाल के लिए, 1,000 रुपये की फेस वैल्यू वाले बॉन्ड पर कूपन रेट 8 पर्सेंट है तो नए बॉन्ड के 10 पर्सेंट के कूपन रेट पर आने पर उसकी कीमत 800 रुपये हो जाएगी। उसकी वजह यह है कि 10 पर्सेंट कूपन रेट के साथ 800 रुपये की फेस वैल्यू वाले बॉन्ड पर 80 रुपये का ब्याज मिलेगा और 1,000 रुपये की फेस वैल्यू वाले बॉन्ड पर 8 पर्सेंट के कूपन रेट पर भी उतना ही ब्याज मिल रहा था। अगर नया बॉन्ड 6 पर्सेंट के कूपन रेट पर लाया जाता है, तो पुराने 1,000 रुपये की फेस वैल्यू वाले बॉन्ड की कीमत बढ़कर 1,333 रुपये हो जाएगी।

बॉन्ड यील्ड पर कच्चे तेल का असर
डिमांड-सप्लाई के अलावा कच्चे तेल के दाम में बढ़ोतरी का भी बॉन्ड यील्ड पर असर होता है। दिसंबर 2018 के आखिरी हफ्ते में कच्चे तेल की कीमत 50.5 डॉलर प्रति बैरल हो गई थी। उसके बाद से ब्रेंट क्रूड का दाम 33 पर्सेंट चढ़ चुका है और अभी यह 67.2 डॉलर प्रति बैरल पर ट्रेड कर रहा है। अमेरिका के वेनेजुएला और ईरान पर पाबंदी लगाने से तेल के दाम में दिसंबर के बाद से बढ़ोतरी हुई है। अगर तेल के दाम बढ़ते रहते हैं तो इससे देश के चालू खाता घाटा पर बुरा असर पड़ेगा और महंगाई दर में तेजी आने की आशंका पैदा होगी। इससे बॉन्ड यील्ड में बढ़ोतरी हो सकती है।

मॉनिटरी पॉलिसी रिव्यू से आस
बॉन्ड मार्केट को आरबीआई के अगले मॉनिटरी पॉलिसी रिव्यू से भी कुछ राहत मिल सकती है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि महंगाई दर में कमी और इकनॉमिक ग्रोथ सुस्त पड़ने से आरबीआई ब्याज दरों में और कटौती कर सकता है। डीएसपी इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स में फिक्स्ड इनकम के हेड सौरभ भाटिया ने कहा, 'हमें लग रहा है कि आरबीआई रीपो रेट में 0.25 पर्सेंट की कटौती कर सकता है। अप्रैल-जून तिमाही में वित्त वर्ष 2019 की तीसरी और चौथी तिमाही की तुलना में बैंकिंग सिस्टम में अधिक कैश होगा। इसके साथ अगर रीपो रेट में कटौती होती है तो शॉर्ट टर्म बॉन्ड की यील्ड निचले स्तरों पर बनी रहेगी।'

ऊंचे रहेंगे बॉन्ड यील्ड?

इस बारे में एसबीआई एमएफ में फिक्स्ड इनकम के हेड राजीव राधाकृष्णन ने कहा कि इमर्जिंग मार्केट ऐसेट्स को लेकर एक्सटर्नल मार्केट सेंटीमेंट्स में सुधार, आरबीआई के ब्याज दरों पर रुख बदलने और शायद अप्रैल में रेट कट और कम महंगाई दर के कारण इंट्रेस्ट रेट मार्केट्स के लिए माकूल माहौल बनेगा। हालांकि, लॉन्ग टर्म बॉन्ड यील्ड को लेकर कुछ आशंकाएं हैं। भाटिया ने बताया कि नए वित्त वर्ष की शुरुआत होने के साथ सरकारी की तरफ से बॉन्ड की सप्लाई बढ़ सकती है। इसलिए हमें यील्ड के ऊंचे स्तर पर बने रहने के आसार दिख रहे हैं।

मोबाइल ऐप डाउनलोड करें और रहें हर खबर से अपडेट।


Viewing all articles
Browse latest Browse all 1906

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>