उमा शशिकांत
पाटिल मामा 92 साल के हैं। वह अपने गांव में रहते हैं और रोज अपने खेतों का एक चक्कर लगा आते हैं। उनका खाना-पीना अच्छा चल रहा है। शकुंतला मामी 76 साल की हैं और पास में ही किराए के एक मकान में रहती हैं। वह पूजा-पाठ में लगी रहती हैं। बावा 68 साल के हैं। वह अपनी पत्नी और बेटे के साथ रहते हैं। खड़े होने और चलने के लिए उन्हें सहारे की जरूरत होती है। उनकी हालत खराब हो रही है।
तीनों को सरकारी पेंशन मिलती है। यह रकम हर साल महंगाई भत्ते के साथ कुछ बढ़ती है। विधवा पेंशन पाने वाली मामी का कहना है कि यह रकम उनके लिए पर्याप्त है। हममें से तमाम लोग प्राइवेट सेक्टर में काम करते हैं। सरकारी नौकरी वालों के लिए अब एनपीएस है। एन्युइटी मार्केट से काफी कम पैसा मिलता है और रिटर्न की गारंटी के दिन तो हवा हो चुके हैं।
रिटायरमेंट के समय हमें अपने कॉरपस से इस तरह पैसा निकालना चाहिए कि वह ज्यादा खाली न हो जाए। तो बैंक में पैसा जमा करने और उस पर ब्याज पाने भर से काम नहीं चलने वाला है। तो कॉरपस का उपयोग करते हुए भी उसे बढ़ाने का तरीका क्या हो सकता है?
यह बात इन तीन बुजुर्गों के जरिए समझी जाए। ये सभी सामान्य जीवन जी रहे हैं। दरअसल इनकी जीवनशैली ही ऐसी रही है। लग्जरी की वे परवाह नहीं करते। उन्हें महंगे गैजेट्स या कपड़ों की जरूरत नहीं। वे सादा खाना खाते हैं, पब्लिक ट्रांसपोर्ट से यात्रा कर खुश रहते हैं। उनका यह सादा जीवन ही उनकी पेंशन को पर्याप्त बना दे रहा है।
दूसरी ओर हम कंज्यूमर्स की सोसायटी में रह रहे हैं। क्या हम रिटायरमेंट के बाद उन सुविधाओं को छोड़ने को तैयार हैं, जो अभी हमें मिल रही हैं। हमने ध्यान नहीं दिया, लेकिन खर्च करना हमारी आदत बन गई है।
उन तीन बुजुर्गों की जिंदगी में उनके रिश्ते-नातों और उनकी सेहत की अहम भूमिका है। मामा का गांव में काफी सम्मान है। परिवार या गांव के समारोहों में उनकी राय ली जाती है। मामी की इज्जत, अकेले जीने के उनके साहस के लिए भी की जाती है। बावा हालांकि काफी अकेले हैं। वह कम बोलते हैं। उनकी पत्नी को फिक्र रहती है कि बावा अवसाद से पीड़ित तो नहीं हैं।
हमारी पीढ़ी के ज्यादातर लोग वहां बसे हैं, जहां रोजगार उन्हें खींचकर ले गया। वहीं उनके दोस्त बने। हम उम्मीद करते हैं कि जहां हमने रिटायरमेंट विला खरीदा है, वहां भी कुछ दोस्त बन ही जाएंगे। क्या बुजुर्गों से भरी जगह खुशनुमा होगी? उम्मीद तो ऐसी ही है।
उधर उन तीन बुजुर्गों की जिंदगी में अब भी कोई मकसद बचा हुआ है। मामा की नजर इस बात पर रहती है कि बागवानी में उनके बेटे क्या कर रहे हैं। ज्वार, मिर्च और बाजरा के खेतों को अमरूद, सपोटा और नारियल के बाग के लिए तैयार किए जाते देख वह खुश हो जाते हैं। वहीं मामी रोज नए श्लोक सीखने और गाने की कोशिश करती हैं ताकि वह उन्हें दूसरों को सिखा सकें। वह फीस नहीं लेतीं, लेकिन अपने पास आने वाली महिलाओं और बच्चों की बातों में उन्हें रस मिलता है। यह हलचल उन्हें खुश रखती है। बावा हालांकि दुखी रहते हैं। चिकित्सा, एक्युपंचर और योग की बातें उन्होंने सीखी थीं, लेकिन अब वह इनके जरिए किसी की मदद नहीं कर पाते। वह संगीत सुनते हैं, कुर्सी पर बैठे रहते हैं। मामा शायद ही कभी अपनी सेहत से जुड़ी किसी परेशानी की बात करते हैं। मामी की सेहत अच्छी है और वह रोज कसरत भी करती हैं। बावा हालांकि डॉक्टर के पास भी नहीं जाना चाहते।
दरअसल हम सभी को चुस्त रहने के लिए दोगुनी कोशिश करनी चाहिए। हमें अपने लिए एक हेल्थ प्लान बनाना चाहिए और इस बात का इंतजाम करना चाहिए कि बुढ़ापे में हमारी देखभाल किस तरह होगी क्योंकि जरूरी नहीं है कि तब परिवार के लोग साथ ही हों।
दोस्त जब मुझे नए जमाने की ये कहानियां सुनाते हैं कि किस तरह रिटायर्ड लोग दुनिया की सैर कर रहे हैं, बाहर खाना-पीना एंजॉय कर रहे हैं तो मैं पेंशन, परिवार, आदतों और सेहत से जुड़े सुरक्षा तंत्र को लेकर चिंतित हो जाती हूं, जो हमारे साथ नहीं के बराबर है। बावा की खराब हो रही हालत मेरे लिए चेतावनी की घंटी है। क्या हम सभी तैयार हैं?
पाटिल मामा 92 साल के हैं। वह अपने गांव में रहते हैं और रोज अपने खेतों का एक चक्कर लगा आते हैं। उनका खाना-पीना अच्छा चल रहा है। शकुंतला मामी 76 साल की हैं और पास में ही किराए के एक मकान में रहती हैं। वह पूजा-पाठ में लगी रहती हैं। बावा 68 साल के हैं। वह अपनी पत्नी और बेटे के साथ रहते हैं। खड़े होने और चलने के लिए उन्हें सहारे की जरूरत होती है। उनकी हालत खराब हो रही है।
तीनों को सरकारी पेंशन मिलती है। यह रकम हर साल महंगाई भत्ते के साथ कुछ बढ़ती है। विधवा पेंशन पाने वाली मामी का कहना है कि यह रकम उनके लिए पर्याप्त है। हममें से तमाम लोग प्राइवेट सेक्टर में काम करते हैं। सरकारी नौकरी वालों के लिए अब एनपीएस है। एन्युइटी मार्केट से काफी कम पैसा मिलता है और रिटर्न की गारंटी के दिन तो हवा हो चुके हैं।
रिटायरमेंट के समय हमें अपने कॉरपस से इस तरह पैसा निकालना चाहिए कि वह ज्यादा खाली न हो जाए। तो बैंक में पैसा जमा करने और उस पर ब्याज पाने भर से काम नहीं चलने वाला है। तो कॉरपस का उपयोग करते हुए भी उसे बढ़ाने का तरीका क्या हो सकता है?
यह बात इन तीन बुजुर्गों के जरिए समझी जाए। ये सभी सामान्य जीवन जी रहे हैं। दरअसल इनकी जीवनशैली ही ऐसी रही है। लग्जरी की वे परवाह नहीं करते। उन्हें महंगे गैजेट्स या कपड़ों की जरूरत नहीं। वे सादा खाना खाते हैं, पब्लिक ट्रांसपोर्ट से यात्रा कर खुश रहते हैं। उनका यह सादा जीवन ही उनकी पेंशन को पर्याप्त बना दे रहा है।
दूसरी ओर हम कंज्यूमर्स की सोसायटी में रह रहे हैं। क्या हम रिटायरमेंट के बाद उन सुविधाओं को छोड़ने को तैयार हैं, जो अभी हमें मिल रही हैं। हमने ध्यान नहीं दिया, लेकिन खर्च करना हमारी आदत बन गई है।
उन तीन बुजुर्गों की जिंदगी में उनके रिश्ते-नातों और उनकी सेहत की अहम भूमिका है। मामा का गांव में काफी सम्मान है। परिवार या गांव के समारोहों में उनकी राय ली जाती है। मामी की इज्जत, अकेले जीने के उनके साहस के लिए भी की जाती है। बावा हालांकि काफी अकेले हैं। वह कम बोलते हैं। उनकी पत्नी को फिक्र रहती है कि बावा अवसाद से पीड़ित तो नहीं हैं।
हमारी पीढ़ी के ज्यादातर लोग वहां बसे हैं, जहां रोजगार उन्हें खींचकर ले गया। वहीं उनके दोस्त बने। हम उम्मीद करते हैं कि जहां हमने रिटायरमेंट विला खरीदा है, वहां भी कुछ दोस्त बन ही जाएंगे। क्या बुजुर्गों से भरी जगह खुशनुमा होगी? उम्मीद तो ऐसी ही है।
उधर उन तीन बुजुर्गों की जिंदगी में अब भी कोई मकसद बचा हुआ है। मामा की नजर इस बात पर रहती है कि बागवानी में उनके बेटे क्या कर रहे हैं। ज्वार, मिर्च और बाजरा के खेतों को अमरूद, सपोटा और नारियल के बाग के लिए तैयार किए जाते देख वह खुश हो जाते हैं। वहीं मामी रोज नए श्लोक सीखने और गाने की कोशिश करती हैं ताकि वह उन्हें दूसरों को सिखा सकें। वह फीस नहीं लेतीं, लेकिन अपने पास आने वाली महिलाओं और बच्चों की बातों में उन्हें रस मिलता है। यह हलचल उन्हें खुश रखती है। बावा हालांकि दुखी रहते हैं। चिकित्सा, एक्युपंचर और योग की बातें उन्होंने सीखी थीं, लेकिन अब वह इनके जरिए किसी की मदद नहीं कर पाते। वह संगीत सुनते हैं, कुर्सी पर बैठे रहते हैं। मामा शायद ही कभी अपनी सेहत से जुड़ी किसी परेशानी की बात करते हैं। मामी की सेहत अच्छी है और वह रोज कसरत भी करती हैं। बावा हालांकि डॉक्टर के पास भी नहीं जाना चाहते।
दरअसल हम सभी को चुस्त रहने के लिए दोगुनी कोशिश करनी चाहिए। हमें अपने लिए एक हेल्थ प्लान बनाना चाहिए और इस बात का इंतजाम करना चाहिए कि बुढ़ापे में हमारी देखभाल किस तरह होगी क्योंकि जरूरी नहीं है कि तब परिवार के लोग साथ ही हों।
दोस्त जब मुझे नए जमाने की ये कहानियां सुनाते हैं कि किस तरह रिटायर्ड लोग दुनिया की सैर कर रहे हैं, बाहर खाना-पीना एंजॉय कर रहे हैं तो मैं पेंशन, परिवार, आदतों और सेहत से जुड़े सुरक्षा तंत्र को लेकर चिंतित हो जाती हूं, जो हमारे साथ नहीं के बराबर है। बावा की खराब हो रही हालत मेरे लिए चेतावनी की घंटी है। क्या हम सभी तैयार हैं?
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