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रिपो रेट बढ़ने का डेट MF पर क्या होगा असर?

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आदिल शेट्टी
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति ने रिपो रेट में 25 बेसिस पॉइंट्स की बढ़ोतरी करते हुए इसे 6.50 पर पहुंचा दिया। रिपो रेट वह इंट्रेस्ट रेट है जिस पर देश का केंद्रीय बैंक आरबीआई कमर्शल बैंकों को पैसे उधार देता है। जून में अपनी मौद्रिक नीति की समीक्षा के दौरान सेंट्रल बैंक ने बढ़ती महंगाई के दबाव का हवाला देते हुए रिपो रेट या शॉर्ट-टर्म लेंडिंग रेट में 25 बेसिस पॉइंट्स की बढ़ोतरी करते हुए 6.25 प्रतिशत कर दिया था।

महंगाई पिछले आठ महीने से आरबीई की ओर से तय 4% के टारगेट से ऊपर रही है। इसलिए एक बार फिर से रेट में बढ़ोतरी होने की बात पूरी तरह से अप्रत्याशित नहीं थी। वैसे भी कई विश्लेषकों ने इस साल नीतिगत ब्याज दरों में 50 बीपीएस की वृद्धि का अनुमान जताया है। बढ़ती महंगाई, रुपये के घटते मूल्य, कच्चे तेल की कीमतों में अस्थिरता और पूरे विश्व में व्यापार संबंधी तनाव के कारण आपके पोर्टफोलियो में भी अस्थिरता का दिखाई देना एक आम बात है, लेकिन उन इन्वेस्टरों के लिए इसका क्या मतलब है जिन्होंने डेट म्यूच्युअल फंड्स में इन्वेस्ट किया था?

इंट्रेस्ट रेट की अस्थिरता

डेट म्यूच्युअल फंड को कभी-कभी फिक्स्ड डिपॉजिट (एफडी) के एक विकल्प के रूप में देखा जाता है, लेकिन इसमें इंट्रेस्ट रेट से जुड़े रिस्क होते हैं जो उन्हें अस्थिर बना सकते हैं। लॉन्ग टर्म डेट म्यूच्यूअल फंड्स के बुनियादी ऐसेट्स, बॉन्ड्स हैं। इंट्रेस्ट रेट्स के साथ बॉन्ड्स का उल्टा रिश्ता है। हाल के वर्षों में जब इंट्रेस्ट रेट्स गिर रहे थे, तब बॉन्ड फंड्स ने ज्यादा रिटर्न दिया था, जिनमें से कुछ बॉन्ड फंड्स ने कुछ सालों में कभी-कभी बहुत ज्यादा (15-20% सालाना) रिटर्न दिया था। लेकिन, अब लगातार दो मॉनिटरी पॉलिसी रिव्यू में इंट्रेस्ट रेट में बढ़ोतरी होने के कारण बॉन्ड्स की कीमतें गिर जाएंगी। इसलिए, बॉन्ड फंड के NAV में भी भारी गिरावट आएगी। जो इन्वेस्टर्स तीन साल या उससे ज्यादा समय के लिए इन्वेस्ट करना चाहते हैं उनके लिए लॉन्ग-टर्म डेट फंड्स सही हैं क्योंकि लम्बे समय में उन्हें इंट्रेस्ट रेट से संबंधित अस्थिरता के असर को बेअसर करने का मौका मिलेगा।

अभी क्या करना चाहिए?

इंट्रेस्ट रेट से जुड़ी अस्थिरता से बचने के लिए और उसके समान रिटर्न कमाने के लिए या फिक्स्ड डिपॉजिट से थोड़ा ज्यादा रिटर्न कमाने के लिए आप कम मच्योरिटी पीरियड वाले सिक्यॉरिटी फंड में इन्वेस्ट करने पर विचार कर सकते हैं। शॉर्ट-टर्म डेब्ट फंड्स या लिक्विड फंड्स आपके पोर्टफोलियो से जुड़ी जरूरतों को स्थिरता प्रदान कर सकते हैं।

RBI की महंगाई को काबू में लाने की चाहत को देखते हुए यह अनुमान लगाया जा सकता है कि भविष्य में इस रेट में फिर से बढ़ोतरी हो सकती है। लॉन्ग-टर्म डेब्ट फंड्स पर इसका नेगेटिव असर पड़ेगा। इसलिए, आप या तो इस तरह के इन्वेस्टमेंट से बाहर निकल सकते हैं। लेकिन,आप इसमें लंबे समय के लिए इन्वेस्ट करना चाहते हैं और रिस्क उठाना चाहते हैं तो इसमें निवेश बनाए रख सकते हैं और अपनी लागत को औसत में आने दे सकते हैं।

(इस आर्टिकल के लेखक बैंक बाजार के CEO हैं।)

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