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क्या बढ़ेगी पेंशन? जानिए, EPFO का पूरा फंडा

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हर प्राइवेट कर्मचारी को इस खबर से ज्यादा खुशी हुई कि रिटायरमेंट पर अब उन्हें ज्यादा पेंशन मिलेगी। हालांकि अभी ऐसा मुमकिन नहीं है। आखिर क्या है पेंशन मैनेज करने वाली संस्था ईपीएफओ और कैसे मैनेज होती है पेंशन, बता रहे हैं जोसेफ बर्नाड...

एक साथ होगा निपटारा
जब पेंशन के इस पूरे कन्फ्यूजन के बारे में सेंट्रल बोर्ड और ट्रस्ट(सीबीटी) के सदस्य विरजेश उपाध्यक्ष से बात की गई तो सेंट्रल प्रॉविडेड फंड कमिश्नर ने बताया है कि, 'सबको ज्यादा कॉन्ट्रिब्यूशन के आधार पर पेंशन देने से पेंशन फंड मैनेज करना मुश्किल हो जाएगा। इस मामले में जितनी याचिकाएं अलग-अलग हाई कोर्ट में चल रही हैं उन्हें लेकर हम अपना पक्ष सुप्रीम कोर्ट में रखेंगे। हमने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि बेहतर है कि सभी मामले एक साथ निपटा लिया जाए।'

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सबको नहीं दे सकते पूरी पेंशन
विरजेश उपाध्याय के अनुसार जिन लोगों को सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने ज्यादा पेंशन देने को कहा है वह फैसला हम मानेंगे और उन्हें पेंशन देंगे लेकिन सबको उस नियम से पेंशन देना मुमकिन नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट का फैसला हमारे लिए मान्य है। मगर हम सबको इस तरह का छूट नहीं दे सकते। हमने साफ तौर पर कहा कि छूट वाली कंपनियां में काम करने वाले कर्मचारियों को ही इसका फायदा दिया जा सकता है।

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ऐसे होता है फंड मैनेज
प्राइवेट कंपनियों दो तरीके से पीएफ और पेंशन फंड को मैनेज करती है।
1. छूट कंपनियां: ये कंपनियां पीएफ का पैसा अपने पास रखती हैं। यह कर्मचारी के वेज लिमिट 15,000 रुपये का 12 फीसदी होता है। कंपनी की 12 फीसदी हिस्सेदारी में 8.33 फीसदी पेंशन फंड में जाती है जो सीधा ईपीएफओ को चला जाता है। इसका मतलब है कि ये कंपनियां बाकी 3.66 और कर्मचारी की 12 फीसदी हिस्सेदारी अपने पास रखती हैं।

2. गैर-छूट कंपनियां: इनमें पीएफ का पूरा पैसा सीधे ईपीएएफओ के पास चला जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने जिनके हक में फैसला सुनाया है वे गैर-छूट वाली कंपनी के लोग हैं और इनका पूरा कॉन्ट्रिब्यूशन ईपीएफओ के पास आता है।

क्या है सुप्रीम कोर्ट का ऑर्डर
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल अपने एक आदेश में कहा है कि ईपीएफओ को पीएफ मेंबर्स को पेंशन फंड में पूरी सैलरी पर कॉन्ट्रिब्यूशन का ऑप्शन देना होगा। इसका मतलब है कि जिन लोगों ने 1 सितंबर, 2014 से पहले नौकरी जॉइन की है वे अपनी पूरी सैलरी पर पेंशन फंड में कंट्रिब्यूट कर सकते हैं। वह इसके लिए अपनी कंपनी और ईपीएफओ के पास आवेदन कर सकते हैं।

पढ़ें: ईपीएफओ ने ईटीएफ यूनिट्स को पीएफ खातों में डालने के प्रस्ताव को मंजूरी दी


अब भी है उम्मीद
पूर्व सेंट्रल पीएफ कमिश्नर केके जालान के अनुसार उनके कार्यकाल के दौरान ही पेंशन फंड में ज्यादा कॉन्ट्रिब्यूशन का प्रावधान एग्जिक्युटिव ऑर्डर से खत्म किया गया था। लेकिन अदालत में अगर इसे चुनौती दी जाएगी तो शायद ही यह आदेश टिक पाएगा। क्योंकि ईपीएफ ऐक्ट में संशोधन के जरिए यह प्रावधान जोड़ा गया था। ऐसे में इसे संशोधन के जरिए ही खत्म किया जा सकता।

क्या होगा 1 सितंबर 2014 के बाद वालों का
अगर किसी ने सितंबर 2014 के बाद प्राइवेट सेक्टर में नौकरी जॉइन की है तो पेंशन फंड में ज्यादा कंट्रीब्यूशन का ऑप्शन उसके लिए नहीं है। कर्मचारी भविष्य निधि संगठन ने सितंबर 2014 में वेज लिमिट 15,000 रुपए तय की थी। कोई भी कंपनी 15,000 रुपए का 12 फीसदी ही पीएफ में कंट्रिब्यूट कर सकती। तब इसका 8.33 फीसदी यानी 1250 रुपए ही पेंशन फंड में जाएगा। कंपनी के कॉन्ट्रिब्यूशन का बाकी पैसा कर्मचारी प्रॉविडेंट फंड में जाता है। सितंबर 2014 के बाद नौकरी जॉइन करने वाले कर्मचारी पेंशन फंड में ज्यादा कॉन्ट्रिब्यूशन करने के लिए रिक्वेस्ट नहीं कर सकते हैं।

अगर चाहिए आधी सैलरी भर पेंशन तो...
पीएफओ के जिन मेंबर्स ने सितंबर 2014 के पहले नौकरी जॉइन की है वह पेंशन फंड में कॉन्ट्रिब्यूशन बढ़ाने के लिए अपनी कंपनी के पास आवेदन कर सकते हैं। अगर उनकी कंपनी उनके आवेदन को स्वीकार कर लेती है तो उनके पेंशन फंड में ज्यादा कॉन्ट्रिब्यूशन शुरू हो सकता है।

क्या है ताजा मामला
मार्च 1996 में पेंशन फंड ऐक्ट में एक बदलाव किया गया था। इसमें कर्मचारियों को यह विकल्प दिया गया था वे पूरी सैलरी (बेसिक+डीए) के 8.33 फीसदी हिस्से को पेंशन में योगदान दे सकते। इससे उनकी पेंशन बढ़ सकती है। इसके बाद कई सालों तक पेंशन बढ़ाने के लिए कर्मचारियों ने इस विकल्प की तरफ ध्यान नहीं दिया। साल 2005 कई निजी ईपीएफ फंड ट्रस्टी और कर्मचारियों ने ईपीएफओ से संपर्क किया और पेंशन फंड में हिस्सेदारी की तय सीमा को हटाने की मांग की। उनका कहना था कि इसे पूरी सैलरी के संदर्भ में लागू किया जाए। ईपीएफओ ने तब यह मांग खारिज कर दी। ईपीएफओ का तर्क था कि लोगों को संशोधन के 6 माह के भीतर यह मांग रखनी चाहिए थी। ऐसे में कई लोगों ने हाई कोर्ट में ईपीएफओ के खिलाफ केस दर्ज किए गए। इसमें से सिर्फ एक हाईकोर्ट को छोड़कर सभी ने ईपीएफओ के खिलाफ फैसला दिया। फैसला में कहा गया कि 6 महीने की समय सीमा मनमानी थी और कर्मचारी जब भी चाहे पेंशन में योगदान को बढ़ा सकते हैं।

इसके बाद कुछ लोग सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। इसमें प्रवीण कोहली भी शामिल थे, जहां कोर्ट ने कर्मचारियों के पक्ष में फैसला सुनाया। कोर्ट के फैसले के बाद इसे लागू करने में ईपीएफओ ने करीब एक साल का वक्त लिया। जिसके बाद अब जाकर प्रवीण कोहली की पेंशन राशि 10 गुना से भी ज्यादा बढ़ी है। अपनी मासिक पेंशन को 2,372 से बढ़ाकर 30,592 करने के लिए कोहली को 15.37 लाख रुपये भी देने पड़े। यह वह रकम थी, जिसे कोहली हर महीने पेंशन फंड में योगदान करना चाहते थे।

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